पृथ्वीराज रासो में शामिल भ्रामक तथ्य

पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित पृथ्वीराज रासो में कई भ्रामक तथ्य शामिल हैं. इसकी नामक ग्रंथ की रचना कवि चंदबरदाई ने थी. यह ग्रंथ पृथ्वीराज चौहान के सम्पूर्ण इतिहास को दर्शाता है,लेकिन एक संशय यह हैं कि क्या यह ग्रंथ अपने मूल रूप में हैं या इसमें तथ्यों से छेड़-छाड़ हुई? देश विदेश के कई इतिहासकार और लोग पृथ्वीराज रासो को सत्य और सटीक मानते हैं.

भारत का इतिहास वास्तव में वह नहीं हैं जो आप और हम जानते हैं. इतिहासकरों ने अपने अपने हिसाब से इसका वर्णन किया है. लेकिन इस लेख के माध्यम से हम पृथ्वीराज रासो में शामिल उन मुख्य घटनाओं का ज़िक्र करेंगे जो भ्रामक है.

पृथ्वीराज रासो की सच्चाई

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास पृथ्वीराज रासो के इर्द-गिर्द घूमता है लेकिन इतिहास का गहराई से अध्ययन करने से पता चलता है कि पृथ्वीराज रासो में कई भ्रामक तथ्य मौजूद हैं. इन तथ्यों का अध्ययन करने से हमें पृथ्वीराज रासो की सच्चाई का पता चलेगा.

पृथ्वीराज रासो में शामिल भ्रामक तथ्य निम्मलिखित है-

(1). पृथ्वीराज रासो काव्य रूप में छपा है जिसमें संवत स्पष्ट रूप से लिखें गए हैं. हम सभी जानते हैं कि 1192 ईस्वी में तराइन के द्वितीय युद्ध के पश्चात पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हुई थी लेकिन पृथ्वीराज रासो में चंदरबदई ने पृथ्वीराज चौहान का मृत्यु वर्ष 1101 लिखा है, जो बहुत ही भ्रामक प्रतीत होता है.

(2). एकादश से पंचदह विक्रम साक अनंद।

तीही रिपुपुर जय हरन को भे पृथ्वीराज नरिंद।।

इस श्लोक के माध्यम से कवि चंदरबदई ने पृथ्वीराज चौहान की जन्म तिथि बताई है. इसका अर्थ यह हुआ कि विक्रम संवत् 1114 या 1057 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ था. पृथ्वीराज रासो में लिखी यह बात भी भ्रामक लगती है क्योंकी यह संवत् एक शताब्दी पहले का हैं.

(3). पृथ्वीराज रासो के अनुसार मेवाड़ के रावल समर सिंह तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के साथ 1101 ईस्वी में वीरगति को प्राप्त हुए. रावल रतन सिंह ( रावल समर सिंह के पुत्र) 1302 ईस्वी में मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठे. सोचने वाली बात यह है कि समर सिंह की मृत्यु के पश्चात उनका पुत्र 200 वर्षों पश्चात् कैसे गद्दी पर बैठ सकता हैं. अतः पृथ्वीराज रासो में शामिल है बात भी भ्रामक प्रतीत होती है.

(4). पृथ्वीराज रासो का अध्ययन करने से पता चलता है कि पृथ्वीराज चौहान की बहिन का विवाह मेवाड़ के रावल समर सिंह के साथ हुआ था. मेवाड़ के रावल समर सिंह का राजतिलक 1273 ईस्वी में हुआ था, पृथ्वीराज चौहान उन से 100 वर्ष पूर्व थे अतः यह बात सत्य प्रतीत नहीं होती है.

(5). पृथ्वीराज रासो में मेवाड़ के शासक रावल रतन सिंह और रानी पद्मावती के बारे में भी चर्चा की गई है. पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंदरबदई ने लिखा की अलाउद्दीन खिलजी से पराजित होने के बाद रानी पद्मावती को कैद कर लिया गया. यह घटना 1303 ईस्वी की है अर्थात कवि चंदरबदई की मृत्यु से भी लगभग 100 वर्ष बाद की. अब सोचने वाली बात यह है कि चंदरबदई ने पृथ्वीराज रासो में अलाउद्दीन खिलजी और रावल रतन सिंह के बारे में पहले ही कैसे लिख दिया.

(6). कई प्रशस्तियों और लेखों से ज्ञात होता है कि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद भी कई वर्षों तक गुजरात के शासक भीमदेव सोलंकी जीवित रहे. पृथ्वीराज रासो की सच्चाई पर सवालिया निशान खड़ा होता है कि इसमें पृथ्वीराज चौहान द्वारा भीमदेव सोलंकी को मारने की बात लिखी गई है.

(7). पृथ्वीराज रासो में उज्जैन के राजा भीमदेव परमार की पुत्री इंद्रावती का विवाह पृथ्वीराज चौहान के साथ हुआ ऐसा लिखा गया है जबकि परमार वंश की वंशावली में भीमदेव नाम का कोई राजा हुआ ही नहीं. यह भी पृथ्वीराज रासो की प्रमाणिकता पर सवाल खड़ा करता है.

(8). पृथ्वीराज रासो में कवि चंदरबदई ने सिकंदर को मोहम्मद गौरी का बाप बताया है लेकिन यह सत्य नहीं है क्योंकि सिकंदर, मोहम्मद गोरी से 1300 वर्ष पहले था. मोहम्मद गौरी के पिता का नाम बहाउद्दीन था.

(9). पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता के पिता राजा जयचंद के बारे में पृथ्वीराज रासो में लिखा हुआ है कि गंगा नदी में डूबने से उनकी मृत्यु हुई. अब जरा सोचने वाली बात यह है कि कवि चंदरबदई की मृत्यु 1192 ईसवी में हो गई थी जबकि कन्नौज के राजा जयचंद की मृत्यु 1194 ईस्वी में हुई थी.

राजा जयचंद की मृत्यु से 2 वर्ष पूर्व ही चंदरबदई की मृत्यु हो गई थी इसलिए यह बात वह पृथ्वीराज रासो में लिख ही नहीं सकता है. अतः पृथ्वीराज रासो के संबंध में यह जानकारी भी भ्रामक प्रतीत होती है.

(10). पृथ्वीराज रासो के 1 दोहे में छंदों की संख्या 7 बताई है लेकिन समय के साथ इसमें वृद्धि होती गई और अब यह 16300 तक पहुंच गई है, अतः पृथ्वीराज रासो की मूल प्रति में बहुत बड़ा बदलाव हो गया है.

(11). पृथ्वीराज रासो का अध्ययन करने से पृथ्वीराज रासो की प्रमाणिकता पर सवाल उठना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि इसमें ना तो पृथ्वीराज के जन्म की तिथि का सही उल्लेख है ना उनके विवाह और मृत्यु की तिथि का उल्लेख है. इतना ही नहीं उन्होंने जो युद्ध लड़े उनका भी संपूर्ण विवरण इसके अंदर लिखा हुआ नहीं है. कई घटनाएं तो ऐसी शामिल हैं जो लेखक चंदरबदई की मृत्यु के बाद की है.

(12). इतिहासकारों का एक बड़ा तबका यह मानता है कि पृथ्वीराज रासो के मूल रूप में कई विकृतियां आ गई है जबकि कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि पृथ्वीराज रासो की रचना 1518 ईस्वी में हुई थी अतः इसके बारे में प्रमाणित रुप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. हां लेकिन इतना तो तय है कि पृथ्वीराज रासो को विकृत किया गया है.

(13). हम वर्षों से सुनते आए हैं कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को मारा था और इस समय उनके दरबारी कवि चंदरबदई ने एक श्लोक बोला…

“चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।।

लेकिन हाल ही में पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित फिल्म में इस श्लोक को कहीं भी नहीं दिखाया गया है.

(14). पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान के समय राजपूत शब्द अस्तित्व में नहीं था, जब भी इसी पृथ्वीराज रासो में कई ऐसे राजाओं का उल्लेख किया गया है जिनके नाम के साथ राजपूत शब्द लगा है.

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