मार्तंड सूर्य मंदिर का इतिहास

मार्तंड सूर्य मंदिर का इतिहास आज से लगभग 1400 वर्ष पुराना है. इसका निर्माण 7वीं और 8वीं सदी के मध्य किया गया था. कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर उत्तर भारत का एक मात्र सूर्य मंदिर है. मार्तंड का अर्थ होता हैं सुर्य अर्थात् सूर्य का पर्यायवाची शब्द है मार्तंड. उस समय मार्तंड सूर्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध था.

जब भी हम सूर्य मंदिर का जिक्र करते हैं तो हमारे मानस में सबसे पहला नाम कोणार्क का सूर्य मंदिर याद आता है. क्या आप जानते हैं एक समय में कश्मीर का सूर्य मंदिर भी काफी प्रसिद्ध था लेकीन समय के फेर और मज़हबी ताकतों की वजह से इसका अस्तित्व मिटा दिया गया. आज भी इस मंदिर के अवशेष मौजूद हैं और यकीनन आने वाले समय में इसका जीर्णोद्धार करवाया जा सकता हैं.

Martand Surya Mandir का निर्माण कारकोट वंश के तृतीय शासक ललितादित्य मुक्तापीड ने करवाया था. जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग के समीप स्थित मार्तंड मंदिर का निर्माण 8वीं सदी के करीब भगवान सूर्य की उपासना के लिए किया गया था. सूर्य भगवान का एक नाम या प्रयायवाची मार्तंड भी है. यही वजह है कि इसे मार्तंड मंदिर या मार्तंड सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है.

इस मंदिर का जिक्र कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध कवि श्री कल्हण जी की पुस्तक “राजतरंगिणी” में भी मिलता है, जिससे मार्तंड मंदिर के इतिहास की जानकारी मिलती हैं.

मार्तंड सूर्य मंदिर का इतिहास

निर्माणकर्ता- सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड.
निर्माण अवधि- 7वीं और 8वीं सदी के मध्य.
निर्माण स्थान- अनंतनाग (कश्मीर).
ध्वस्तकर्ता- मुस्लिम शासक सिकंदर शाह मुरी.
खंडित करने की अवधि- 15वीं सदी में.
शैली- कश्मीरी वास्तु शैली.
संबंध- हिंदु धर्म.

मार्तंड का अर्थ होता हैं सुर्य अर्थात् मार्तंड का पर्यायवाची शब्द है सूर्य और यही वजह है कि इसे मार्तंड सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता हैं.

मध्यकालीन भारत में एक ऐसा युग आया जिसमें लाखों की तादाद में हिंदु मंदिरों को विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने नुकसान पहुंचाया, जिसमें कश्मीर स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर भी एक था. धार्मिक दृष्टि से विश्व विख्यात उत्तरी भारत का यह एक मात्र मंदिर था लेकीन अब इस मंदिर के अवशेष मात्र शेष हैं. मार्तंड सूर्य मंदिर का इतिहास हर व्यक्ति को जानना जरूरी है ताकि इसका स्वर्णिम इतिहास को प्रत्येक व्यक्ति जान सकें.

मार्तंड मंदिर को पहाड़ के ऊपर बनाया गया, जहां से पूरी कश्मीर घाटी साफ तौर पर देखी जा सकती हैं. मार्तंड सूर्य मंदिर के निर्माण की बात की जाए तो इस मंदिर के निर्माण में वर्गाकार चूना-पत्थर का इस्तेमाल हुआ जिससे कि इसकी मजबूती कई वर्षों तक बनी रहे. मार्तंड सूर्य मंदिर को “कश्मीरी वास्तु शैली” का नायाब नमूना माना जाता है. इस मंदिर परिसर में 84 खंभे और 220 फुट लंबा चबूतरा जिसकी चौड़ाई 142 फुट थी भी मौजुद था लेकीन अब यह बहुत ही जर्जर अवस्था में है.

महाराजा ललितादित मुक्तापिड़ ने मार्तंड सूर्य मंदिर बनवाया ताकि आने वाली हजारों पीढ़ियां इस प्राचीन और गौरवशाली मन्दिर का वैभव देख सके लेकीन असामाजिक तत्वों की वजह से यह खंडहर बन गया.

मंदिर को कैसे तोड़ा गया?

आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व मुस्लिम आक्रांताओं की नज़र इस विश्व प्रसिद्ध मार्तंड सूर्य मंदिर पर पड़ी. अपने जिहादी मनसूबों को पूरा करने के लिए 15 वीं सदी में तत्कालीन मुस्लिम शासक सिकंदर शाह मुरी ने इसको तोड़ने के लिए भरसक प्रयास शुरु किए. लेकिन इसकी बनावट और मजबूती के कारण उसको सफलता नहीं मिली. लेकीन वह लगातार हमला करता रहा क्योंकी उसको हिंदु धार्मिक स्थल का नामोनिशान जो मिटाना था.

धीरे-धीरे समय निकलता गया लेकिन मार्तंड सूर्य मंदिर पर होने वाले हमलों में कोई कमी नहीं आई. इन्हीं हमलों की वजह से यह मंदिर बहुत ही जर्जर अवस्था में पहुंच गया. जब हिंदुओं पर अत्याचार बढ़ने लगे तो लोग अपनी जान बचाने के लिए घाटी को छोड़कर चले गए. हिन्दुओं के पलायन के बाद मार्तंड सूर्य मंदिर की सुध लेते वाला कोई नहीं बचा.

हालांकि A.S.I. ने Martand Surya Mandir को पुनर्स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास किए मगर अभी तक इसका पुनर्निर्माण नहीं हुआ है. आने वाले समय में निश्चित रूप से यह मंदिर अपनी अवस्था में खड़ा जरूर होगा. ना सिर्फ मार्तंड सूर्य मंदिर बल्कि हजारों मंदिरों को ऐसे ही तोडा गया.

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