चाणक्य निति स्त्री या औरतों के लिए चाणक्य के विचार

चाणक्य निति स्त्री– आचार्य चाणक्य ने कई मुद्दों पर अपनी बात रखी थी जो आज के समय में भी सही और सटीक लगती हैं. चाणक्य निति में स्त्री/महिला पर भी बात की गई हैं. चाणक्य निति में भगवान, मित्र, स्त्री, परिवार, धर्म आदि के बारे में खुल कई लिखा गया हैं. इस लेख में आप जानेंगे कि महिलाओं के बारे में चाणक्य की बातें या फिर यह कहें कि चाणक्य निति स्त्री के बारे में क्या कहती हैं.

चाणक्य निति स्त्री या औरतों के लिए चाणक्य के विचार

आचार्य चाणक्य द्वारा स्त्री के सम्बन्ध में कही गई मुख्य बातें

[1] स्त्री भगवान से भी अधिक शक्तिशाली और भार वहन करने वाली होती हैं.

[2] स्त्री के कठोर कुचों और जंघाओं का मर्दन करना चाहिए नहीं तो आपका यौवन व्यर्थ हैं.

[3] धन के द्वारा स्त्री की रक्षा की जा सकती हैं. धन और स्त्री से सावधान रहना चाहिए क्योंकि दोनों ही कभी भी धोखा दे सकते हैं.

[4] विवाह हमेशा कुलवती स्त्री से ही करना चाहिए, कुलवती स्त्री चाहे कुरूप क्यों न हो दूसरी ओर कितनी भी सुन्दर होने के बाद भी निम्न कुल की कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए.

[5] पुरुष की अपेक्षा स्त्री को कोमल माना गया हैं. स्त्री में पुरुष की तुलना में चार गुना अधिक लाज/लज्जा /शर्म होती हैं, दो गुना भोजन करती हैं, छः गुना साहस होता हैं और आठ गुना वासना.

[6] दोस्त, राजा और गुरु की पत्नी और सास (पत्नी की माता) माता के समान मानी गई हैं इसके बारे में गलत विचार रखने वाला या अवैध सम्बन्ध रखने वाला सबसे बड़ा पापी माना गया हैं.

[7] महिला या स्त्री की प्रीति (प्रेम) की डोर मजबूत होती हैं जैसे लकड़ी में छेद करने में सक्षम भौंरा कमल की पंखुड़ियों से बाहर नहीं निकल सकता हैं.

[8] जब किसी पुरुष को यह भ्रम हो जाता हैं कि कोई स्त्री उस पर मोहित हैं जो वह उस स्त्री के हाथ का मोहरा बन ताउम्र उसके इर्द-गिर्द नाचता रहता हैं अर्थात स्त्री के हाथ का खिलौना बन जाता हैं.

[9] चाणक्य के अनुसार जो स्त्री बिना कारण के दूसरों से बात करती हैं, दूसरों को ध्यान से देखती हैं और उनके बारें में सोचती हैं वह एक पुरुष की होकर नहीं रहती हैं.

[10] आचार्य चाणक्य कहते हैं जो स्त्री अपने पति की आज्ञा के खिलाफ उपवास या व्रत करती हैं वह अपने पति की आयु कम करती हैं और नरक में जाती हैं अतः बिना पति की आज्ञा के व्रत या उपवास नहीं करना चाहिए.

[11] एक स्त्री अपने पति के चरण धोकर पिने से ही पवित्र होती हैं.

[12] लोभ करना, लालच करना, निर्दयता दिखाना, झूठ बोलना, अचानक साहस का दिखाना, छल करना, भीतरी अपवित्रता स्त्री का स्वाभाविक रूप हैं.

[13] चाणक्य के अनुसार जो स्त्री चतुर, पतिव्रता, सत्यवादी, पति को प्रेम करने वाली और पवित्र ऐसी पत्नी पाने वाला भाग्यशाली होता हैं.

[15] चाहे कितना भी विद्वान क्यों नहीं हो स्त्री पर मंत्रमुग्ध हो जाता हैं.

[16] आचार्य चाणक्य के अनुसार स्त्री चाहे कितनी भी बूढ़ी क्यों ना हो जाए वह खुद को जवान ही समझती हैं यह सत्य हैं.

[17] चाणक्य ने स्त्री को संसार का सबसे बड़ा आकर्षण माना हैं.

[18] पुरुष को सुन्दर स्त्री से अपनी रक्षा करनी चाहिए. उसका रूप-यौवन मांस,हड्डी, खून और चर्बी से ही तो बना हैं.

[19] हर स्त्री का सुख एक जैसा होता हैं.

[20] मासिक धर्म की समाप्ति के बाद ही स्त्री से सम्बन्ध बनाना चाहिए- आचार्य चाणक्य.

[21] विश्व की ज्यादातर घटनाएँ स्त्री की वजह से हुई हैं, इसलिए साधुगण कभी भी इनके मोह में नहीं पड़ते हैं.

[22] चाणक्य के अनुसार स्त्री जो सुबह माता के जैसे, दिन में बहिन के जैसे और रात्रि में वेश्या के जैसा व्यवहार करें वह अच्छी और कुशल रमणी मानी जाती हैं.

[23] बुद्धिमान और समझदार व्यक्ति कभी भी स्त्री की कही बातों पर नहीं चलते हैं क्योंकि चाणक्य कहते हैं स्त्री सभी पारिवारिक झगड़ों की जड़ होती हैं.

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