राणा पूंजा भील थे या राजपूत- राणा पूंजा को लेकर एक नया विवाद पिछले कुछ समय से शुरु हुआ है कि राणा पूंजा भील थे या राजपूत? राणा पूंजा महाराणा प्रताप के मुंह बोले भाई थे, जिन्होंने 18 जून 1576 ईस्वी में हुए हल्दीघाटी के युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे. इतना ही नहीं राणा पूंजा को गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का जनक माना जाता है.
राणा पूंजा का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है, उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में अपने शौर्य और पराक्रम से मुगलों को टिकने नहीं दिया और यही वजह रही कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई.
हालांकि हल्दीघाटी के युद्ध में राणा पूंजा के अलावा भी कई वीर योद्धा थे जिन्होंने मातृभूमि की आन-बान और शान के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन क्योंकि हम राणा पूंजा की बात कर रहे हैं, तो सिर्फ यहां पर उन्हीं का नाम लिया गया है.
हालांकि यह विवाद का विषय नहीं है कि राणा पूंजा भील थे या राजपूत लेकिन इस लेख के माध्यम से हम दोनों ही पक्षों के संबंध में तर्क-वितर्क करेंगे ताकि आपको समझ में आ जाए कि वास्तविक रूप से राणा पूंजा भील थे या राजपूत.
राणा पूंजा भील थे या राजपूत
राणा पूंजा भील थे या राजपूत इन दोनों बिंदुओं पर हम चर्चा करेंगे-
राणा पूंजा के भील होने के संदर्भ में तर्क
सभी इतिहासकारों ने राणा पूंजा के भील होने का दावा किया है. राणा पूंजा भील के भील होने के संदर्भ में निम्नलिखित बिंदु विचारणीय हैं-
[1] मेवाड़ के इतिहास पर आधारित वीर विनोद नामक पुस्तक में भी राणा पूंजा भील लिखा गया हैं.
[2] क्योंकि राणा पूंजा, भीलों के राजा कहलाते थे, किसी एक समाज का कोई राजा नहीं हो सकता हैं इससे यह स्पष्ट होता हैं कि राणा पूंजा भील ही थे.
[3] राणा पूंजा के पिताजी का नाम दूदा होलंकी था ना कि सोलंकी, जो लोग राणा पूंजा को सोलंकी बताते हैं वो गलत हैं. इस आधार पर भी यह कहा जा सकता हैं कि राणा पूंजा भील थे, ना कि राजपूत.
[4] अगर राणा पूंजा भील नहीं होते तो सदियों से भील समाज ही इनकी जयंती क्यों मनाती रही हैं.
[5] मेवाड़ के राज्य चिन्ह में एक तरफ महाराणा प्रताप का फोटो हैं तो दूसरी तरफ राणा पूंजा भील का, ऐसा कहा जाता हैं कि मेवाड़ की सेना में भीलों का योगदान विशेष रहा हैं. बप्पा रावल समय से लेकर भीलों ने निःस्वार्थ मेवाड़ की सेवा की जिसके चलते भीलों के सरदार राणा पूंजा भील को राज्य चिन्ह में जगह मिली होगी.
राणा पूंजा भील को राजपूत मानने वालों का तर्क
राणा पूंजा को राजपूत कहने वाले तर्क देते हैं कि राणा पूंजा के दादाजी राव हरपाल सिंह जी सोलंकी को महाराणा उदय सिंह जी ने राणा की उपाधि दी इसलिए राणा पूंजा को सोलंकी वंश का माना गया हैं. लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राणा पूंजा के दादाजी का नाम हरपाल सिंह सोलंकी नहीं होकर हरपाल सिंह होलंकी था.
जो भी हो मेवाड़ के लिए अपनी जान दांव पर लगाने वीर योद्धाओं पर सवाल खड़ा नहीं करना चाहिए.
राणा पूंजा बहुत बड़े वीर और देशभक्त थे उनका आदर और सत्कार करना हमारा फर्ज हैं. इस पर पक्ष-विपक्ष नहीं होना चाहिए. दोस्तों उम्मीद करते हैं राणा पूंजा भील थे या राजपूत? पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा, धन्यवाद.
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