रावल खुमाण द्वितीय का इतिहास || History Of Rawal Khuman 2
रावल खुमाण द्वितीय का इतिहास (Rawal Khuman 2)- रावल खुमाण एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने भारत के राजाओं को अरबों के खिलाफ एकछत्र के निचे लाकर खड़ा कर दिया. रावल खुमाण बप्पा रावल के वंशज थे. इन्होंने सम्पूर्ण भारत के लगभग 1200 राजाओं को अरबी आक्रांताओं से लड़ने के लिए बुलाया लेकिन 40 राजा ही अपनी सेना के साथ एकजुट होकर मातृभूमि की रक्षा के लिए आगे आए.
आज से लगभग 1200 वर्ष पूर्व की बात हैं. अरबी आक्रांता सम्पूर्ण विश्व में इस्लामीकरण करने के उद्देश्य से भारत की तरफ बढ़ रहे थे. ऐसे में जरुरत थी एक ऐसे राजा की जो इन आक्रांताओं को उनकी भाषा में जवाब दे सके. यह राजा रावल खुमाण द्वितीय के नाम से जाने जाते हैं. इस लेख में हम मेवाड़ के राजा रावल खुमाण द्वितीय का इतिहास और जीवन परिचय के बारे में जानेंगे.
रावल खुमाण द्वितीय का इतिहास जीवन परिचय (History Of Rawal Khuman 2)
परिचय बिंदु | परिचय |
पूरा नाम | रावल खुमाण द्वितीय (Rawal Khuman 2). |
शासन अवधि | 820 ईस्वी से 860 ईस्वी तक. |
कहाँ के राजा | चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) वर्तमान राजस्थान. |
वंशज | बप्पा रावल. |
ऐतिहासिक स्रोत | खुमाण रासो. |
बप्पा रावल के बाद मेवाड़ में रावल खुमाण द्वितीय नाम के तीन राजा हुए लेकिन हम इस लेख में रावल खुमाण द्वितीय का इतिहास पढ़ रहे हैं. 8वीं सदी से लेकर 10वीं सदी के मध्य अरबी आक्रांताओं से लोहा लेने के कारण रावल खुमाण अधिक प्रसिद्ध हैं. अगर ऐतिहासिक प्रमाणों की बात की जाए तो इनके सम्बन्ध में बहुत कम प्रमाण मौजूद हैं लेकिन दलपत विजय द्वारा लिखित “खुमाण रासो“ नामक ग्रन्थ से इनके बारे में जानकारी मिलती हैं. यह ग्रन्थ राजस्थानी भाषा की देवनागरी लिपि में लिखा गया हैं.
रावल खुमाण कि शासन अवधि 820 ईस्वी से 860 ईस्वी तक थी. इन 40 वर्षों में खुमाण ने पुरे भारत को इस्लामीकरण से बचाया. बप्पा रावल की मृत्यु के बाद कई दशकों तक इन अरबियों की भारत की तरफ आँख उठाने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन खुमाण के समय अरब खलीफा ने “हाशिम” नामक सेनापति को एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण करने के लिए भेजा.
अरब सेनापति हाशिम नापाक मंसूबों के साथ समुद्री मार्ग से गुजरात होते हुए राजस्थान में प्रवेश किया. हाशिम का सामना राजा नागभट्ट के नेतृत्व वाले संगठन से हुआ. इस युद्ध में हाशिम और उसकी अरबी सेना की बुरी हार हुई. इस हार से अरबी आक्रमणकारी बौखला गए.
रावल खुमाण द्वारा भारत के राजाओं को एकजुट करना
अरबी आक्रांताओं का उद्देश्य सिर्फ युद्ध जीतना नहीं होता था बल्कि बलात्कार और लुटपाट करने के साथ-साथ यहाँ से हिन्दू लड़कियों को बंदी बनाकर ले जाना और अरब के बाजारों में बोली लगाना भी इनका मुख्य उद्देश्य था. ऐसे में इनका सामना करने के लिए रावल खुमाण को बड़ी और विश्वसनीय सेना की जरुरत थी.
रावल खुमाण ने भारत के सभी छोटे और बड़े राजाओं को साथ आने के लिए प्रेरित किया। रावल खुमाण के नेतृत्व में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के 40 राजवंश अपनी सेना के साथ एकजुट होकर मेवाड़ पहुंचे।
केसरिया ध्वज के निचे खड़े होकर रावल खुमाण ने ललकारा “हमारे धर्म स्थलों और मंदिरों को नष्ट करने वाले आक्रांताओं , बहिन- बेटियों की इज्जत लूटने वाले राक्षसों और अरब की मंडियों में हमारी बेटियों की बोली लगाने वाले इन अरबी कुंठित और दूषित मानसिकता के भेड़ियों को समूल ख़त्म करने के लिए आज हम सब यहाँ एक साथ खड़े हैं. आज इन भेड़ियों को नहीं मारा गया तो कुछ ही समय में पूरा हिंदुस्तान दूषित हो जायेगा.
भारत की सेना का रावल खुमाण द्वितीय के नेतृत्व में एकजुट होना एक ऐसी घटना थी जो भारत के इतिहास में फिर कभी घटित नहीं हुई, इतनी बड़ी संख्या में सैनिक पहली और आखिरी बार एकजुट हुए थे.
रावल खुमाण और महमूद का युद्ध
अमरकाव्यम नामक ग्रन्थ का अध्ययन करने से ज्ञात होता हैं कि रावल खुमाण द्वितीय और महमूद जिसे मामून का नाम से भी जाना जाता के बिच युद्ध हुआ था. रावल खुमाण की ललकार सुनते ही सम्पूर्ण वातावरण में हर-हर महादेव का नारा गूंज उठा. रावल खुमाण की इस सेना में एक लाख रावल, 30 लाख से ज्यादा अश्वारोही , 9 हजार हाथी, 7 लाख पैदल सैनिक थे. यह पहला और अंतिम मौका था जब पुरे भारत के हिन्दू राजा एकजुट हुए थे.
अमरकाव्यम नामक ग्रन्थ के अनुसार रावल खुमाण की इस विशाल सेना ने महमूद जिसे मामून के नाम से भी जाना जाता हैं जैसे अरबी आक्रांताओं के नेतृत्व वाली अरबी सेना को गाजर-मूली की तरह काट दिया, और महमूद को बंदी बना लिया गया. खुमाण ने 24 से ज्यादा बड़े युद्ध में जीत हासिल की और इस्लामी आक्रांताओं को खदेड़ कर पुरे मध्य एशिया पर केसरिया झंडा फहरा दिया.
इस युद्ध में में महमूद को बंदी बना लिया गया और बाद में ज़िंदा छोड़ दिया गया. यह भारत के राजाओं की खामी रही हैं कि उन्होंने समय-समय पर इन राक्षसों को युद्ध में पराजित करने के बाद भी जीवित छोड़ दिया जबकि इतिहास में यह कहीं नहीं मिलता कि किसी अरबी ने किसी भारत के राजा को जिन्दा छोड़ा हो.
अपने समय में रावल खुमाण ने 24 बड़े युद्धों में जीत हासिल की थी. मेवाड़ के पड़ोसी राज्य जिनमें गुजरात,आबू, कश्मीर, तारागढ़, मालवा, नाड़ोल, सिंध और मारवाड़ रावल खुमाण द्वितीय के मुख्य सहयोगी थे. देखते ही देखते रावल खुमाण ने इराक, ईरान, गजनी, अरब, और तुर्की तक अपना परचम फहरा दिया था.
आज अगर विश्व में 15% हिन्दू बचे हुए हैं तो इसका पूरा श्रेय रावल खुमाण को जाता हैं. लेकिन यह विडंबना हैं कि आज बहुत कम लोग इनका नाम जानते हैं. एक अंग्रेजी इतिहासकार इवान ऑस्टिन ने लिखा “बप्पा रावल और खुमाण जैसे हिन्दू वीरों के कारण ही विश्व इस्लामी खिलाफत बनने से बच पाया.
रावल खुमाण द्वितीय कि मृत्यु या सन्यास?
लगभग सम्पूर्ण मध्य एशिया में अपना परचम फहराने के बाद मेवाड़ के वीर राजा खुमाण द्वितीय ने मेवाड़ राज्य को उनके छोटे भाई जोगराज को सौंप दिया और सन्यास ले लिया था, कुछ समय बाद इन्होंने जीवित समाधी ली. लेकिन कई इतिहासकार यह भी बताते हैं कि रावल खुमाण को उनके पुत्र मंगल ने सत्ता के लिए मौत के घाट उतर दिया था.
जो भी हो यह रावल खुमाण द्वितीय की वजह से ही अरबी आक्रांता कई वर्षों तक भारत की तरफ आँख उठाने से भी डरने लग गए.
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