कुषाण वंश भी भारत के प्राचीन वंशों में शामिल है। कुषाण वंश का इतिहास चीनी ग्रंथों पर आधारित है। चीनी ग्रंथों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि कुषाण कोयू-ची के थे जो चीन में कानसू नामक स्थान पर रहते थे। बीते समय के साथ कोयू-ची जाति का विभाजन हो गया और यह जाति 5 शाखाओं में विभाजित हो गई, इन पांच में से एक थे कुषाण।
कुषाण वंश का प्रथम शासक (कुषाण वंश का संस्थापक) “कुजुल कडफीसेस” को माना जाता है और कुषाण वंश का कार्यकाल 15 ईस्वी से 151 ईस्वी तक माना जाता हैं. वासुदेव II कुषाण वंश का अंतिम शासक था.
कुषाण वंश की स्थापना 15 ईस्वी में हुई थी। कुषाण वंश के प्रथम शासक “कुजुल कडफीसेस” ने यवन, काबुल, सिंध, कंधार, पेशावर और शक राजाओं को पराजित करते हुए इस वंश की स्थापना की। जैसा कि आप जानते हैं कुषाण वंश भारत के प्राचीन राजवंशों (हर्यक वंश, शिशुनाग वंश, नंद वंश, मौर्य वंश, शुंग वंश, कण्ववंश और सूर्यवंश) में शामिल हैं।
इस लेख में हम पढ़ेंगे कुषाण वंश का इतिहास, कुषाणों का उदय, कुषाण वंश का कार्यकाल, कुषाण वंश के मुख्य राजा और कुषाण वंश का पतन आदि।
कुषाण वंश का इतिहास (History Of kushan vansh)
कुषाण वंश का संस्थापक- कुजुल कडफीसेस.
कुषाण वंश की स्थापना- 15 ईस्वी में।
कुषाण वंश का कार्यकाल- 15 ईस्वी से 151 ईस्वी तक।
कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक- राजा कनिष्क।
कुषाण वंश के इतिहास के विस्तृत चर्चा करते हैं, साथ ही यह भी जानेंगे कि कुषाण वंश का उदय किस प्रकार हुआ। ऐतिहासिक प्रमाणिकता के आधार पर देखा जाए तो कुषाण वंश चीन के पश्चिम भूभाग से पैदा हुआ था। “यूएझी” नामक एक खानाबदोश जनजाति और कबीला था। जब इनका सामना हुयगानू जाति के कबीलों से हुआ तो यूएझी राजा की मृत्यु हो गई और इन्हें अपना क्षेत्र छोड़कर जाना पड़ा।
यूएझी राजा की मृत्यु के पश्चात उनकी रानी के नेतृत्व में यह कबीला आगे बढ़ा। एक ऐसी सुरक्षित जगह और स्थान की खोज में जहां पर यह अपना जीवन यापन कर सकें। धीरे-धीरे यह कबीला ईली नदी के समीप जा पहुंचा, वहां पर पहले से मौजूद वहसून नामक कबीलों से इनका सामना हुआ। यह संख्या में बहुत अधिक थे, इसलिए वहसून नामक कबीले के लोगों को आसानी के साथ परास्त कर दिया और इस भूभाग पर इनका अधिकार हो गया।
यहां से आगे बढ़ते हुए यह कबीला भारत में प्रवेश कर गया। इस कबीले के कुछ लोग ईली नदी के समीपवर्ती क्षेत्रों में ही बस गए जिन्हें लघु ह्यूची और जिन्होंने भारत में प्रवेश किया उन्हें महान ह्यूची के नाम से जाना गया। लगातार आगे बढ़ रहे इस कबीले का सामना शकों से भी हुआ। इनकी संख्या बहुत अधिक थी, इसलिए इन्होंने शकों को पराजित कर दिया। इन्होंने बैक्ट्रिया पर अपना कब्जा कर लिया।
चीनी साहित्य और ग्रंथों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इन्होंने तक्षशिला पर विजय प्राप्त की, इसी कबीले के लोगों को कालांतर में कुषाण, कुस या खस नाम से पहचाना जाने लगा। कुषाण वंश का शासन और राज्य विस्तार कश्मीर, पंजाब, मथुरा और तक्षशिला तक विस्तृत रूप में फैला हुआ था। कुषाण वंश के शासन काल में खरोष्ठी और यूनानी लिपि में लिखित सोने और तांबे के सिक्कों का प्रचलन बढ़ा जिसका श्रेय राजा कुजुल कडफीसेस को जाता है।
भारत में आने के पश्चात कुषाण वंश के शासकों ने भारतीय सभ्यता और परंपराओं का पालन करना शुरू कर दिया। अगर कुषाण वंश के सिक्कों को देखा जाए तो इन पर त्रिशूल, शिव और बैल के चित्र अंकित हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि इन्होंने भारतीय संस्कृति को स्वीकार किया और उसमें घुल मिल गए।
कुषाण वंश के सबसे प्रतापी शासक कनिष्क का शासनकाल 127 ईसवी से 151 ईसवी तक माना जाता है। कनिष्क,कुजुल कडफीसेस के पुत्र थे। इस तरह क्रमिक रूप से कुषाण वंश का उदय हुआ था। नागार्जुन, वसुमित्र और अश्वघोष जैसे विश्व प्रसिद्ध विद्वान कुषाण वंश (kushan vansh hindi) शासकों के दरबार में रहते थे।
कुषाण वंश के मुख्य शासक
1 विम कडफिसेस
कुजुल कडफीसेस के एक पुत्र हुआ जिसका नाम था विम कडफिसेस। यह कुषाण वंश का शक्तिशाली राजा होने के साथ साथ महेश्वर की उपाधि भी धारण की।
अफगानिस्तान के रबटाक से राजा कनिष्क का एक अभिलेख प्राप्त हुआ जिससे ज्ञात होता है कि कुजुल कडफीसेस, ओएमो टाकटु और विम कडफिसेस के बारें में लिखा हुआ है।
विम कडफिसेस ने अपने साम्राज्य विस्तार पर विशेष ध्यान दिया जिसके तहत उसने चीन पर आक्रमण कर दिया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। मध्य भारत के पश्चिम और दक्षिण भाग में आंध्र प्रदेश तक उसने अपने क्षेत्र का विस्तार किया। शैव धर्म के उपासक विम कडफिसेस के समय के सिक्के प्राप्त हुए हैं जिन पर शिव, त्रिशूल और बैल के चित्र अंकित है।
2 कुषाण शासक कनिष्क
कुषाण वंश के सबसे प्रतापी और प्रसिद्ध राजा हुए जिनका नाम था कनिष्क। इनके इतिहास को लेकर इतिहासकारों में काफ़ी मतभेद है। कई इतिहासकार इनके कार्यकाल को ईसा से पूर्व बताते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इन्हें 100 ईस्वी के आसपास का मानते हैं। बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि जब कुषाण वंश के प्रतापी शासक कनिष्क ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया तब वहां पर जीत के बाद राजा से बड़ी रकम की मांग की। पाटलिपुत्र के विद्वान् अश्वघोष बौद्ध धर्म के अनुयाई थे।
कुषाण वंश के शासक कनिष्क से पराजित होने के बाद उन्होंने कनिष्क को उपहार स्वरूप बौद्ध धर्म के विख्यात विद्वान अश्वघोष तथा महात्मा बुद्ध के एक जल पात्र का दान किया। इन चीजों को उपहार स्वरूप प्राप्त करके राजा कनिष्क बहुत प्रसन्न हुए और पाटलिपुत्र के राजा को दंडित किए बिना ही वापस लौट गए। कौशाम्बी और श्रावन्ति नामक स्थानों से राजा कनिष्क के शिलालेख और अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनसे पता चलता है कि राजा कनिष्क का राज्य कौशाम्बी से लेकर श्रावन्ति तक फ़ैला हुआ था।
इतना ही नहीं कुषाण वंश के शासक कनिष्क ने कश्मीर पर भी अपना अधिकार कर लिया। कहा जाता है कि कनिष्क ने कश्मीर में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया था। एशिया के अधिकतर भू भाग पर अपना अधिकार जमाने के बाद कुषाण वंश के शासक राजा कनिष्क यहीं पर नहीं रुके और उन्होंने चीन पर आक्रमण करते हुए वहां के कुछ भाग पर अपना कब्जा कर लिया। इस युद्ध में पेन्यांग नामक चीनी सेनापति पराजित हुआ।
खोतान, काशगर और यारकंद नामक स्थानों पर भी कुषाण वंश (kushan vansh) का राज हो गया।
कुषाण वंश की प्रशासनिक व्यवस्था
कुषाण वंश की प्रशासनिक व्यवस्था सुनियोजित और सुदृढ़ तो थी ही साथ ही अधिकतर शक्तियां सैनिकों के हाथ में थी।कुषाण वंश की प्रशासनिक व्यवस्था की बात की जाए तो इन्होंने सुचारू रूप से शासन चलाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों को अलग-अलग प्रांतों में विभाजित कर रखा था और वहां पर उनके ऊपर अलग अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी।
इन छोटे-छोटे विभाजित प्रांतों को क्षत्रप कहा जाता था।
कुषाण वंश और धर्म
जैसा कि आपने ऊपर पड़ा जैसे-जैसे कुषाण वंश के लोग भारत के अंदर प्रवेश करते गए उन्होंने भारतीय संस्कृति और वैदिक धर्म को अपनाना शुरू कर दिया।
हालांकि अधिकतर कुषाण वंश के शासकों को बौद्ध धर्म का अनुयाई माना जाता है, कुजुल कडफीसेस बौद्ध, विम कडफीसेस शैव धर्म को मानने वाले तथा कुषाण वंश का प्रतिष्ठित राजा कनिष्क बौद्ध धर्म का कट्टर अनुयाई था जिसके प्रमाण भी इतिहास में मौजूद है।
कुषाण वंश के शासक राजा कनिष्क ने कश्मीर में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया था यह उनके बौद्ध होने का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता है।
कुषाण वंश के शासक बौद्ध धर्म के अनुयाई होने के साथ-साथ अन्य धर्मों का आदर करते थे जिनमें वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म और यूनानी धर्म से संबंधित कुषाण वंश के सिक्के प्राप्त हुए हैं जो राजा कनिष्क के समय से सम्बन्ध रखते हैं।
कुषाण वंश का साहित्य और कला में योगदान
कुषाण वंश का साहित्य और कला में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वसुमित्र जैसे बौद्ध विद्वान कुषाण शासकों के शासनकाल में ही थे। इतना ही नहीं उन्होंने कई विद्वानों और साहित्यकारों को अपने राज्य में आश्रय दिया था जिनमें मुख्यतः नागार्जुन, वसुमित्र और अश्वघोष जैसे विश्व प्रसिद्ध विद्वान कुषाण वंश शासकों के दरबार में रहते थे।
प्रज्ञापरमितासुत्र की रचना नागार्जुन ( शून्यवाद के प्रवर्तक) ने को थी। अश्वघोष ने बुधचरित की रचना की। आज तक के इतिहास की आयुर्वेद के संबंध में मुख्य और विशिष्ट रचना मानी जाने वाली “चरक संहिता” के रचीयता चरक को कुषाण वंश के शासकों ने अपने राज्य में जगह दी और उन्हें प्रोत्साहित किया। कुषाण वंश के शासक राजा कनिष्क ने बौद्ध धर्म से संबंधित कई स्तूपों का निर्माण करवाया था।
कुषाण वंश की वंशावली
कुषाण वंश के शासकों ने 30 ईसवी से लेकर लगभग 225 ईसवी तक शासन किया।कुषाण वंश के शासकों की वंशावली निम्नलिखित है-
1 कुजुल कडफीसेस (30 ईस्वी से 80 ईस्वी).
2 विम तक्षम (80 ईस्वी से 95 ईस्वी).
3 विम कडफीसेस ( 95 ईस्वी से 127 ईस्वी).
4 कनिष्क मुख्य ( 127 ईस्वी से 150 ईस्वी).
5 वसिष्क फर्स्ट (150 ईस्वी से 160 ईस्वी).
6 हुविष्क (160 ईस्वी से 190 ईस्वी).
7 वासुदेव प्रथम (ज्ञात नहीं).
8 कनिष्क II (ज्ञात नहीं).
9 वशिष्क (ज्ञात नहीं).
10 कनिष्क III (ज्ञात नहीं).
11 वासुदेव II (कुषाण वंश का अंतिम शासक कौन था).
कुषाण वंश के पतन के कारण
भारत के प्राचीन कई विशाल साम्राज्य की भांति कुशाल वंश का भी अंत हो गया कुषाण वंश के पतन के कारण निम्नलिखित है –
1 कुषाण वंश की शासन प्रणाली पूर्णतया सैनिक व्यवस्था पर आधारित थी जिसके परिणाम स्वरूप इनकी आंतरिक व्यवस्था सुदृढ़ नहीं होने की वजह से आपसी कलह शुरू हो गया, यह भी कुषाण वंश के पतन का मुख्य कारण है।
2 साम्राज्य संगठन पर कुषाण वंश का ध्यान कम था, इनका मुख्य ध्येय विजय प्राप्त करना था और इसी वजह से साम्राज्य अंदर से खोखला होता गया।
3 कुषाण वंश के शासकों से उनके अधीनस्थ राज्यों की प्रजा ज्यादा सुखी नहीं थी, कई जगह कुषाण वंश के शासकों का विरोध शुरू हो गया।
4 लचर आंतरिक व्यवस्था के चलते कुषाण वंश के शासक राजा कनिष्क द्वारा किए गए लोक कल्याण के कार्य भी ज्यादा प्रभावी रूप नहीं दिखा सके और कुषाण वंश का पतन हो गया।
5 कुषाण वंश जैसे विशाल साम्राज्य के पतन के मुख्य कारणों में एक यह भी कारण है कि जिन छोटे-छोटे राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार की, उन पर इन्होंने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया और अपने साम्राज्य में विशेष महत्व नहीं देने की वजह से उन्होंने वापस विरोध करना शुरू कर दिया।
यह भी पढ़ें-