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धनतेरस क्यों मनाते हैं? || Why celebrate Dhanteras?

धनतेरस क्यों मनाते हैं या धनतेरस मानने के पीछे क्या वजह है, यह जानने से पहले आपको बता दें कि प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस पर्व मनाया जाता हैं। धनतेरस दीपवाली से 2 दिन पूर्व आती है।

धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनवंतरी को देवताओं का डॉक्टर भी कहा जाता हैं।
धनतेरस पर्व मनाने के पीछे की पौराणिक कथा और कहानी इस लेख में बताई गई हैं.

धनतेरस संक्षिप्त परिचय

अन्य नाम- धन्य तेरस, ध्यान तेरस, धनत्रयोदशी.
कब मनाई जाती हैं- कार्तिक मास (कृष्ण पक्ष, त्रयोदशी).
कौनसे भगवान से सम्बन्ध है- धनवंतरी जी.
क्या करते हैं इस दिन- धन की पुजा.
विशेषता- नए साधनों की खरीद.

धनतेरस को “राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस” के रुप में भी मनाया जाता हैं। इसकी घोषणा वर्ष 2016 में मोदी सरकार द्वारा की गई थी।धनतेरस के दिन चांदी की वस्तु खरीदना शुभ माना जाता हैं। भगवान कुबेर जी की पूजा अर्चना भी इस दिन विशेष रूप से की जाती हैं।

श्री विष्णु जी का वामन अवतार और धनतेरस मानने की कहानी

राजा बलि बहुत शक्तिशाली राजा थे, जिनसे देवता भी परेशान थे। देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने इसी समय वामन अवतार लिया था। यह उस समय की बात है जब असुरों (राक्षसों) के गुरु माने जाने वाले शुक्राचार्य जी द्वारा देवताओं को बहुत परेशान किया जा रहा था। तभी भगवान श्री विष्णु जी ने वामन अवतार लिया और शुक्राचार्य जी की आंख फोड़ दी।

राजा बलि यज्ञ कर रहे थे तभी इस यज्ञ को भंग करने के लिए भगवान विष्णु वहां पहुंचे। राजा बलि बहुत दानी स्वभाव के भी थे। असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान श्री विष्णु जी को इस रुप में पहचान लिया और आगाह किया कि उनकी बातों में ना आए।

वामन अवतार लिए जब विष्णु जी वहां पर पहुंचे और राजा बलि से मात्र 3 कदम भूमि मांगी। खुशी-खुशी राजा बलि इसके लिए तैयार हो गए। संकल्प के साथ जैसे ही राजा बलि ने कमंडल में पानी लेने के लिए हाथ डाला तभी अचानक उनको रोकने के लिए शुक्राचार्य जी ने सुक्ष्म रुप धारण किया और उस कमंडल में चले गए।

भगवान विष्णु ने गुरु शुक्राचार्य जी की इस चाल को समझ गए। वामन अवतार लिए विष्णु जी ने योजना के तहत कुशा को अपने हाथ से कमंडल को ऐसे रखा कि वह सीधा शुक्राचार्य जी की आंख में जा लगा और उनकी एक आंख फुट गई। हड़बड़ाहट में वो बाहर निकल कर भाग गए।

तभी राजा बलि ने वामन अवतार लिए विष्णु जी को तीन क़दम भूमि देने का संकल्प ले लिया। और वामन जी से कहा कि जहां आप चाहो नाप लो। भगवान श्री विष्णु जी अर्थात वामन जी ने एक क़दम में पूरी पृथ्वी लोक को नाप लिया। दुसरे क़दम में पूरे अंतरिक्ष को नाप लिया अब तीसरा कदम रखने के लिए जगह नहीं थी।

दानवीर राजा बलि ने अपने वचन को पुरा करने के लिए अपना सर वामन जी के कदमों में रख दिया। इस दान ने राजा बलि से सब कुछ छीन लिया। राजा बलि की संपूर्ण सम्पत्ति देवताओं को मिली। अपार धन संपदा प्राप्त करने के बाद देवताओं ने जश्न मनाया। अब आप समझ गए होंगे कि धनतेरस क्यों मनाते हैं?

भगवान धनवंतरी और धनतेरस का सम्बन्ध

धनतेरस दीपावली से पहले आती हैं। दीपावली को धन दौलत और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। लेकीन स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं होता हैं। तभी तो हमारे भारत में एक कहावत प्रचलित हैं ” पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख धन और माया”.

इसलिए धन के पर्व और भगवान श्री राम के पुनः अयोध्या लौटने पर दीपावली का त्यौहार मनाया जाता हैं। और इससे पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता हैं। मतलब धन दौलत से पहले स्वास्थ्य।

भारतीय शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान धनवंतरी जी अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। धनवंतरी भगवान श्री विष्णु का ही रूप हैं, जिन्हें विष्णु जी का अंशावतार माना जाता हैं।

भगवान श्री विष्णु के इस अवतार को चिकित्सा और स्वास्थ्य के रुप में जाना जाता हैं, इन्हीं को बढ़ावा देने के लिए यह रुप धारण किया था। भगवान धनवंतरी जी भी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रकट हुए थे इसलिए भी यह मान्यता है कि इस दिन धनतेरस मनाया जाता हैं। इसी मान्यता को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने इस दिन “राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस” के रुप में मनाने का निर्णय लिया।

राजा हेम और धनतेरस पर्व

जैसा कि हम सब जानते हैं धनतेरस के दिन शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाए जाते हैं। घर के बाहर दरवाजे पर और आंगन में दीपक जलाए जाने के पीछे एक बहुत ही प्राचीन लोककथा प्रचलित है, जिसके अनुसार प्राचीन समय में एक राजा थे जिनका नाम था हेम। राजा हेम के घर में एक पुत्र ने जन्म लिया लेकिन उसकी कुंडली देखकर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की की जिस दिन इस बालक का विवाह होगा उसके चार दिनों के पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी।

इस खबर ने राजा हेम की खुशियों को चकनाचूर कर दिया। राजा ने अपनी चतुराई का परिचय देते हुए बालक को ऐसे दूरस्थ स्थान पर भेज दिया, जहां पर किसी भी स्त्री की परछाई तक उसको छू नहीं सके। लेकिन कहते हैं कि होनी को कोई नहीं टाल सकता है। जहां पर वह बालक रहता था उस स्थान पर एक दिन एक सुंदर राजकुमारी गुजर रही थी। दोनों ने एक दूसरे को देखा और मन ही मन प्रेम कर बैठे, जिसके बाद उनका विवाह हो गया।

विवाह उपरांत 4 दिन के पश्चात उस राजकुमार की मृत्यु हो गई। राजकुमारी ने बहुत गुलाब दिया लेकिन विधाता के अनुसार उसे मृत्यु लोग तो जाना ही था। यमराज के साथ आई यमदूतों ने यमराज से विनती की कि हे प्रभु ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे कि मनुष्य अकाल मृत्यु से बच सकें।

यमराज ने जवाब दिया अकाल मृत्यु कर्मों पर आधारित है, लेकिन एक ऐसा मार्ग भी है जिसे करके अकाल मृत्यु से छुटकारा पाया जा सकता है। यमराज ने कहा कि जो व्यक्ति कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात्रि में मेरे नाम से पूजा करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रखना चाहिए। और यही वजह है कि धनतेरस के दिन सभी व्यक्ति अपने अपने घरों के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाते हैं।

धनतेरस से संबंधित रोचक तथ्य और महत्वपूर्ण बातें

1. समुंद्र मंथन के समय जब भगवान धन्वंतरी प्रकट हुए तो उनके हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश था।

2. भगवान धन्वंतरी के हाथों में कलश होने की वजह से इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है।

3. धनतेरस के दिन किसी वस्तु या धन खरीदने पर उसमें 13 गुना की वृद्धि होती है।

4. धनतेरस के दिन लोग धनिया के बीज घर में रखते हैं और दीपावली के पश्चात इन्हें अपने खेतों में बोते हैं।

5. जैसा कि आप जानते हैं कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक है और चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है। मन को संतोष देता है इसी वजह से धनतेरस के दिन ज्यादातर लोग चांदी खरीदते हैं।

6. जीवन में संतोष प्राप्त करने के लिए चांदी के बर्तन खरीदे जाते हैं।

7. भगवान धन्वंतरी को देवताओं के चिकित्सक के रूप में माना जाता है इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

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