शक वंश का इतिहास || History Of Shak Vansh
शक वंश भारत के प्राचीन राजवंशों में शामिल में हैं। शक वंश के राजाओं ने ही कैलेंडर “शक संवत्” की शुरुआत की थी। शक वंश का इतिहास उठाकर देखा जाए तो शक और कुषाण दोनों एक ही कबीले से निकले हुए हैं।
वर्तमान समय में दक्षिणी ईरान और उज्बेकिस्तान का जो हिस्सा है वह प्राचीन समय में सिस्तान कहलाता था और यहीं के मूल निवासी थे शक, इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता हैं. इसका कार्यकाल 123 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी तक माना जाता हैं.
इस लेख में हम पढ़ेंगे शक वंश का संपूर्ण इतिहास, शक वंश का प्रथम शासक कौन था? या शक वंश के संस्थापक कौन थे? साथ ही यह भी जानेंगे कि शक किस क्षेत्र के निवासी थे? और शक वंश का अंतिम शासक कौन था।
महाराणा विक्रमादित्य का इतिहास।
शक वंश का इतिहास (History Of Shak Vansh)
प्रथम शक राजा- मोअ.
शकों का संबंध किस समुदाय से हैं- स्किथी जनजाति।
शकों का निवास स्थान- सीरनदी (सीरदरिया)
पुराणों के अनुसार शकों का सम्बन्ध- सूर्यवंशी राजा नरीष्यंत।
शक राज्यों के नाम- क्षत्रप।
अलग-अलग ग्रंथों में शक वंश का इतिहास अलग-अलग देखने को मिलता है रामायण महाभारत और पुराणों का अध्ययन करने से यह जानकारी मिलती है कि शक सूर्यवंशी थे। सूर्यवंशी राजवंश में राजा नरीष्यंत नामक राजा हुए जिन्हें स्वेच्छाचारी आचरण के कारण राजा सागर ने अपने राज्य से निष्कासित कर दिया और इसके परिणाम स्वरूप नरीष्यंत हिंदू वर्ण व्यवस्था को त्याग कर म्लेच्छ बन गए। सूर्य वंश के राजा नरीष्यंत का वंश ही आगे चलकर शक वंश कहलाया।
शक वंश के प्रारंभिक इतिहास की बात की जाए तो यह सीरनदी के समीपवर्ती क्षेत्रों में रहते थे लेकिन कुछ समय पश्चात चीनी जाति युइशि ने शकों पर आक्रमण करते हुए यहां से खदेड़ दिया।
इस स्थान को छोड़ने के बाद शक यहां से बैक्ट्रिया चले गए और वहां पर पहले से सत्ताधीन यूनानीयों को पराजित करके अपना अधिकार कर लिया, लेकिन यहां पर भी शक ज्यादा समय तक नहीं टिक पाए और 165 ईसा पूर्व चीन की यू ची जनजाति ने पुनः शकों पर धावा बोल दिया और बैक्ट्रिया से भी खदेड़ दिया।
बैक्ट्रिया से भागकर शक “पार्थिया” पहुंचे। जहां पर 128 ईसा पूर्व में शासनाधीन पार्थियन शासक “फ्रात” को को पराजित कर दिया। सब यहीं पर नहीं रुके महज 5 वर्षों के पश्चात 123 ईसा पूर्व में इन्होंने “आर्तेबानस” पर आक्रमण किया और युद्ध में जीत हासिल की। इस प्रकार दो पार्थियन शासकों को पराजित करने के बाद शकों का हौसला सातवें आसमान पर था।
बुलंद हौसले के परिणाम स्वरूप शक वंश के बारे में इतिहास कहता है कि 123 ईसा पूर्व से लेकर 88 ईसा पूर्व के मध्य शक शासकों ने तृतीय पार्थियन शासक “मिथिदातास II” पर धावा बोल दिया और उन्हें वहां से खदेड़ दिया। इस तरह शक साम्राज्य का विस्तार होता गया।
शक वंश शासक साम्राज्य का विस्तार यहीं पर नहीं रुका वो आगे बढ़ते हुए सिस्तान की ओर चले गए। वहां से गांधार और गांधार से होते हुए सिंध के क्षेत्र में आ पहुंचे। इस क्षेत्र को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया जिसे “शक द्वीप” के नाम से जाना जाता है।
शकों के प्रसिद्ध शासक और क्षेत्राधिकार
भारत में शक वंश की बात की जाए तो क्षेत्र के आधार पर शक साम्राज्य और शक वंश के राजाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, जिन्हें उत्तरी क्षत्रप तथा पश्चिमी क्षत्रप के नाम से जाना जाता है।
उत्तरी क्षत्रप में मथुरा और तक्षशिला मुख्य थे जबकि पश्चिमी क्षत्रप में उज्जैन और नासिक मुख्य क्षेत्र थे। इन चार प्रमुख स्थानों पर जिन शक शासकों ने शासन किया उनका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित हैं-
1 ल्याक कुशुलक
ल्याक कुशुलक शक वंश का एक प्रतापी राजा था। इन्होंने शक साम्राज्य के अधीन उत्तरी क्षेत्र में राज किया था, जिसका मध्य बिंदु था पंजाब। इस समय पंजाब की राजधानी तक्षशिला थी। ल्याक कुशुलक और उसके राज्य के बारे में स्त्रोतों के अभाव में ज्यादा जानकारी इतिहास में उपलब्ध नहीं है लेकिन मथुरा में “सिंहध्वज” नामक एक अभिलेख प्राप्त हुआ था जिसका अध्ययन करने से पता लगता है कि ल्याक कुशुलक का एक पुत्र भी था जिसका नाम पाटिक था। आगे चलकर उत्तरी क्षत्रप का उत्तराधिकारी बना।
सर्वप्रथम पाटिक ने स्वयं को क्षत्रप कहा और बाद में महाक्षत्रप कहकर संबोधित करने लगा।
2 राजा हगामश और हगान
शक वंश में जन्में राजा हगामश और हगान ने उत्तरी क्षत्रप में ही राज किया। लेकीन ये दोनों राज्य की बागडोर मथुरा से संभालते थे। इस ऐतिहासिक घटना की जानकारी उस समय के प्राप्त सिक्कों से प्राप्त होती है।
राजा हगामश और हगान दोनों राजाओं ने एक साथ राज किया या उनके क्षेत्र अलग थे इसके बारे में अभी इतिहासकार एकमत नहीं है। इसी सेक्टर में इसी समय दो अन्य शक वंश के सम्राट राजुल और उसका पुत्र शोडास का नाम शामिल हैं, ने भी शासन किया था। ल्याक कुशुलक और उसके पुत्र पाटिक की तरह ही इन दोनों ने भी स्वयं को क्षत्रप और महाक्षत्रप की उपाधियां प्रदान की थी।
3 भूमक और नहपान
भूमक और नहपान नामक शक राजाओं ने जिस क्षेत्र पर राज किया उसे पश्चिमी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। पश्चिम क्षेत्र की राजधानी नासिक थी। महाराष्ट्र और काठियावाड़ से प्राप्त हुए तांबे के सिक्कों से ज्यादा होता है कि भुमक ने स्वयं को क्षत्रप की उपाधि दी। लेकिन फिर भी इतिहास के प्राचीन पन्नों को खंगाला जाए तो उनमें भुमक के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है।
दूसरी तरफ नहपान की बात की जाए तो इस वंश के संबंध में कई सिक्के और अभिलेख मिले हैं जो उनके इतिहास की पुष्टि करते हैं। इन सिक्कों और अभिलेखों का अध्ययन करने से पता चलता है कि कोकण, महाराष्ट्र और काठियावाड़ नहपान के राज्य में शामिल थे। साथ ही कई जगह यह साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं कि उज्जैन और गुजरात का विस्तृत क्षेत्र इनके अधिकार में था।
4 उज्जैन का शक शासक चष्टण
चष्टण को उज्जैन का प्रथम शक शासक माना जाता है। उज्जैन के आसपास के बड़े क्षेत्रों पर इस राजा का शासन था जिनमें गुजरात मालवा और कच्छ नामक क्षेत्र शामिल थे।
शक वंश का योगदान
शक वंश या शक शासकों के राजवंशों का योगदान निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है-
1 “शक सम्वत” का प्रचलन आज भी है जिसका चलन शक शासकों ने प्रारंभ किया था। इसका प्रचलन 78 ईस्वी से हुआ था। आज भी हिंदू वर्षों की गणना में इसी सम्वत का प्रयोग किया जाता है।
2 भारत में आक्रमण करने के पश्चात शक शासक यहां की संस्कृति में घुल मिल गए और कुछ लोगों ने जैन, कुछ ने बौद्ध धर्म को अपना लिया। शैवमत के अधिकांश अनुयाई शक वंश से ही निकले।
3 नासिक में शासन करने वाले शक वंशीय राजाओं ने सनातन संस्कृति को अपनाया और वैदिक धर्म के अनुसार अपने कर्म करने लगे, इससे वैदिक सभ्यता को बढ़ावा मिला।
4 शक वंश के राजाओं ने कई सार्वजनिक कार्य भी किए जिससे आम जनता को लाभ हुआ इन कार्यों में झीलों की मरम्मत भी शामिल है।
5 भारत में बोली जाने वाली अधिकतर भाषाओं को शक शासकों ने अपनाया, जिससे यहां के लोगों में अपनी भाषा के प्रति लगाव बढ़ा।
6 जाति और वर्ग से ऊपर उठते हुए शकों ने भारतीय लोगों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। जिससे कि लोग संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठ सके और समाज में प्रेम का संदेश दे सके।
7 शक शासक रूद्रदमन को संस्कृत भाषा से अटूट प्रेम था जिसका परिणाम यह हुआ की संस्कृत भाषा के प्रथम नाटक की रचना भी इन्हीं के दरबार में हुई थी।
8 भारत के इतिहास को बचाए रखने के लिए इन्होंने शिलालेखों, ताम्रपत्र और मौर्य साम्राज्य युगीन शिलालेखों की भांति गुहिलेखों की सुरक्षा का जिम्मा भी उठाया, जिसके परिणाम स्वरूप आज भी इतिहास में यह सब मौजूद है।
9 मौर्य काल में निर्मित “सुदर्शन झील” का जीर्णोद्धार शक शासक रुद्रदामन द्वारा किया गया था।
10 भारत में छठ पूजा को बड़ी ही आस्था और धूमधाम के साथ मनाया जाता है, जिसका श्रेय शक शासकों को जाता है। इन्होंने ही सबसे पहले छठ पूजा का प्रारंभ किया था।
शक वंश की शासन व्यवस्था कैसी थी?
जब भी इतिहास पढ़ने वाले शक वंश के बारे में जानना चाहते हैं तो उनके मन में यह विचार भी आता है कि शक कालीन शासन व्यवस्था कैसी रही होगी? इसी प्रश्न का उत्तर यहां पर हम बताने की कोशिश करेंगे। शक शासन प्रणाली सुव्यवस्थित तो थी ही, लेकिन जो इसका मुखिया होता था उसे राजा कहकर पुकारा जाता था और यही वह व्यक्ति होता था जिसके पास समस्त प्रशासनिक अधिकार होते और एक राजा का मतलब होता था, भगवान के समान।
राजा के बाद एक मंत्रिमंडल होता था जिसे अमात्य (प्रधानमंत्री) भी कहा जाता था। इनका मुख्य कार्य विभिन्न विभागों की कार्यप्रणाली और उत्तरदायित्व का सुचारू रूप से संचालन करना रहता था। वैसे तो संपूर्ण साम्राज्य पर एक छत्र राजा का ही अधिकार होता था लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन को अलग-अलग भागों में बांट दिया जाता, जिन्हें प्रांत या क्षत्रप कहा जाता था। इन क्षेत्रों के संचालक कोमहाक्षत्रप कह कर संबोधित किया जाता था।
शक कालीन शासन व्यवस्था की निम्नतम इकाई की बात की जाए तो उसे ग्राम नाम दिया गया था। इन ग्रामों का एक प्रधान होता था, जिन्हें ग्रामीण या मुलुक नाम से जाना जाता था। छोटी-बड़ी सभी इकाइयों के प्रशासनिक अधिकारी और क्षत्रप अधिष्ठान नामक स्थान पर रहते थे। अलग-अलग जगहों पर क्षेत्र और आमदनी के आधार पर राजस्व कर की दर भी अलग अलग हुआ करती थी।
शक वंश के राजाओं के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ही उदार और सहिष्णु थे। उनकी कार्यप्रणाली बहुत आसान थी, उनकी नीतियां बहुत ही उदार थी और एक स्वस्थ शासन संचालन करना उनकी मुख्य नीति रही।
शक वंश से संबंधित ऐतिहासिक स्त्रोत
शक वंश का इतिहास हमने पढ़ा। लेकिन अब हम जानेंगे कि वह कौन से स्त्रोत हैं जिनके माध्यम से हमें शक वंश के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
भारत के इतिहास में शक वंश के शासकों को “शक” नाम से जाना जाता है. वहीं दूसरी तरफ इन्हें चीन में “सई या सईवांग” कहते हैं। यूनानी और ईरानी साहित्य को उठा कर सको का इतिहास देखा जाए तो इन्हें “सीथियन” कहकर पुकारा जाता है।
शक वंश से संबंधित ऐतिहासिक स्त्रोतों की बात की जाए तो चीन के साहित्य “पान-कू कृत सिएन- हान – शू नामक साहित्य में प्राप्त होता हैं।
इसके अलावा भी हान वंश का इतिहास या “परवर्ती हान वंश” का इतिहास से भी जानकारी मिलती हैं।
FAQ
1 शक वंश का संस्थापक कौन था?
उत्तर- कनिष्क को शक वंश का संस्थापक माना जाता हैं, जिन्होंने 78 वीं ईस्वी में शक वंश की स्थापना की थी।
2 शक वंश का गौत्र क्या हैं?उत्तर- शक वंश का गौत्र गौतम बताया गया हैं।
3 शक कहां से आए थे?उत्तर- शक मध्य एशिया से आए थे।
4 शक वंश का प्रथम शासक कौन था?उत्तर - मोअ।
5 शकों का सबसे प्रतापी शासक कौन था?उत्तर- शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था।
6 सब शासक रुद्रदामन द्वारा सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में जारी किए गए अभिलेख का नाम क्या है?उत्तर- गिरनार अभिलेख।
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