भगवान के संबन्ध में चाणक्य की 10 बातें
भगवान के संबन्ध में चाणक्य– आचार्य चाणक्य बहुत विद्धवान थे उनके आचार-विचार और उनके द्वारा पढ़ाया गया पाठ आज के समय में बहुत प्रासंगिक हैं. आचार्य चाणक्य ने उनके द्वारा लिखित पुस्तक “चाणक्य निति” में विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखे थे. भगवान के सम्बन्ध में भी चाणक्य ने अपने विचार व्यक्त किए थे.
आचार्य चाणक्य द्वारा भगवान/ईश्वर/परमात्मा के सम्बन्ध में कही गई बातें इस लेख में बताई गई हैं.
परमात्मा/भगवान के संबन्ध में चाणक्य के विचार (चाणक्य निति)
भगवान के संबन्ध में चाणक्य की बातें-
[1] ईश्वर जो तीनों लोक के स्वामी हैं के चरणों में शीश झुकाते हुए मैं सभी के अच्छे के लिए राजनैतिक सिद्धांतों का उल्लेख करता हूँ.
[2] चाणक्य कहते हैं जिनकी माता लक्ष्मी, पिता ईश्वर और भगवान भक्त जिनके दोस्त हो ऐसे व्यक्ति तीनों लोक स्वदेश होते हैं.
[3] किसी को स्वयं की तारीफ नहीं करनी चाहिए यह समाज का काम हैं
[4] भगवान के संबन्ध में चाणक्य कहते हैं हे ईश्वर मैं आपके चरणों की पूजा करते हुए अपना जीवन जीना चाहता हूँ.
[5] श्री कृष्ण के चरणों के अनुराग में ही मुझे खुशी हैं. अर्थात भगवान की भक्ति में ही चाणक्य को सच्ची खुशी मिलती हैं.
[6] राघव को सम्बोधित करते हुए चाणक्य कहते हैं गुरु के प्रति विनम्रता, आचरण में पवित्रता, दान में उत्साह, वाणी में मधुरता, धर्म में तत्परता, दोस्तों से निष्कपटता, मन में गंभीरता, शास्त्रों के ज्ञान की अभिलाषा, गुणों के प्रति आकर्षण यह सब आपकी भक्ति में ही संभव हैं.
[7] आचार्य चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति पराई स्त्री को माता के समान और पराए धन को मिट्टी के जैसा समझता हो और सभी पदार्थों में आत्मा का वास मानता हो वह सबसे बड़ा ज्ञानी हैं.
[8] भगवान के संबन्ध में चाणक्य कहते हैं दुर्जन लोगों का त्याग करते हुए, साधुओं की संगत में रहकर हरी स्मरण करते रहना चाहिए.
[9] जो मनुष्य गलत आचरण करता हो उसका जन्म अर्थहीन हैं.
[10] अपने हाथों से बनाई गई माला, स्वयं द्वारा घिसा गया चन्दन, स्वयं द्वारा लिखे ग्रन्थ से पूजा करने वाले का तेज ख़त्म हो जाता हैं. अतः कभी भी आत्मप्रशंसा नहीं करनी चाहिए.
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