अजबदे पंवार का इतिहास || History Of Rani Ajabde Punwar

अजबदे पंवार का इतिहास मेवाड़ी वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के साथ जुड़ा हुआ है. यह महाराणा प्रताप की पहली पत्नी और कुंवर अमर सिंह (महाराणा प्रताप का ज्येष्ठ पुत्र) की मां थी. इनका जन्म सिसोदिया वंश के राव रामरख पंवार था. महाराणा प्रताप की पहली पत्नी अजबदे पंवार और महाराणा प्रताप की कहानी बहुत ही दिलचस्प है. अजबदे पंवार साहसी, बुद्धिमान, कोमल हृदय और चंचल स्वभाव की थी, इन्हीं विशेषताओं ने महाराणा प्रताप का दिल जीत लिया.

भारत का इतिहास उठाकर देखा जाए तो कई ऐसे राजा महाराजा हुए हैं जिनकी प्रेम कहानियां इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है. उनमें से एक महाराणा प्रताप की प्रेम कहानी भी है. क्या आप जानते हैं कि अजबदे पंवार का इतिहास क्या हैं? अजबदे पंवार और महाराणा प्रताप कहां मिले? अजबदे पंवार कौन थी? महाराणा के साथ इनकी शादी कैसे हुई और अजबदे की मृत्यु कैसे हुई? अगर नहीं तो इस लेख को अंत तक पढ़े.

अजबदे पंवार का इतिहास (History Of Ajabde Punwar)

पूरा नाम- रानी अजबदे बाई पंवार (सिसोदिया).
अजबदे पंवार जन्म तारीख- 1542 ईस्वी.
अजबदे पंवार का जन्म स्थान- बिजौलिया (भीलवाड़ा).
अजबदे पंवार की मृत्यु- 1576 ईस्वी.
मृत्यु स्थान- चावंड.
पिता का नाम- राव रामरख पंवार / माम्रख पंवार.
माता का नाम - हंसा बाई.
पति का नाम - वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप.
पुत्र- अमर सिंह और भगवान दास.
अजबदे पंवार के गुरू- विठ्ठल राय (मथुरा).

“महाराणा प्रताप और अजबदे पंवार की प्रेम कहानी” के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. महाराणा प्रताप और अजबदे एक दुसरे को उनकी शादी से पहले जानते थे. इन दोनों के बीच अटूट विश्वास और सम्मान का भाव था जो बाद में जाकर प्रेम में तब्दील हो गया. महाराणा और अजबदे के बीच आपसी विश्वास का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि शादी से पूर्व ही मेवाड़ के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रताप उनसे चर्चा किया करते थे.

यह मित्रता धीरे धीरे प्रेम में बदल गई. इसका यह नतीजा हुआ कि महाराणा प्रताप ने महज़ 17 वर्ष की आयु में रानी अजबदे से विवाह कर लिया. इस समय रानी अजबदे की आयु मात्र 15 वर्ष थी.

महाराणा प्रताप की पहली पत्नी होने के नाते इनका ओहदा भी मेवाड़ राजघराने में बहुत बड़ा था. महारानी अजबदे पंवार हर वक्त महाराणा प्रताप का साया बनकर उनके साथ रहती थी और उनके हर काम में भागीदारी निभाती. महाराणा प्रताप भी इनकी बुद्धिमत्ता और कुशलता से बहुत प्रभावित थे. राणा की बहुत बड़ी समर्थक होने की वजह से उनकी माता का विश्वास भी महारानी अजबदे पंवार पर बहुत अधिक था.

महाराणा प्रताप की प्रेम कहानी परवान चढ़ी और परिणामस्वरूप 1557 ईस्वी में महाराणा प्रताप और अजबदे पंवार का विवाह हुआ था,विवाह के 2 वर्ष बाद 16 मार्च 1559 में कुंवर अमर सिंह का जन्म (मचिंद, राजसमंद) हुआ. कई इतिहासकार बताते हैं कि महाराणा प्रताप और अजबदे पंवार के एक पुत्र और था था जिसका नाम भगवान दास था.

महाराणा प्रताप को उनकी माता की छवि उनकी प्रिय पत्नी अजबदे पंवार के अन्दर दिखती थी. जब भी वो अजबदे पंवार (Rani Ajabde Punwar) से बात करते उन्हें उनकी माता की याद आती. यही वजह थी कि प्रताप और अजबदे पंवार के बीच घनिष्ठ प्रेम था.

अजबदे पंवार और महाराणा प्रताप का विवाह

जैसा कि आप जानते हैं कि महाराणा प्रताप और रानी अजबदे पहले ही एक दूसरे को जानते थे. शादी से पहले रानी महाराणा प्रताप की राजनैतिक कामों में बहुत मदद करती और अच्छी राय दिया करती थी. लेकिन आगे चलकर राजनैतिक कारणों से ही इन दोनों में दूरियां बढ़ गई.

महाराणा उदयसिंह मारवाड़ में युद्ध जीतकर आए तो उनके साथ प्रताप भी थे. वापस लौटते समय रानी अजबदे पंवार के पिता राव मम्रक सिंह सिसोदिया ने उदय सिंह और प्रताप को बिजौलिया में आमंत्रित किया. जब प्रताप वहां पहुंचे तो रानी अजबदे के साथ साथ उनके दिल की धड़कन भी बढ़ गई.

वहां पर मौजुद पुरोहितों और सामंतो ने नदी के किनारे पूजा पाठ के पश्चात् महाराणा प्रताप और रानी अजबदे की शादी करवा दी गई.

अजबदे पंवार कौन थी और उनका योगदान

मेवाड़ प्रदेश में बिजौलिया (भीलवाड़ा) प्रथम श्रेणी का ठिकाना था कि पंवार राजपूतों इस श्रेणी में एकमात्र ठिकाना था. वर्तमान में यह भीलवाड़ा जिले में स्थित हैं. इसी जगह पर रानी अजबदे पंवार का जन्म हुआ.

1567 ईस्वी में अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया, इसके बाद महाराणा प्रताप और उनकी पत्नी अजबदे पंवार राजपीपला नामक स्थान पर चले गए. ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप के साथ उनकी पत्नि ने भी यहां पर लगभग 3 से 4 महीने का समय बिताया.

इस समय मेवाड़ के शासक थे महाराणा उदयसिंह लेकिन सन 1572 ईस्वी में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात उनके जेष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप को गद्दी पर बिठाया, सबसे बड़ी रानी होने की वजह से अजबदे पंवार को पटरानी कहा जाने लगा.

महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच में 1576 ईस्वी में हुए विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में राव रामरख पंवार / माम्रख पंवार , डूंगरसिंह पंवार (अजबदे पंवार के भाई), पहाड़सिंह पंवार (अजबदे पंवार के भाई) ने इस युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ दिया और वीरगति को प्राप्त हुए.

मुगलों से संघर्ष के दौरान जंगलों में रहने की सलाह भी महारानी अजबदे पंवार ने दी थी. जब तक महाराणा प्रताप इन संघर्ष के दिनों में जंगलों में रहे, रानी ने उनका पूरा साथ दिया. महारानी के इस साथ ने प्रताप के हौसले को दोगुना कर दिया. आगे चलकर महारानी के एक और भाई शुभकरण पवार ने भी महाराणा प्रताप के बाद अमर सिंह का पूरा साथ दिया था.

अजबदे की मृत्यु कैसे हुई?

अजबदे पंवार ने उनके जीवन का आखिरी समय चावंड में बिताया. 1590 ईस्वी में महारानी अजबदे पंवार की मृत्यु हो गई. अजबदे पंवार मृत्यु का कारण स्पष्ट रूप से तो पता नहीं है लेकिन कहते हैं कि चोट लगने की वजह से इनकी मृत्यु हो गई. अजबदे पंवार की मृत्यु के पश्चात 7 वर्ष बाद महाराणा प्रताप ने भी प्राण त्याग दिए.

अजबदे पंवार की मृत्यु के पश्चात इनका अंतिम संस्कार भी चावंड में ही किया गया.

अजबदे पंवार के सम्बन्ध में भ्रामक तथ्य

ऐतिहासिक तथ्यों की कमी और सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करने की वजह से रानी अजबदे पंवार के संबंध में कई भ्रामक तथ्य महाराणा प्रताप पर आधारित धारावाहिक में दिखाए गए हैं जो कि पूर्णतया गलत है.

(1). टीवी पर प्रसारित एक सीरियल में अकबर के सैनिकों द्वारा रानी अजबदे पंवार को मौत के घाट उतारना.
(2). महाराणा प्रताप और अजबदे पंवार का विवाह से पूर्व बार बार मिलना.
(3). अजबदे पंवार का मेवाड़ राजघराने में अपमान और बिजौलिया भेजना.

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