नंद वंश का इतिहास || History Of Nand Vansh

नंद वंश का इतिहास बहुत प्राचीन है, जिसका कार्यकाल 344 ई. पू. से 322 ई. पू. तक रहा। भारत के सबसे प्राचीन राजवंशों में से एक नंद वंश को “महापद्मनंद” नाम से भी जाना जाता हैं। यह वंश शिशुनाग वंश के बाद और मौर्य साम्राज्य से पूर्ववर्ती था।

चौथी-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में नंद वंश ने उत्तरी भारत के विशाल भुभाग पर एकाधिकार था। नंद वंश के संस्थापक की बात की जाए या फिर यह कहें कि नंद वंश की स्थापना किसने कि तो इसका पूरा श्रेय महापद्मनंद को जाता है।

सच्चे अर्थों में महापद्मनंद ही नंद वंश के संस्थापक हैं जबकि धनानंद, नंद वंश के अंतिम शासक थे। नंद वंश का मगध के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

युनानी लेखकों के अनुसार महापद्मनंद निम्न जाति के थे। मगध (बिहार) इनका मुख्य कार्यकारी क्षेत्र था। इस लेख के माध्यम से हम नंद वंश के इतिहास, नंद वंश के संस्थापक,नंद वंश का अंतिम शासक,नंद वंश के राजा,नंद वंश का गोत्र और नंद वंश के पतन के कारण जानेंगे।

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नंद वंश का इतिहास (History Of Nand Vansh)

परिचय का आधारपरिचय
नंद वंश के संस्थापकमहापद्मनंद.
महापद्मनंद के अन्य नामसर्वक्षत्रांतक, एकराट, उग्रसेन.
नंद वंश का कार्यकाल344 ई.पू. से 322 ई.पू. तक.
नंद वंश के शासकों की जातिशुद्र (नाई).
शासनावधि22 वर्ष.
शासन क्षेत्रमगध (बिहार).
नंद वंश का मंत्रीराक्षस.
नंद वंश के राजामहापद्मनंद, पंडुक, पंडुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, गोविषाणक, दशसिद्दक, कैवर्त, धनानन्द.
नंद वंश के समय विद्वानवर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन आदि.
नंद वंश से पूर्ववर्ती वंशशिशुनाग वंश.
उत्तरवर्ती वंश मौर्य साम्राज्य.
History Of Nand Vansh

महापद्मनंद के नाम पर ही इस राजवंश का नाम नंद वंश पड़ा। नंद वंश का शासन 344 ईसा पूर्व से लेकर 322 ईसा पूर्व तक का रहा। इतिहास में 22 वर्षों तक मगध पर राज करने वाला यह राजवंश बहुत प्रसिद्ध है, इसी वंश के अंतिम शासक धनानंद को अपदस्थ करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।

नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक भी कहा जाता है जिसके पीछे मुख्य वजह यह है कि उन्होंने काशी, कौशल, वज्जि, मल्ल, चेदी, वत्स, अंक, मगध, अवनीत, कुरु पांचाल, गंधार, कंबोज, शूरसेन, अश्मक एवं कलिंग जैसी विशाल जनपदों को जीतकर एक सुदृढ़ केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी थी।

महापद्मनंद को क्षत्रियों का नाश करने वाला अर्थात दूसरे परशुराम जी के रूप में भी जाना जाता हैं। इन्होंने राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद साम्राज्य की संपत्ति बहुत अधिक बढ़ गई, इनके पास असंख्य सेना भी थी।

नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद के समय इनके राजकोष में 99 करोड की स्वर्ण मुद्रा थी साथ आंतरिक और विदेशी व्यापार बड़ी तादाद में होता था। यदि हम चीनी यात्री हेनसांग की बात करें तो भारत भ्रमण के समय उनके द्वारा लिखी गई यात्रा वृतांत से जानकारी मिलती है कि नंद वंश के राजाओं के पास अपार धन-संपत्ति और खजाने थे, जिसमें तरह-तरह के बहुमूल्य कीमती पत्थर (7 तरह) भी थे।

क्या सच में महापद्मनंद निम्न कुल के थे?

नंद वंश के बारे में जानकारी से पूर्व आपको बता दें कि भारत का इतिहास हमेशा से इतिहासकारों का गुलाम रहा है। इतिहासकारों ने इसे जिस तरह से पेश किया आज की पीढ़ी ने उसे वैसे ही स्वीकार कर लिया। महापद्मनंद के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि वह निम्न कुल में जन्मे अर्थात् नाई थे।

जब महापद्मनंद ने नंद वंश की स्थापना की और नंद वंश के प्रथम शासक बने तब निम्न कुल की वजह से मगध के कई लोग इनसे घृणा करते थे और इन से चिढ़ होती थी। और यही वजह रही कि नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद की आवश्यकता से अधिक बुराइयां की गई जिसका प्रभाव आने वाले समय में इतिहास पर भी पड़ा।

आप इस बात से अनुमान लगा सकते हैं कि महापद्मनंद के लिए गणिका अर्थात वैश्या का बेटा, निम्न कुलीन, अनभिजात और नापीतकुमार जैसी गणित बातें समाज में फैला कर उनकी अवहेलना की गई।

अवहेलना करने वाले वही लोग होते थे जो पुराणों और अभिलेखों की रचना करते थे और यही वजह रही कि इन लोगों ने पुराणों और अभिलेखों में महापद्मनंद और नंद वंश के बारे में जो अपनी सोच रखी उसे इतिहास के पन्नों में ज्यों का त्यों उतार दिया गया।

जब महापद्मनंद पहली बार शासक बने और नंद वंश की स्थापना की उस समय कठिन परिस्थितियां थी जो कि आगे चलकर मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के सामने आई, उससे कई गुना अधिक थी। नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद के लिए समाज और राष्ट्र हित सर्वोपरि था।

अब हम कुछ इतिहासकारों की बातों पर गौर करेंगे जिन्होंने महापद्मनंद के बारे में लिखा है। “कार्टियस” नामक लेखक लिखते हैं कि महापद्मनंद के पिता नाई थे जो दिन भर मजदूरी करके पेट पूजा करते थे।

महापद्मनंद राजा कैसे बने?

बचपन से ही गुणवान और दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद विशिष्ट गुणवान थे। प्राचीन समय में मगध में निम्न वर्ग के लोगों की तादाद बहुत अधिक थी और वह धर्म-कर्म में बढ़कर हिस्सा लेते थे। इस वजह से वेदों को मानने वाले ऋषि मुनि इस इलाके में जाना पसंद नहीं करते थे उन्हें ऐसा लगता था कि यह निम्न वर्ग के लोग उनके विरोधी है जबकि ऐसा कुछ नहीं था।

भगवान बुद्ध की मृत्यु के पश्चात कुछ समय बीतने पर सप्तपर्णी गुफा में “प्रथम बौद्ध परिषद” का आयोजन किया गया’ जिसका संचालन नाई के द्वारा की गई थी। विनय पिटक के अधिकांश भागों की रचना नाई (उपाली) के निर्देशानुसार ही किया गया।

इस तरह एक बहुत बड़े काम को नाई के द्वारा अंजाम देने के पश्चात मगध में उपाली की सामाजिक स्वीकार्यता और सांस्कृतिक स्वीकार्यता घटित होना प्रारंभ हो गया। क्योंकि मगध के आसपास के क्षेत्रों के लोग इस समाज का सम्मान करने लग गए। धीरे-धीरे इसका इतना प्रभाव बढ़ा कि इसने सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था से बाहर निकलकर राजनैतिक बदलाव का स्वरूप ले लिया।

इसी बदलाव के परिणाम स्वरूप मगध में एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण घटना घटित हुई, जिसके बाद महापद्मनंद मगध की राजनीति में एक बहुत बड़ा नाम बन गया और इस बड़े साम्राज्य के शासक बने जिसे आज नंद वंश के नाम से जाना जाता है। महापद्मनंद का राजा बनना मगध के इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में शामिल हैं लेकिन इस राजनीतिक घटना के पीछे सामाजिक आधार सबसे महत्वपूर्ण तत्व रहा है।

नंद वंश का विस्तार

नंद वंश का विस्तार करने का पूरक श्रेय नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद को जाता है जिन्होंने मगध को एक विशाल साम्राज्य में तब्दील कर दिया। नंद वंश के विस्तार की बात की जाए तो यह पूर्व दिशा में चंपा, दक्षिण दिशा में गोदावरी, पश्चिम दिशा में व्यास और उत्तर दिशा में हिमालय तक, भारत के विशाल भूभाग पर यह मगध साम्राज्य फैला हुआ था।

महापद्मनंद एक ऐसे राजा थे जिन्होंने अपनी सेना को राजधानी के बजाय राज्य की सीमा पर तैनात करना प्रारंभ किया था। आसपास के सभी क्षेत्रों और छोटे-बड़े जनपदों को मिलाकर एक राष्ट्र में तब्दील करने की योजना सर्वप्रथम महापद्मनंद ने ही बनाई थी। उनकी योजना के अनुसार हिमालय से लेकर समुद्र तट तक एक राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया।

महापद्मनंद ने अपनी राजनीतिक सक्रियता और पराक्रम के बलबूते मगध साम्राज्य को एक राष्ट्र के रूप में परिवर्तित करने के सपने को साकार कर दिया। महापद्मनंद ने राज्य विस्तार के साथ साथ लोगों की घृणित मानसिकता का भी विकास किया।

विशाल सैन्य शक्ति के बलबूते महापद्मनंद ने हिमालय और नर्मदा के बीच अधिकतर प्रदेशों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला दिया।

महापद्मनंद (नंद वंश) द्वारा जीते हुए प्रदेश

इक्ष्वाकु ( अयोध्या के आसपास का क्षेत्र), पांचाल (रामपुर और बरेली क्षेत्र), कौरव्य ( कुरुक्षेत्र, थानेश्वर, इंद्रप्रस्थ और दिल्ली क्षेत्र), काशी, हैहय क्षेत्र, अश्मक (पोतन अथवा को धन्य जोकि गोदावरी नदी घाटी के आसपास के क्षेत्र में आते हैं), वितीहोत्र का क्षेत्र, कलिंग राज्य (वराह और वैतरणी नदी के बीच का क्षेत्र), शुरसेन (मथुरा का समीपवर्ती क्षेत्र), मिथिला क्षेत्र ( यह क्षेत्र नेपाल की तराई का कुछ भाग तथा बिहार के मुजफ्फरनगर और दरभंगा जिलों के आसपास का क्षेत्र है).

महापद्मनंद के बारे में कहा जाता है कि हिमालय और विंध्याचल के बीच के विशाल भूभाग के मध्य नंद वंश के शासकों का कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता था। इस तरह महापद्मनंद और नंद वंश के शासकों ने भारत के बहुत बड़े भूभाग पर एक राष्ट्र की नीति के तहत राज्य किया।

इस संबंध में ऐतिहासिक स्त्रोतों की बात की जाए तो कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफा वाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त हुए कुछ अभिलेखों के बिखरे हुए उल्लेख उसे यह साबित होता है।

नंद वंश और विद्वान

नंद वंश को इतिहासकारों ने प्रारंभ से ही विद्वानों के खिलाफ बताने की कोशिश की है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह आप जानते हैं कि व्याकरण और भाषा विज्ञान पर आधारित विश्व प्रसिद्ध किताब “अष्टाध्यायी” की रचना पाणिनि द्वारा की गई थी। पाणिनि नंद वंश राज दरबार के रत्नों में शामिल थे।

इतना ही नहीं नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद के परम मित्र भी थे और महापद्मनंद के सानिध्य में ही पाणिनि द्वारा “अष्टाध्यायी” नामक पुस्तक का रचना की गई थी।

नंद वंश के शासकों के कार्यकाल में ना सिर्फ पानी नी जैसे विश्व प्रसिद्ध विद्वान हुए बल्कि कात्यायन, उपवर्ष और वर्ष जैसे महान विद्वानों के नंद वंश के शासकों के साथ घनिष्ठ रिश्ता था।

क्या नंद वंश के शासकों ने चाणक्य का अपमान किया था?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आचार्य चाणक्य बहुत बुद्धिमान और राजनीतिज्ञ थे। इनके बारे में कहा जाता है कि नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद ने इनका तिरस्कार और अपमान किया। इसी का बदला लेने के लिए उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को राजा धनानंद के सामने लाकर खड़ा किया और Nand Vansh को समाप्त कर दिया।

कई इतिहासकार यह मानते हैं कि ऐसा भी हो सकता है कि आचार्य चाणक्य नंद वंश साम्राज्य में आश्रय के इरादे से गए हो लेकिन उन्हें अपनी अभिलाषा के अनुसार मान सम्मान नहीं मिलने के कारण वह नाराज हो गए।

नंद वंश की जाति

नंद वंश की जाति की बात की जाए तो इस वंश में जन्म लेने वाले राजा महाराजा “नाई जाति” के थे जिन्हें इतिहास में निम्न कुल का बताया गया हैं। नंद वंश नापित जाति के थे ऐसा इतिहास में मिलता हैं।

निम्न जाति वर्ग या कुल में पैदा होने की वजह से नंद वंश के शासक महापद्मनंद को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा लेकिन महापद्मनंद ने जाती पाती से ऊंचा उठकर साम्राज्य विस्तार और सामाजिक विकास पर ध्यान दिया।

ऐतिहासिक जानकारी के हिसाब से नंद वंश की जाति पर विचार करना ठीक है लेकिन भारत के महान और बड़े साम्राज्य में शामिल Nand Vansh से घृणा करना गलत है। कई पुराण ग्रंथों में और जैन ग्रंथ “परिशिष्ट पर्वन” में भी महान महापद्मनंद को नाईका पुत्र कह कर संबोधित किया गया है।

नंद वंश की सैन्य शक्ति

महापद्मनंद द्वारा स्थापित नंद वंश की सैन्य शक्ति काफी मजबूत थी जब हम सिकंदर के समय के बाद करते हैं तो उस समय नंद वंश की सेना में लगभग 2 लाख पैदल सैनिक, 2,000 रथ, 3,000 हाथी और लगभग 20,000 घुड़सवार सैनिक शामिल थे।

कर्टियस के अनुसार महापद्मनंद की सेना में 20,000 घुड़सवार सैनिक 200000 पैदल सैनिक 3000 हाथी और 2000 रथ थे।

वहीं दूसरी तरफ प्लुटार्क के अनुसार नंद वंश की सेना में 72,00000 पैदल सैनिक, 6000 हाथियों की सेना, 8000 घोड़ा वाला रथ और 8 हज़ार घुड़सवार शामिल थे।

प्राचीन साम्राज्य राजवंशों के विपरीत नंद वंश के सैनिक राजधानी के इर्द-गिर्द कम और राज्य की सीमाओं के आसपास ज्यादा तैनात रहते थे।

जब सिकंदर ने नंद वंश की सेना के शौर्य के बारे में सुना तो उसके हाथ पैर फूल गए। सिकंदर का हौसला कमजोर हो गया और वह भयभीत होकर पुनः लौट गया।

नंद वंश के सैनिक और मंत्री बहुत ही मजबूत थे। जब हम विश्व प्रसिद्ध संस्कृत नाटककार विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस का अध्ययन करते हैं तो इससे स्पष्ट होता है कि नंद वंश की समाप्ति के पश्चात आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में नंद वंश के राज मंत्री राक्षस को अपना मंत्री नियुक्त करना चाहते थे और इसके लिए वह अति उत्साहित भी थे।

नंद वंश की उपलब्धियां

1 नंद वंश के शासकों ने ही सर्वप्रथम एक राष्ट्र की विचारधारा को मजबूती प्रदान की थी।

2 नंद वंश का संपूर्ण साम्राज्य धर्मनिरपेक्षता पर आधारित था क्योंकि इस साम्राज्य के कार्यकाल में किसी भी विशेष धर्म को विशेष महत्व देने का उल्लेख नहीं मिलता है।

3 नंद वंश के राजाओं ने ऊंच-नीच की वर्ण व्यवस्था को समाप्त किया और जाति आधारित छोटे-छोटे जनपदों को एक कर दिया।

4 नंद वंश के राजा अच्छी तरह से जानते थे कि सिर्फ मगधी भाषा से कुछ नहीं होने वाला है, इसलिए उन्होंने साम्राज्य के एक छोर से दूसरे छोर तक एक भाषा में बात करने के लिए पाणिनि को जिम्मेदारी दी और पानी ने एक ऐसी भाषा विकसित की जो संपूर्ण साम्राज्य में एकरूपता थी और यह भाषा थी संस्कृत।

5 नंद वंश के राजाओं ने अपने इतिहास को संजोए रखने के लिए ना स्तंभ लगाए और ना ही प्रशस्ति पत्र लिखवाए क्योंकि उनका मानना था कि यह फिजूल खर्चा है।

6 निम्न वर्ग के उत्कर्ष के रूप में Nand Vansh की बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।

7 विदेशी आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करने से कतराते थे क्योंकि उनके सामने नंद वंश की विशाल सेना खड़ी थी, जो धन-धान्य से परिपूर्ण थी। यह भी नंद वंश की मुख्य उपलब्धि है।

8 नंद साम्राज्य के दौरान मगध राज्य राजनीतिक दृष्टि से तो शक्तिशाली था ही आर्थिक दृष्टि से भी बहुत अधिक समृद्धशाली साम्राज्य बन गया।

9 मगध राज्य की आर्थिक समृद्धि की वजह से ही पाटलिपुत्र शिक्षा और साहित्य का मुख्य केंद्र बन पाया।

10 नंद वंश साम्राज्य में ही आचार्य पाणिनि, वर्ष, उपवर्ष और कात्यायन जैसे विद्वानों ने जन्म लिया।

11 सारांश रूप में नंद वंश की उपलब्धियों की बात की जाए तो नंद राजाओं के कार्यकाल में मगध साम्राज्य राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से काफी मजबूत था।

12 नंद वंश की सेना ने विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने में कामयाब रही।13 नंद वंश के शासक विदेशी व्यापार को भी प्राथमिकता देते थे यही वजह रही कि इनका खजाना हमेशा भरा रहा।

महापद्मनंद के विभिन्न नाम और वंशावली

नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद को इतिहासकार अलग-अलग नामों से संबोधित करते हैं। महापद्मनंद को जैन ग्रंथों में उग्रसेन या अग्रसेन के नाम से जाना जाता है जबकि पुराणों में “महापद्मपती” भी संबोधित किया गया है। कलयुगराजवृतांतवले में परशुराम, अतिबली और महाक्षत्रांतक नामों का उल्लेख मिलता है।

नंद वंश के प्रथम राजा महापद्मनंद की महारानी के बारे में इतिहासकार लिखते हैं कि वह बहुत सुंदर और खूबसूरत थी लेकिन इससे ज्यादा जानकारी किसी भी इतिहासकार और पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध नहीं है।


पुराणों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि महापद्मनंद के नौ उत्तराधिकारी (पुत्र) थे,क्या आप जानते हैं nand vansh ke shasak kaun the? नंद वंश की वंशावली या नंद वंश के राजाओं (nand vansh ke raja kaun the) की लिस्ट निम्नलिखित है –

(1) महापद्मनंद

इस लेख में महापद्मनंद के बारे में काफी चर्चा की जा चुकी है नंद वंश की स्थापना से लेकर भारत के सबसे शक्तिशाली और अमीर साम्राज्य में शामिल नंद वंश के विस्तार का मुख्य श्रेय महापद्मनंद को ही जाता है। नंद वंश का विस्तार का श्रेय इन्हें ही जाता हैं।

(2) पंडुक.

पंडुक जो कि महापद्मनंद के सबसे बड़े पुत्र थे को सहलिन अथवा सहल्य नामों से भी जाना जाता हैं। नंद वंश के शासन काल में बंदूक को वैशाली का शासन करने का अवसर मिला था। आगे चलकर इनके ही वंशजों ने सेन वंश जोकि बंगाल का विश्व प्रसिद्ध राजवंश है की स्थापना की।

(3) पंडुगति.

नंद वंश के राजा पंडुगति अयोध्या के देव वंश का मुखिया माना जाता हैं। महापद्मनंद के द्वितीय पुत्र को महाबोधि वंश में पंडूगति तथा पुराणों में संकल्प नाम से संबोधित किया गया है। पंडुगति एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक उत्तेजित सेनानायक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं, जिसका विवरण कथासरित्सागर के पन्नों में देखने में मिलता है।

पंडूगति ने अपने साम्राज्य में पशु बलि पर पूर्णतया रोक लगा दी जोकि कई वर्षों से चली आ रही थी। साथ ही कौशल राज्य को अवध राज्य में मिलाने में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी।अल्मोड़ा से प्राप्त हुए सिक्कों से पता चलता है कि पंडू गति के उत्तराधिकारी 185 ईसा पूर्व के बाद वासुदेव के रूप में जाने गए।

(4) भूतपाल.

विदिशा का नंदी वंश भूतपाल का ही वंशज है, भूतपाल को भूत नंदी के नाम से भी जाना जाता है। यह नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद के तृतीय पुत्र थे, जिन्हें विदिशा की प्रशासनिक कार्यकारिणी देखने का जिम्मा सौंपा गया था।

(5) राष्ट्रपाल.

कलिंग का मेघवाहन वंश तथा महाराष्ट्र का सातवाहन वंश राष्ट्रपाल की देन है। महाबोधि के अनुसार राष्ट्रपाल महापद्मनंद के चौथे पुत्र थे। इनकी प्रशासनिक कुशलता और सक्षम प्रतापी राजा होने की वजह से इस क्षेत्र का नाम महाराष्ट्र पड़ गया।

(6) गोविषाणक.

गोविषाणक का वंश उत्तराखंड का कुलींद वंश हैं। यह महापद्मनंद के पांचवें पुत्र थे। इनके वंशजों ने 232 ईस्वी से 290 ईस्वी तक शासन किया था जिनमें विश्व देव, धन मुहूर्त, वृहत पाल, विश्व शिवदत्त, हरिदत्त, शिवपाल, चेतेश्वर, भानु रावण आदि का नाम आता है। नंद वंश का विस्तार करने में इन्होंने बड़ी भूमिका निभाई।

(7) दशसिद्दक.

नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद के छठे पुत्र का नाम दस सिद्धक था। इनके वंशजों ने 250 ईस्वी से 510 ईस्वी तक शासन किया था।

(8) कैवर्त.

महाबोधि वंश में वर्णित उल्लेख के अनुसार कैवर्त नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद के सातवें पुत्र थे। इन्हें किसी अलग व्यवस्था मैं नहीं रखा गया बल्कि महापद्मनंद ने अपने पास में रखा। इनका मुख्य कार्य केंद्रीय प्रशासन को सुचारू रूप से चलाना था, साथ ही यह ज्यादातर समय महापद्मनंद के साथ रहते थे। इनकी मृत्यु इनके पिता के साथ जहरीला भोजन करने से हुई इसलिए नंद वंश का विस्तार नहीं हो पाया।

(9) धनानन्द.

धनानंद नंद वंश के अंतिम शासक के रूप में विश्व विख्यात हैं। इनकी माता का नाम महानंदिनी तथा पिता का नाम महापद्मनंद था। इनके बड़े भाई कैवर्त और पिता महापद्मनंद की मृत्यु के पश्चात यह ज्यादातर समय शोक में डूबे रहते थे।

धनानंद को पराजित करके ही चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। नंद वंश के इन राजाओं को नव नंद के नाम से भी जाना जाता है।

नंद वंश का कार्यकाल

नंद वंश का कार्यकाल 344 ईसा पूर्व से 322 ईसा पूर्व का रहा यानी कि कुल मिलाकर 22 वर्ष। लेकिन पुराणों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि नंद वंश ने लगभग 100 वर्षों तक राज किया। इन 100 वर्षों में लगभग 88 वर्ष तक महापद्मनंद (मत्स्य पुराण) जबकि बचे हुए 12 वर्षों में उसके पुत्रों ने राज किया था। वहीं अगर हम वायु पुराण की बात करें तो इसमें नंद वंश की कुल शासन अवधि 40 वर्ष बताई गई है।

अधिकतर इतिहासकार जिसमें विवेकानंद झा का नाम भी शामिल है नंद वंश की शासन अवधि 22 वर्ष मानते हैं। सनातन संस्कृति से जुड़े ग्रंथों, जैन धर्म से जुड़े ग्रंथ और बौद्ध धर्म से जुड़े ग्रंथों का अध्ययन करने से पता चलता है कि 9 नंद राजा थे जिन्होंने 22 वर्षों तक शासन किया।

“महावंश” नामक ग्रंथ जोकि पाली भाषा में लिखा गया है, इसके अनुसार भी नंद वंश के 22 वर्षों के कार्यकाल का वर्णन मिलता है।

लेकिन कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इस वक्तव्य पर विश्वास नहीं करेगा क्योंकि एक ही राजा द्वारा 88 वर्षों तक राज करना कतई गले नहीं उतरता है। नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद के जीवन के बारे में इतिहास में ज्यादा उल्लेख नहीं है। पैदा होते ही अगर वह राजा बन जाता वह भी 88 वर्षों तक शासन करना मुश्किल है क्योंकि यह जीवन का अंतिम पड़ाव होता है।

नंद वंश का पतन कैसे हुआ?

धनानंद को नंद वंश का अंतिम शासक माना जाता है। “महावंशटीका” का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि धनानंद कठोर तथा लोभी और कपटी स्वभाव का व्यक्ति था। अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद ने भरी सभा में आचार्य चाणक्य का अपमान किया था। “मुद्राराक्षस” से इस बात की पुष्टि भी होती हैं और यह भी ज्ञात होता है कि चाणक्य को उसके पद से हटा दिया गया था।

आचार्य चाणक्य बहुत विद्वान और राजनीतिक गुणों से भरपूर व्यक्ति थे। सभा में हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए आचार्य चाणक्य ने नंद साम्राज्य का पतन करने की शपथ ली। आचार्य चाणक्य क्षत्रिय (कुशवंशी) चंद्रगुप्त मौर्य का सहयोग किया और उन्हें धनानंद के समक्ष लाकर खड़ा कर दिया।

आचार्य चाणक्य औरत चंद्रगुप्त मौर्य ने मिलकर एक विशाल सेना का निर्माण किया। आचार्य चाणक्य नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को रास्ते से हटाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी नीतियों का सहारा लिया और प्रवर्तक अर्थात पोरस से संधि कर ली।

322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को पराजित करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। नंद वंश के पतन और मौर्य साम्राज्य की स्थापना में आचार्य चाणक्य का विशेष योगदान रहा।

सूर्य वंश का इतिहास।

नंद वंश के पतन के कारण

1 नंद वंश के पतन के मुख्य कारणों में शामिल है नंद वंश के अंतिम सम्राट धनानंद का अयोग्य होना।

2 प्रथम शुद्र वंश होने की वजह से कई लोगों की आंखों में यह खटकता था, और यही वजह रही कि क्षत्रिय राजाओं ने एक होकर नंद वंश के पतन का इतिहास लिखा।

3 नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद द्वारा भरी सभा में आचार्य चाणक्य का अपमान करना भी नंद वंश के पतन के मुख्य कारणों में शामिल हैं।

4 कई इतिहासकार बताते हैं कि नंद वंश के कार्यकाल में अत्याचार बढ़ने लगे थे और आम जनता काफी परेशानियों का सामना कर रही थी, यह भी नंद वंश के पतन के मुख्य कारणों में शामिल है।

5 इतिहास इस बात का गवाह है कि किसी भी राजवंश ने से लंबे अरसे तक राज नहीं किया। एक समय अवधि के पश्चात सभी राजवंशों का कार्यकाल समाप्त हुआ। यह भी नंद वंश के पतन का कारण हो सकता है, क्योंकि प्रजा एक ही शासक के अधीन कई वर्षों तक नहीं रहती है।

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