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गौतमीपुत्र सातकर्णि इतिहास || History Of Gautamiputra satakarni

गौतमीपुत्र सातकर्णि सातवाहन वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। इन्हें वर्दिया (जिन्हें वरदान मिला हो) के नाम से भी जाना जाता है, भगवान में बहुत विश्वास करने वाले राजा थे। जब गौतमीपुत्र सातकर्णि सातवाहन वंश के सम्राट बने उस समय सातवाहन वंश कमजोर स्थिति में था और अपनी महान प्रतिष्ठा को खो चुका था। इसी प्रतिष्ठा और खोए हुए मान को पुनः प्राप्त करने के लिए गौतमीपुत्र सातकर्णि आगे आए।

गौतमीपुत्र सातकर्णि ने लगभग 25 वर्षों तक शासन किया। नासिक शिलालेखों से गौतमीपुत्र सातकर्णि की विजयों और समय के बारे में जानकारी मिलती है, यह शिलालेख उनकी माता गौतमी बालाश्री के हैं। गौतमीपुत्र सातकर्णि सातवाहन वंश के 23वें शासक थे। आगे इस लेख में हम पढ़ेंगे की गौतमीपुत्र सातकर्णि का इतिहास और जीवन परिचय क्या है? साथ ही यह भी जानेंगे कि गौतमीपुत्र सातकर्णि किस वंश से संबंधित है।

गौतमीपुत्र सातकर्णि का इतिहास और जीवन परिचय

नाम- गौतमीपुत्र सातकर्णि.
अन्य नाम- शकारी (शकनिषुदक विक्रमादित्य).
जन्म- 78 ईस्वी.
मृत्यु- 130 ईस्वी.
पिता का नाम- शिवस्वाती.
माता का नाम- गौतमी बालाश्री.
बच्चे- वसिष्ठिपुत्र पुलुमावी और वसिष्ठिपुत्र सातकर्णि.
वंश- सातवाहन वंश.
शासन अवधि- 106 ईस्वी से 130 ईस्वी तक (24 वर्ष).

अब आप जान गए होंगे कि ब्राह्मण के घर में जन्म लेने वाले गौतमीपुत्र सातकर्णि कौन था। नासिक से प्राप्त अभिलेखों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि गौतमीपुत्र सातकर्णि को वेदों का आश्रय तथा अद्वितीय ब्राह्मण के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं ये द्विजों और द्विजेतर के कुल का विनाशक भी हैं।

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पौराणिक मान्यताओं के आधार पर इन्होंने 56 वर्षों तक शासन किया था, वहीं दूसरी तरफ अगर जैन अनुश्रुति की बात की जाए तो इन्होंने 55 साल शासन किया था।

गौतमीपुत्र सातकर्णि को पहलाव, यवन और शक वंश का विनाश करने वाला माना जाता हैं इसका उल्लेख इनकी माता गौतमी बालाश्री के अभिलेखों में मिलता हैं। गौतमीपुत्र सातकर्णि की उपलब्धियों में शक शासक नह्पान और उसके वंशजों को पराजीत करना मुख्य हैं।

शक शासक नहपान को पराजित किया इसकी जानकारी जोगलथंबी से प्राप्त चांदी के सिक्कों से होती है। जब यह सिक्के प्राप्त हुए तो इनके एक तरफ गौतमीपुत्र सातकर्णि का नाम मिलता है और दूसरी तरफ शक शासक नहपान का। गौतमीपुत्र सातकर्णि ने ही सातवाहन वंश के शासकों के नाम के साथ अपनी माता का नाम जोड़ना शुरु किया था। गौतमीपुत्र सातकर्णि के काल की बात की जाए तो, इसे सातवाहन वंश के पुनरुद्धार का समय कहा जा सकता है क्योंकि इन्हीं के शासनकाल में इस वंश ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की थी।

गौतमीपुत्र सातकर्णि दक्षिण पंथ के सबसे प्रभावशाली शासक थे, जिन्होंने लगभग 24 वर्षों तक युद्ध करते हुए शासन किया। इनका साम्राज्य बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर तक फैला हुआ था। तीन समुद्रों के अधिपति महाराजा गौतमीपुत्र सातकर्णि को “त्रि-समुद्र-तोय-पीत-वाहन” के नाम से भी जाना जाता है।

इतना ही नहीं गौतमीपुत्र सातकर्णि ऋशिक (कृष्णा नदी), अयमक (पुराना हैदराबाद), मूलक (गोदावरी नदी) और विदर्भ तक फ़ैला हुआ था। इनके अलावा भी काठियावाड़, मालवा, कोकण और बरार तक इनका शासन क्षेत्र था। मातृशक्ति को बढ़ावा देने और उनका सम्मान करने के लिए सातवाहन वंश में जन्में गौतमीपुत्र सातकर्णि ने सबसे पहले इस वंश के शासकों के नाम के साथ उनकी माता का नाम जोड़ने का नया रिवाज शुरू किया था।

गौतमीपुत्र सातकर्णि का शासन काल, युद्ध और प्रजा प्रेम

इतिहास को उठाकर देखा जाए तो गौतमीपुत्र सातकर्णि की माता “गौतमी बालश्री” के नासिक से प्राप्त हुए शिलालेखों का अध्ययन करने से उनके साम्राज्य और उपलब्धियों के बारे में जानकारी मिलती है। गौतमीपुत्र सातकर्णि से संबंधित तीन शिलालेख या अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनमें से एक कार्ले से तथा दो नासिक से प्राप्त हुए हैं।

इन शिलालेखों का अध्ययन करने से गौतमीपुत्र सातकर्णि की शासनकाल और उनके युद्ध की जानकारी मिलती है. उनके शासनकाल के 18 वर्ष में नासिक का पहला अभिलेख प्राप्त हुआ जबकि 24 में वर्ष में दूसरा लेख प्राप्त हुआ.

गौतमीपुत्र सातकर्णि के युद्ध और विदेशी शासकों के साथ लड़ाई की बात की जाए तो इन्होंने यवन, पह्लव और शक वंश के शासकों को पराजित किया था। गौतमीपुत्र सातकर्णि के शासनकाल में सबसे चर्चित और ऐतिहासिक की युद्ध नहपान के साथ हुआ था। इस विनाशक और विध्वंसक के युद्ध में गौतमीपुत्र सातकर्णि ने जीत हासिल करते हुए अवंती, अनूप और सौराष्ट्र जैसे विशाल भूभाग को अपने साम्राज्य में मिला लिया और खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त किया।

नहपान के द्वारा जारी किए गए सिक्के जब गौतमीपुत्र सातकर्णि के हाथ लगे तो उन्होंने अपनी मोहर के साथ पुनः ढलवाया था। गौतमीपुत्र सातकर्णि ने वीणाकटक (नासिक) नामक नगर बसाया. धार्मिक दृष्टि से भी इनका कार्यकाल स्वर्णिम माना जाता है, उन्होंने ना सिर्फ हिंदू और सनातन धर्म का प्रचार प्रसार किया जबकि दूसरे धर्मों को भी बराबरी का दर्जा दिया।

बौद्ध धर्म को मानने वाले तथा बौद्ध धर्म भिक्षुओं को इन्होंने अजकालकिम (महाराष्ट्र) तथा करजक ( महाराष्ट्र) जैसे क्षेत्र सौंपकर साबित कर दिया कि उनके लिए सभी धर्म समान है. गौतमीपुत्र सातकर्णि की लोकप्रियता प्रजा के बीच में बहुत अधिक थी, यही वजह रही कि उनके जीते जी उनके ऊपर कई कविताएं लिखी गई।

गौतमीपुत्र सातकर्णि कि शासन प्रबंध व्यवस्था

नहपान के जुन्नार लेख के अनुसार 124 ईसवी में महाराष्ट्र पर गौतमीपुत्र सातकर्णि का शासन था. नासिक अभिलेख के अनुसार अपने शासन के 18 वर्ष में इन्होंने महाराष्ट्र पर विजय प्राप्त की और नहपान को पराजित किया था। अपने शासनकाल में गौतमीपुत्र सातकर्णि ने छोटे-छोटे राज्यों को अलग-अलग व्यक्तियों के हाथों में दे रखा था ताकि सुचारू रूप से शासन व्यवस्था को चलाया जा सके और अधिकतम प्रजा हित हो सके।

गौतमीपुत्र सातकर्णि की मृत्यु

गौतमीपुत्र सातकर्णि का कार्यकाल युद्ध करते हुए ही बिता लेकिन 26 वर्ष तक सफलतापूर्वक शासन करने और अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के पश्चात गौतमीपुत्र सातकर्णि की मृत्यु हो गई। गौतमीपुत्र सातकर्णि सातवाहन वंश के 23वें शासक थे।

गौतमीपुत्र सातकर्णि की उपलब्धियां और मुख्य बातें

गौतमीपुत्र सातकर्णि ने सातवाहन वंश और प्रजा के लिए कई मुख्य कार्य किए, इन्हीं कार्यों को गौतमीपुत्र सातकर्णि की उपलब्धियों के तौर पर देखा जाता है। गौतमीपुत्र सातकर्णि की उपलब्धियां निम्नलिखित है –

[1] गौतमीपुत्र सातकर्णि सातवाहन वंश के सबसे सर्वश्रेष्ठ और प्रतापी शासक थे।

[2] गौतमीपुत्र सातकर्णि ने वीणाकटक (नासिक) नामक नगर बसाया था।

[3] गौतमीपुत्र सातकर्णि के शासनकाल में सरकारी आई के मुख्य साधनों में नमक कर, न्याय शुल्क कर तथा भूमिकर मुख्य थे।

[4] इन के शासनकाल में तांबे तथा कांस्य के साथ-साथ सीसे के सिक्के भी काफी प्रचलित हुए।

[5] गौतमीपुत्र सातकर्णि ने बौद्ध भिक्षु तथा बौद्ध मंदिर का बड़े पैमाने पर निर्माण किया था। यह गौतमीपुत्र सातकर्णि की मुख्य उपलब्धि मानी जाती हैं क्योंकि इन्होंने धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया था।

[6] गौतमीपुत्र सातकर्णि ने सातवाहन वंश की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए पुरजोर प्रयास किए और अपने शासन काल में युद्ध लड़ते हुए इस प्रतिष्ठा को पुनः हासिल किया।

[7] गौतमीपुत्र सातकर्णि की उपलब्धियों की बात की जाती है तो प्रजा प्रेम और खुशहाल प्रजा का नाम जरूर आता है।

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