सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अकबर और तानसेन का किस्सा

अकबर और तानसेन का एक किस्सा बहुत प्रचलित है. जब संगीत के सम्राट तानसेन अकबर के दरबार में आलाप भरते तो पूरे दरबार का माहौल बदल जाता था. अकबर के नौ रत्नों में शामिल तानसेन जब अपने संगीत का जादू बिखेरते थे, तब मुगल बादशाह अकबर के साथ-साथ उनकी चापलूसी करने वाले दरबारी भी वाह-वाह करने लग जाते. अकबर को संदेह था कि वास्तव में इन दरबारियों को तानसेन का संगीत समझ में भी आता है या चापलूसी के चलते वाहवाही करते हैं. जब भी अकबर के मन में कोई सवाल आता तो वह बीरबल के साथ चर्चा करता. इस झूठी वाहवाही को पकड़ने के लिए भी अकबर ने बीरबल का सहारा लिया. बीरबल ने निकाला समाधान, अकबर था हैरान अकबर ने बीरबल से कहा कि इस दरबार में संगीत सम्राट तानसेन के संगीत पर पूरा दरबार मेरे साथ वाहवाही करता है. मुझे लगता है यह सब ढोंग कर रहे हैं. मुझे खुश करने के लिए वाहवाही कर रहे हैं. अकबर ने बीरबल को आदेश दिया कि कैसे भी करके इसकी सच्चाई का पता लगाया जाए. बीरबल ने अकबर को आश्वासन दिया कि बहुत जल्द इस मर्ज की दवा ढूंढ ली जाएगी. दूसरे ही दिन बीरबल ने अकबर की आज्ञा लेकर दरबार में संगीत का आयोजन करवाया. अकबर के जितने भी दर...

बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार || (Bal Gangadhar Tilak Quotes

बाल गंगाधर तिलक स्वतंत्रता सेनानी तो थे ही इसके साथ-साथ वह प्रखर राष्ट्रवादी, शिक्षाविद ,समाजसुधारक, अधिवक्ता और देश प्रेमी थे. बाल गंगाधर तिलक के राजनैतिक विचार, सामाजिक विचार और सफलता के विचार आज भी बहुत प्रासंगिक हैं. बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार और कोट्स हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल सकते हैं. जो व्यक्ति अपने जीवन में कोई मुकाम प्राप्त करना चाहता है या किसी भी क्षेत्र में सफल होना चाहता हैं तो उसे निश्चित तौर पर बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार पढ़ने चाहिए. बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार – इस लेख में बाल गंगाधर तिलक के 25 अनमोल विचार आपको बताने जा रहे हैं- 1. स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा. 2. आपका लक्ष्य स्वयं को प्राप्त करना पड़ेगा, यह किसी जादू से पूरा नहीं होगा. 3. आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते हैं. जो मेहनत करते हैं, भगवान उनकी मदद करते हैं इसलिए आज से ही काम करना शुरू करें. 4. अपनी कमजोरियों पर ध्यान नहीं दें, शक्तिशाली बने और यह विश्वास रखें कि भगवान हमेशा आपके साथ हैं. 5. मानव स्वाभाविक रूप से उत्सव प...

गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति

गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति छठी शताब्दी में हुई थी. नागभट्ट प्रथम को गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है. वहीं दूसरी तरफ गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति दक्षिण पश्चिम राजस्थान और गुजरात में हुई थी. गुर्जर प्रतिहार वंश गुर्जरों की ही एक शाखा हुआ करते थे. प्रतिहार वंश के अभिलेखों में इस वंश को रामायण कालीन लक्ष्मण जी का वंशज होना लिखा गया है जो द्वारपाल का काम करते थे. इस वंश में नागभट्ट प्रथम, मिहिरभोज, महेंद्रपाल और महिपाल जैसे शासक हुए हैं. इस लेख में हम गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के सम्बंध में चर्चा करेंगे. गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति की कहानी “गुर्जर” कभी एक जगह का नाम हुआ करता था जिसे आज गुजरात (गुर्जरात) के नाम से जाना जाता हैं. गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति को लेकर आज भी इतिहासकार एकमत नहीं है. इस राजवंश के लोग अपने कबीले को प्रतिहार नाम से बुलाते थे. एक प्रतिहार शासक बाकुका के शिलालेख में साफ़ तौर पर लिखा गया है कि भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी ने द्वारपाल (प्रतिहार) का ज़िम्मा उठाया था इसलिए आज वंश को गुर्जर प्रतिहार वंश के नाम से जा...

पुष्यभूति वंश सामान्य ज्ञान || Pushyabhuti Vansh Gk

पुष्यभूति वंश सामान्य ज्ञान के प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं. यहाँ 66 महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नों का समावेश किया गया हैं. पुष्यभूति वंश सामान्य ज्ञान पुष्यभूति वंश सामान्य ज्ञान पर आधारित 66 प्रश्न और उनके उत्तर निम्नलिखित हैं- 1. पुष्यभूति वंश की स्थापना किसने की थी? उत्तर- पुष्यभूतिवर्धन. 2. पुष्यभूति वंश का सबसे प्रतापी राजा कौन था? उत्तर- हर्षवर्धन. 3. सम्राट हर्षवर्धन गद्दी पर कब बैठा था? उत्तर- 606 ईस्वी में. 4. पुष्यभूति वंश का संस्थापक कौन था? उत्तर- पुष्यभूति वर्धन. 5. पुष्यभूति वंश की स्थापना कब हुई थी? उत्तर- छठी शताब्दी में. 6. पुष्यभूति वंश की राजधानी कहां पर थी? उत्तर- थानेश्वर, अम्बाला (हरियाणा). 7. पुष्यभूति वंश कि शासन अवधि क्या थी? उत्तर- 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक. 8. पुष्यभूति वंश को अन्य किस नाम से जाना जाता है? उत्तर- वर्धन वंश. 9. पुष्यभूति वंश का अंतिम सम्राट कौन था? उत्तर- सम्राट हर्षवर्धन. 10. सम्राट हर्षवर्धन का दरबारी कवि कौन था? उत्तर- बाणभट्ट. 11. “हर्षचरित” के रचयिता कौन हैं? उत्तर- बाणभट्ट. 12. किस पुष्य...

गुर्जर प्रतिहार वंश की कुलदेवी कौन हैं?

गुर्जर प्रतिहार वंश की कुलदेवी माता चामुण्डा हैं. इस वंश का इतिहास इस बात का गवाह हैं कि, माता की असीम कृपा से इस वंश के राजा युद्ध से पहले मां का आशीर्वाद लेकर युद्धभूमि में जाते थे. प्रतिहार वंश को ही गुर्जर प्रतिहार वंश के नाम से जाना जाता हैं. दक्षिण पश्चिम राजस्थान और गुजरात में उत्पन्न यह वंश गुर्जरों की ही एक शाखा हैं. इस लेख में हम गुर्जर प्रतिहार वंश की कुलदेवी चामुण्डा माता के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे. गुर्जर प्रतिहार वंश की कुलदेवी चामुण्डा माता का संक्षिप्त परिचय गुर्जर प्रतिहार वंश की कुलदेवी चामुण्डा माता, माता पार्वती का ही रूप हैं. दुर्गा सप्तशती में चामुण्डा माता के नाम की उत्पति को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित हैं जिसके अनुसार कई वर्षों पुर्व शुम्भ और निशुंभ नामक दो दैत्यों का राज़ था. ये दैत्य धरती और स्वर्ग दोनों ही जगह अत्याचार करते थे. इनके अत्याचारों से परेशान होकर धरतीवासी और स्वर्गवासी हिमालय की तलहटी में माता की उपासना की. मान सरोवर में स्नान करने आई माता पार्वती ने जब यह देखा तो उन्होंने एक कन्या को प्रकट किया जो शुम्भ और निशुंभ को मार सके. ...

पुष्पक विमान || History Of Pushpak Viman

पुष्पक विमान का नाम सुनते ही रावण की याद आ जाती है. रामायण काल में पुष्पक विमान लंकापति रावण के पास था. रावण से पहले यह विमान कुबेर के पास था लेकिन कालांतर में रावण ने पुष्पक विमान कुबेर से छीन लिया. पुष्पक विमान के रचियता विश्वकर्मा थे. कुबेर रावण के बड़े भाई थे. रावण ने कुबेर से ही स्वर्ण की लंका और पुष्पक विमान छीना था. रावण ने माता सीता का हरण किया और पुष्पक विमान में बैठकर लंका पहुंचा. इतना ही नहीं रावण की मृत्यु के पश्चात भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण जी और विभीषण जी के साथ साथ अन्य साथी पुष्पक विमान में बैठकर लंका से अयोध्या पहुंचे थे. इस लेख में हम पुष्पक विमान (Pushpak Viman) के संबंध में विस्तृत रूप से जानेंगे. पुष्पक विमान का इतिहास और निर्माण पुष्पक विमान का इतिहास अति प्राचीन है. इसके निर्माण की तिथि के संबंध में विशेष प्रमाण मौजूद नहीं है. ऋग्वेद में पुष्पक विमान के साथ-साथ 200 से अधिक विमानों का बारे में जानकारी दी गई है. इन विमानों में तीन पहिए वाले विमान, त्रिभुजाकार के विमान और तीन मंजिल वाले विमानों का विशेष उल्लेख मिलता है. उल्लेखित विमानों में से अधिकतर विमानो...

पुष्यभूति वंश का इतिहास || History Of Pushyabhuti Vansh

पुष्यभूति वंश का संस्थापक “ पुष्यभूति ” था, जिन्होंने छठी शताब्दी में “पुष्यभूति वंश” की स्थापना की थी. गुप्त वंश या साम्राज्य के पतन के साथ इस वंश का उदय हुआ. हूणों के साथ हुए ऐतिहासिक युद्धों के चलते इस वंश ने संपूर्ण भारत में ख्याति प्राप्त की. पुष्यभूति वंश का इतिहास इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसमें हर्षवर्धन जैसे महान शासक ने जन्म लिया. पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति भगवान शिव के परम भक्त और बड़े उपासक थे. इस वंश के शासक शैव धर्म को मानने वाले थे. पुष्यभूति वंश का इतिहास देखा जाए तो इसमें मुख्य तीन राजा हुए हैं, जिनमें प्रभाकर वर्धन, राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन का नाम मुख्य है. पुष्यभूति वंश का इतिहास/वर्धन वंश पुष्यभूति वंश का संस्थापक पुष्यभूति. पुष्यभूति वंश की स्थापना छठी शताब्दी. पुष्यभूति वंश की राजधानी थानेश्वर, अम्बाला (हरियाणा). धर्म हिंदू, सनातन. शासन काल 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक. मुख्य शासक प्रभाकरवर्धन, राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन. पुष्यभूति वंश का अन्य नाम वर्धन वंश. पुष्यभूति वंश का अन्तिम शासक सम्राट हषर्वर्धन. पुष्यभूति वंश का इतिहास ग...