तात्या टोपे का इतिहास जीवन परिचय || History Of Tatya Tope
तात्या टोपे का जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले में सन 1814 ईस्वी में हुआ था. तात्या टोपे का मूल या वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर था, जो एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे. भारत में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वजह से तात्या टोपे को याद किया जाता हैं. 1857 की क्रांति में एक महान सेनानायक रहे टोपे ने भारत को स्वतंत्र करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
महारानी लक्ष्मीबाई और नाना साहब पेशवा जैसे वीर पुरुषों के साथ इन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ़ अभियान चलाए. इस लेख में हम तात्या टोपे का जीवन परिचय और सम्पूर्ण इतिहास को जानेंगे.
तात्या टोपे का इतिहास और जीवन परिचय
पूरा नाम | रामचंद्र पांडुरंग येवलकर. |
जन्म तिथि | 16 फरवरी 1814. |
जन्म स्थान | नासिक (महाराष्ट्र). |
मृत्यु तिथि | 18 अप्रैल 1859 ईस्वी. |
मृत्यु स्थान | शिवपुरी (मध्य प्रदेश). |
मृत्यु के समय आयु | 45 वर्ष. |
पिता का नाम | पांडुरंग त्र्यंबक. |
माता का नाम | रूक्मणी बाई. |
प्रसिद्धि | प्रसिद्धि- स्वतंत्रता सेनानी. |
भाषा | मराठी और हिन्दी. |
तात्या टोपे का इतिहास हमारे लिए गर्व का विषय हैं. जब-जब भारत की पवित्र भूमि पर दुश्मनों के पैर पड़े तब-तब यहां पर ऐसे शुरवीरों का जन्म हुआ हैं, जिन्होंने दुश्मनों का समूल नाश कर दिया. भारतवर्ष में लगभग 200 वर्षों तक ब्रिटिश हुकूमत रही जिसे उखाड़ फेंकना जरूरी था.
ऐसे में देश को आज़ाद कराने की ज़िम्मा उठाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और वीरों की बहुत लंबी लिस्ट है लेकिन इस लेख में हम बात करेंगे तात्या टोपे की. जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए बिताया और भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान दिया.
अगर भारत में सभी राजा महाराजाओं के बीच एकता होती तो अंग्रेज कभी भी भारत में कदम नहीं जमा सकते थे. यह हमारी ही कमी रही कि कुछ लोगों ने अंग्रेजों का विरोध किया तो कुछ लोगों ने उनसे हाथ मिलाकर उनका व्यापार बढ़ाने में सहयोग किया.
जब अंग्रेजों ने भारत में अपनी जड़ें मजबूत कर ली तो व्यापार के साथ-साथ यहां के लोगों का दमन और अत्याचार करने लगे. अत्याचार और परतंत्रता को खत्म करने के लिए तात्या टोपे जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों का जन्म हुआ. तात्या टोपे ने अपनी गतिविधियों से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया, साथ ही झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का भरपूर सहयोग किया.
तात्या टोपे का इतिहास पढ़ने से ज्ञात होता हैं कि उनके जीवन काल में लगभग 150 युद्ध अंग्रेजो के खिलाफ लड़े, जिसमें अंग्रेजों को बड़ी संख्या में सैन्य हानि हुई और उनके करीब 10000 सैनिक मारे गए.
तात्या टोपे का प्रारंभिक जीवन और परिवार
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे का जन्म 16 फरवरी 1814 के दिन महाराष्ट्र के नासिक के समीप एक छोटे से गांव येवला में हुआ था. ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले तात्या टोपे बचपन से ही अपने देश से बहुत प्रेम करते थे. जब भी अंग्रेजों के अत्याचारों की खबर को सुनते तो उनका खून खौल उठता था.
स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के पिता रामचंद्र पांडुरंग येवलकर पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां धार्मिक कार्यों को करते थे. तात्या टोपे समेत आठ भाई-बहन थे जिनमें तात्या टोपे सबसे बड़े थे. ऐसा कहा जाता है कि तात्या टोपे की प्रारंभिक शिक्षा रानी लक्ष्मी बाई के साथ हुई.
लगातार अपना साम्राज्य विस्तार करने के लिए अंग्रेज भारतीय राजाओं से उनके साम्राज्य छीन रहे थे, इसी कड़ी में अंग्रेजों का मुकाबला सन 1818 ईस्वी में पेशवा बाजीराव द्वितीय से हुआ. इस युद्ध में पेशवा बाजीराव की पराजय हुई और उन्हें कानपुर (बिठूर) जाना पड़ा. जब तात्या टोपे महज 4 वर्ष के थे तब वह अपने पिता के साथ कानपुर चले गए जहां पर पेशवा बाजीराव के साथ धार्मिक कार्यों को आगे बढ़ाया.
कानपुर के बिठूर गांव में ही तात्या टोपे ने युद्ध कला सीखी और नाना साहब के साथ पढ़ाई भी की.
तात्या टोपे को यह उपाधि किसने और क्यों दी
तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर था. तात्या टोपे उन्हें उपाधि दी गई थी. तात्या टोपे जब बड़े हुए तो उन्होंने कई जगह नौकरी की लेकिन वहां पर उनका मन नहीं लगा यह सब देखकर पेशवा बाजीराव द्वितीय ने उन्हें अपने यहां मुंशी का काम दिया.
उस समय पेशवा बाजीराव को अंग्रेजों की ओर से ₹800000 प्रति वर्ष पेंशन के रूप में मिलते थे जिनका संपूर्ण हिसाब किताब और लेखा-जोखा तात्या टोपे के पास था. और भी कई कर्मचारी थे जो तात्या टोपे के साथ थे और बाजीराव का काम देखते थे.
एक बार की बात है तात्या टोपे ने अपने विभाग में एक ऐसे कर्मचारी को पकड़ा जो भ्रष्ट था. यह देख कर पेशवा बाजीराव द्वितीय बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने एक रत्न जड़ित टोपी सम्मान स्वरूप तात्या टोपे को भेंट की. तब से रामचंद्र पांडुरंग येवलकर को “तात्या टोपे” (Tatya Tope) के नाम से जाना जाने लगा.
तात्या टोपे (Tatya Tope) कोई नाम ना होकर उपाधि थी जो उन्हें पेशवा बाजीराव द्वितीय द्वारा प्रदान की गई थी.
तात्या टोपे का 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे का अतुलनीय योगदान रहा. पेशवा बाजीराव द्वितीय के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने नाना साहब को गोद लिया. पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने उनके परिवार को पेंशन देने से मना कर दिया, इतना ही नहीं नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी मानने से भी इंकार कर दिया.
इस बात को लेकर नाना साहब और तात्या टोपे (Tatya Tope) अंग्रेजों से नाराज हो गए. इसी नाराजगी के चलते दोनों ने मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ अभियान चलाना शुरु किया और कई षड्यंत्र रचे. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे ने सक्रिय रूप से भाग लिया. नाना साहेब ने अपनी सेना का नेतृत्व तात्या टोपे के हाथ में सौंप दिया.
तात्या टोपे नाना साहब के सबसे विश्वसनीय थे. नाना साहब और तात्या टोपे ने मिलकर अपनी करीब 20000 सेना के साथ 1857 में ही कानपुर पर हमला कर दिया, जिसमें भयंकर युद्ध के बाद नाना साहब की हार हुई. इस युद्ध के पश्चात् भी कई बार नाना साहब और अंग्रेजी सेनाएं आमने सामने हुई लेकिन हर बार नाना साहब को हार का सामना करना पड़ा.
अंततः नाना साहब ने हार मानकर भारत छोड़ दिया और हमेशा के लिए अपने परिवार के साथ नेपाल चले गए. नाना साहब के चले जाने के बाद भी तात्या टोपे अंग्रेजों से लोहा लेते रहे लेकिन हर बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक Tatya Tope को पकड़ना चाहते थे लेकिन वह हाथ में नहीं आए.
तात्या टोपे की युद्ध प्रणाली
मराठा पेशवा की मुख्य युद्ध प्रणाली थी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली जिसमें तात्या टोपे भी पारंगत थे. यह युद्ध प्रणाली छापामार युद्ध प्रणाली के नाम से भी जानी जाती हैं. इसमें छुपकर अचानक से दुश्मनों पर हमला किया जाता है और तबाही मचाकर सैनिक पुनः अपनी-अपनी जगहों पर चले जाते हैं, जिससे दुश्मन सेना को संभलने का मौका ही नहीं मिलता है.
वह गुरिल्ला युद्ध प्रणाली ही थी जिसके दम पर तात्या टोपे ने लंबे समय तक अंग्रेजों का सामना किया और कभी पकड़ में नहीं आए. एक बार अंग्रेजों ने लगभग 2800 मील तक तात्या टोपे का पीछा किया लेकिन उन्हें नहीं पकड़ सके.
तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई
तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई एक दूसरे को बचपन से ही जानते थे और एक दूसरे के अच्छे मित्र भी थे. नाना साहब के चले जाने के बाद तात्या टोपे अपनी छोटी सी सेना के साथ समय-समय पर अंग्रेजों की नाक में दम करते रहे.
जिस तरह से अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय द्वारा गोद लिए गए नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया था ठीक वैसे ही रानी लक्ष्मीबाई द्वारा गोद लिए पुत्र को अंग्रेजों ने उस राज्य का वारिस मानने से मना कर दिया. इसके पिछे अंग्रेजों की मंशा थी कि उनका अगर कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा तो संपूर्ण राज्य उनके अधिकार में आ जाएगा.
जब यह खबर तात्या टोपे को लगी तो वह आग बबूला हो गए और रानी लक्ष्मीबाई का साथ देने के लिए कमर कस ली. दूसरी तरफ रानी लक्ष्मीबाई ने भी मदद के लिए तात्या टोपे के सामने हाथ फैलाए.
सन 1857 में अंग्रेजी सेना ने सर ह्यूरोज के के नेतृत्व में झांसी पर धावा बोल दिया. रानी लक्ष्मीबाई को तात्या टोपे का साथ मिलने से मजबूती मिली और अंग्रेजों का डटकर सामना किया. अंग्रेज सत्ता विस्तार के लिए युद्ध कर रहे थे जबकि रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे. युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे की जीत हुई और दोनों झांसी से कालपी चले गए.
विशाल अंग्रेजी सेना का सामना करने के लिए तात्या टोपे ने जयाजी राव सिंधिया के सामने संधि प्रस्ताव रखा जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. जयाजी राव सिंधिया और तात्या टोपे ने मिलकर ग्वालियर के किले पर अधिकार कर लिया. यह अंग्रेजों की सोच के बिल्कुल विपरीत था.
इस घटना के बाद अंग्रेजों का पूरा ध्यान तात्या टोपे (Tatya Tope) पर आ गया और उन्हें किसी भी हालत में पकड़ने के लिए भरसक प्रयास करने लगे, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे कहां उनके हाथ आने वाले थे.
दूसरी तरफ 18 जून 1858 में ग्वालियर में अंग्रेजों को रानी लक्ष्मीबाई के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें रानी लक्ष्मीबाई को पराजय का सामना करना पड़ा. स्वयं को आग के हवाले करते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रजों को चकमा दिया.
क्या तात्या टोपे कभी अंग्रेजों की पकड़ में आए?
इसका जवाब हैं, नहीं. अंग्रेजों ने भरसक प्रयास किए लेकिन तात्या टोपे कभी उनके हाथ नहीं आए. अंग्रेजों ने हर विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया और अपना दबदबा कायम किया लेकिन एक हसरत उनके दिल में बाकी रह गई थी और वह थी तात्या टोपे को नहीं पकड़ पाना.
तात्या टोपे (Tatya Tope) अंग्रेजों के लिए एक अबूझ पहेली के समान थे, जो समय-समय पर ठिकाना बदलते रहे और अंग्रेजों को चकमा देते रहे.
तात्या टोपे की मृत्यु कैसे हुई?
एक कहावत है “घर का भेदी लंका ढाए” जिसका अर्थ होता हैं कि यदि हमारा अपना ही कोई अपना भेद दुश्मनों के दे तो सर्वनाश निश्चित है. तात्या टोपे के साथ भी ऐसा ही हुआ. 7 अप्रैल 1859 ईस्वी का दिन था सत्ता के लालच में आकर राजा मानसिंह ने अंग्रेजों को तात्या टोपे के पाडौन के जंगल में छिपे होने की गुप्त सूचना दे दी, जहां से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया जिसकी सुनवाई करते हुए उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. बाद में 18 अप्रैल 1859 ईस्वी में Tatya Tope को फांसी पर चढ़ा दिया गया.
लेकिन इतिहासकारों का एक तबका यह भी मानता है कि उन्हें फांसी की सजा नहीं दी गई. तात्या टोपे और राजा मानसिंह ने मिलकर एक साजिश रची और तात्या टोपे की जगह किसी दूसरे व्यक्ति को अंग्रेजों के हाथों सौंप दिया और तात्या टोपे बाद में गुजरात चले गए.
बाद में तात्या टोपे का भतीजा सामने आया था और उन्होंने भी यह बताया कि तात्या टोपे को कभी फांसी की सजा नहीं सुनाई गई. गुजरात में उन्होंने 1909 में अंतिम सांस ली. यह कहा जा सकता हैं कि Tatya Tope Death एक अबूझ पहेली के समान हैं.
तात्या टोपे की समाधि या तात्या टोपे की छतरी
तात्या टोपे का समाधि स्थल शिवपुरी में स्थित है. कानपुर में भी तात्या टोपे का स्मारक बना हुआ है. तात्या टोपे की छतरी सीकर में है.
FAQ
[1] तात्या टोपे लक्ष्मीबाई के क्या थे?
उत्तर- तात्या टोपे लक्ष्मी बाई के बचपन के मित्र और सहपाठी थे. साथ ही 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था.
[2] तात्या टोपे को फांसी क्यों दी गई?
उत्तर- गोरिल्ला युद्ध प्रणाली में माहिर तात्या टोपे ने अंग्रेजों को बहुत परेशान किया था, जिसके चलते उन्हें फांसी की सजा दी गई.
[3] तात्या टोपे का बलिदान दिवस कब है?
उत्तर- प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को तात्या टोपे का बलिदान दिवस मनाया जाता है.
[4] तात्या टोपे की छतरी कहां है?
उत्तर- तात्या टोपे की छतरी सीकर में है.
[5] तात्या टोपे को कब फांसी पर चढ़ाया गया था?
उत्तर- तात्या टोपे को 18 अप्रैल 1859 ईस्वी में फांसी पर चढ़ाया गया था.
[6] तात्या टोपे ने कितने युद्ध लड़े?
उत्तर- तात्या टोपे ने अपने जीवन काल में करीब 150 युद्ध लड़े.
[7] तात्या टोपे का नारा क्या था?
उत्तर- “तात्या टोपे को पढ़ो और फिर लड़ो” यह नारा था.
[8] तात्या टोपे का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर- तात्या टोपे का वास्तविक नाम “रामचंद्र पांडुरंग येवलकर” था.
[9] तात्या टोपे को किसने धोखा दिया?
उत्तर- तात्या टोपे को नरवर के राजा मानसिंह ने धोखा दिया था.
[10]. तात्या टोपे कि मृत्यु के समय आयु कितनी थी?
उत्तर- तात्या टोपे की मृत्यु के समय आयु 45 वर्ष थी.
Post a Comment