सातवाहन वंश का इतिहास और पतन के 8 कारण
सातवाहन वंश का इतिहास भारतीय इतिहास की जड़ है. यह वंश एक प्राचीन मराठा राजवंश है जिसका कार्यकाल लगभग 300 वर्ष रहा. सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक नामक राजा ने की थी इसकी स्थापना का समय 260 ईसा पूर्व से लेकर 60 ईसा पूर्व के मध्य का माना जाता हैं. सातवाहन वंश की राजधानी प्रतिष्ठान (औरंगबाद, महाराष्ट्र) थी. सातवाहन वंश का सबसे प्रतापी गौतमीपुत्र सातकर्णी शासक था.
सातवाहन वंश की राजकीय भाषा ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा रही हैं. वैसे तो कई महान शासकों ने सातवाहन वंश का इतिहास अमर करने का काम किया है लेकिन सिमुक, सातकर्णी प्रथम, वशिष्ठिपुत्र पुलुमावी और गौतमीपुत्र सातकर्णी जैसे महान राजाओं ने जन्म लिया.
इस लेख में हम जानेंगे सातवाहन वंश का इतिहास, सातवाहन की कहानी,सातवाहन वंश के मुख्य शासक और सातवाहन वंश के पतन के कारण क्या थे?
सातवाहन वंश सामान्य ज्ञान से सम्बंधित 60 महत्वपूर्ण प्रश्न।
सातवाहन वंश का इतिहास और कहानी
परिचय बिंदु | परिचय |
सातवाहन वंश के संस्थापक | सिमुक. |
सातवाहन वंश की राजकीय भाषा | प्राकृत. |
लिपि | ब्राह्मी लिपि. |
सातवाहन वंश की राजधानी | प्रतिष्ठान (औरंगबाद, महाराष्ट्र). |
सातवाहन वंश द्वारा निर्मित गुफाएं | अजंता और एलोरा गुफाएं. |
शासन वर्ष | लगभग 300 वर्षों तक. |
शासनकाल | 230 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी तक. |
सातवाहन वंश का अन्तिम शासक | यज्ञश्री शातकर्णी. |
सातवाहन की कहानी शुरु होती हैं आज से लगभग 2200 वर्ष पूर्व. सातवाहन वंश का इतिहास प्रारंभ करने के लिए सिमुक के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, कण्व वंश के शासक सुशर्मा. दूसरी तरफ शक शासक भी प्रभावी थे. लेकिन कहते हैं कि कुछ लोगों का जन्म ही इतिहास रचने के लिए होता हैं. ऐसे ही महान सम्राट थे सीमुक जिन्होंने सातवाहन साम्राज्य की स्थापना की.
यह कतई आसान काम नहीं था, अपनी सेना को एकत्रित करके सिमुक ने कण्व वंश के शासक सुशर्मा पर धावा बोल दिया और पराजित कर दिया। शक शासकों की कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर सिमुक ने जीत हासिल की. इस अद्भुद और अविश्वसनीय जीत के बाद सिमुक ने एक नए राजवंश की स्थापना की जिसे सातवाहन वंश के नाम से जाना गया. प्रारंभ में सातवाहन की राजधानी प्रतिष्ठान (औरंगबाद, महाराष्ट्र) को बनाया गया.
वायुपुराण में भी सातवाहन के संस्थापक सिमुक के बारे में जानकारी मिलती हैं. वायुपुराण के अनुसार आंध्रजातीय सिंधुक कण्व वंश के अन्तिम शासक सुशर्मा को मौत के घाट उतारकर तथा शुंग राजवंश को समाप्त करके सातवाहन साम्राज्य को खड़ा किया,यह भी सातवाहन वंश का इतिहास जानने में मददगार हैं.
सिमुक ने विदिशा के आस पास के क्षेत्र को जीत लिया. सातवाहन वंश के प्रथम शासक सिमुक ने लगभग 23 वर्षों तक शासन किया था. सातवाहन वंश का सबसे प्रतापी शासक गौतमीपुत्र सातकर्णी था. नानाघाट चित्र फलक नामक अभिलेख में राजा सिमुक सातवाहन के बारे में जानकारी मिलती हैं, इन्होंने जैन और बौद्ध धर्म मन्दिर का निर्माण करवाया.
ज्यादातर इतिहासकार सिमूक के लिए लिखते हैं कि अपने शासन के अन्तिम पड़ाव पर उनका व्यवहार बदल गया और वो दुर्राचारी बन गए. इसी वजह से उनको मौत के घाट उतार दिया गया. सिमुक के मृत्यु के समय उनका पुत्र शातकर्णी छोटा था इसलिए इनके बाद छोटे भाई कन्ह अर्थात् कृष्णा को सातवाहन वंश का द्वितीय शासक बनने का अवसर मिला.
18 वर्षों तक सफलतापूर्वक शासन करने के बाद कृष्ण की मृत्यु हो गई. इनकी मौत के बाद सिमुक के पुत्र सातकर्णी इस वंश के अगले उत्तराधिकारी बनें. आगे चलकर यही महारठी के नाम से प्रसिद्ध हुए. मैसुर से प्राप्त सिक्कों से ज्यादा जानकारी के अनुसार इस समय महारठी बहुत ज्यादा प्रभावशाली थे. अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए सातकर्णी प्रथम ने महारठीयों की पुत्री नायानिका के साथ विवाह कर लिया, इसका यह फ़ायदा हुआ कि महारठीयों ने सातकर्णी प्रथम की अधिनता स्वीकार कर ली.
सातकर्णी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए कलिंग के राजा खारवेल ने सातकर्णी को पराजीत करने के लिए सेनाएं भेजी लेकिन सातकर्णी ने मुंह तोड़ जवाब दिया और खारवेल की सेना को वापस लौटना पड़ा. सातकर्णी धार्मिक प्रवृत्ति का राजा था, इन्होंने अश्वमेध यज्ञ का भी आयोजन किया.
सातकर्णी ने दक्षिणापथपति और अप्रतिहतचक्र जैसी उपाधि धारण कर रखी थी. इन्होंने सातवाहन वंश का डंका पूरे भारत में बजाते हुए सतवाहनों को बहुत मज़बूत स्थिति में ला खड़ा किया. इनके कार्यकाल ने इस वंश को जीवित कर दिया. गौदावारी नदी के समीपवर्ती क्षेत्रों में एक विशाल भूभाग पर इन्होंने परचम फहराया और अपना लोहा मनवाया.अब सातवाहन वंश ऐसी स्थिति में था कि यवन और शुंग वंश का मुक़ाबला कर सकें.
सातवाहन कालीन लेख या अभिलेख
1 नानाघाट लेख.
2 गौतमीपुत्र सातकर्णी के दो गुहालेख.
3 गौतमी बालश्री का नासिक का लेख.
4 वशिष्ठिपुत्र पुलुमावी का कार्ले गुहालेख.
5 वशिष्ठिपुत्र पुलुमावी का नासिक गुहालेख़.
6 यज्ञश्री शातकर्णी का नासिक गुहालेख़.
उपरोक्त अभिलेख सातवाहन वंश के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं. सातवाहन वंश का इतिहास इन अभिलेखों पर टिका हुआ है.
सातवाहन वंश की वंशावली
सातवाहन वंश का इतिहास और इसमें जन्म लेने वाले राजा दोनों ही भारत के इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. विभिन्न प्रकार के अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मुख्य 16 राजाओं ने शासन किया. सातवाहन वंश की वंशावली निम्नलिखित हैं-
1. सिमुक सातवाहन (230 ईसा पूर्व से 207 ईसा पूर्व तक).
2. कान्हा या कृष्णा सातवाहन ( 207 ईसा पूर्व से 189 ईसा पूर्व तक).
3. मालिया सातकर्णी (189 ईसा पूर्व से 179 ईसा पूर्व तक).
4. पूर्णोथंगा सातवाहन (179 ईसा पूर्व से 161 ईसा पूर्व तक).
5. सातकर्णी (161 ईसा पूर्व से 133 ईसा पूर्व तक).
6. लम्बोदर सातवाहन ( 87 ईसा पूर्व से 67 ईसा पूर्व तक).
7. हाला सातवाहन (20 ईस्वी से 24 ईस्वी तक).
8. मंडलाक सातवाहन (24 ईस्वी से 30 ईस्वी तक).
9. पुरिंद्रसेन सातवाहन (30 ईस्वी से 35 ईस्वी तक).
10. सुंदर सातकर्णी (35 ईस्वी से 36 ईस्वी तक).
11. काकोरा सातकर्णी ( approx. 36 ईस्वी तक).
12. महेंद्र सातकर्णी ( 36 ईस्वी से 65 ईस्वी तक).
13. गौतमीपुत्र सातकर्णी ( 106 ईस्वी से 130 ईस्वी तक).
14 वशिष्ठिपुत्र पुलुमावी (130 ईस्वी से 158 ईस्वी तक).
15 वशिष्ठिपुत्र सातकर्णी (158 ईस्वी से 170 ईस्वी तक).
16 यज्ञश्री शातकर्णी (170 ईस्वी से 200 ईस्वी तक).
सातवाहन साम्राज्य के पतन के कारण
भारतवर्ष में सूर्यवंश से लेकर सातवाहन वंश तक कई बड़े-बड़े राजवंशों ने राज किया और पूरे देश में उनका नाम चलता था लेकिन समय के साथ साथ उनका पतन भी हुआ. सबके पतन की वजह अलग अलग रही, यहां पर हम सातवाहन साम्राज्य के पतन के कारण जानेंगे.यज्ञश्री शातकर्णी ने 170 ईस्वी से 200 ईस्वी तक शासन किया लेकीन इनके समय ही सातवाहन वंश का पतन शुरु हो गया था.
पौराणिक तथ्यों के आधार पर यज्ञश्री शातकर्णी के बाद विजय, चंद्रश्री तथा पुलोमा ने शासन किया लेकिन इनमें से कोई भी इतना ताकतवर नहीं था कि सातवाहन वंश के पतन को रोक सके. जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा सातवाहन वंश बहुत बड़ा और विशाल था. इस वंश ने लगभग 300 वर्षों तक विभिन्न उतार चढ़ाव और कठिन परिस्थितियों के बिच राज किया लेकिन पीछे के राजा इस विशाल साम्राज्य को संभाल नहीं सकें और सातवाहन वंश का पतन हो गया.
सातवाहन वंश के पतन के कारण निम्नलिखित हैं –
[1] सातवाहन वंश के पतन का मुख्य कारण छोटे छोटे राज्यों ने स्वतंत्र सत्ता हासिल कर ली, जिनमें आभीर, इक्ष्वाकु और चूटू शातकर्णी आदि.
[2] सातवाहन वंश में जन्में अयोग्य शासक विशाल साम्राज्य को संभाल नहीं सकें, यह सातवाहन वंश के पतन का दूसरा सबसे बड़ा कारण रहा.
[3] इक्ष्वाकु वंश के लोग कभी सातवाहन वंश के सामंत हुआ करते थे लेकिन कमज़ोर शासन के चलते इन्होंने स्वतंत्र सत्ता हासिल कर ली.
[4] सातवाहन वंश में बाद में जन्में राजाओं की नीतियां धीरे धीरे जनता विरोधी होती गई।
[5] सातवाहन वंश के शासक विशाल साम्राज्य को संभाल नहीं पाए और पकड़ कमज़ोर होने से स्वतंत्र सत्ता का उदय हुआ.
[6] सातवाहन वंश ने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया था ऐसे में कई दुश्मन हो जाते हैं और जनता का भी विश्वास उठ जाता हैं यह भी सातवाहन वंश के पतन का कारण हो सकता हैं.
[7] सातवाहन वंश के राजा धीरे धीरे दुराचारी बन गए.
[8] सामंतो और मंत्रियों में सत्ता का लालच पैदा हो गया था जिसके चलते वो विद्रोह कर बैठे.सातवाहन वंश के पतन के उपरोक्त वर्णित 8 मुख्य कारण है.
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