लाखोटा बारी चित्तौड़गढ़ फोर्ट के उत्तरी भाग पर स्थित हैं जिसका निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा करवाया गया था. प्राचीन समय में यह एक गुप्त दरवाजा था. लाखोटा बारी का इतिहास बहुत ही रोचक हैं, यही वह स्थान हैं जहाँ पर अकबर के आक्रमण के दौरान वीर जयमल राठौड़ की तैनाती थी. यह मुग़ल आक्रांता अकबर के चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण और चित्तौड़गढ़ के तीसरे साके के समय मुख्य चर्चा का विषय था.
लाखोटा बारी का इतिहास और यह कहाँ स्थित हैं इस पर हम इस लेख में चर्चा करेंगे.
लाखोटा बारी का इतिहास-परिचय (History Of Lakhota Baari)
परिचय बिंदु | परिचय |
नाम- | लाखोटा बारी या उत्तरमुखी गुप्त द्वार. |
निर्माता- | राणा कुम्भा. |
कहाँ स्थित हैं- | चित्तौड़गढ़ दुर्ग. |
दिशा- | चित्तौड़गढ़ दुर्ग की उत्तर दिशा में. |
प्रसिद्धि की वजह- | जयमल राठौड़. |
चित्तौड़गढ़ का इतिहास हमारे लिए गर्व का विषय हैं. चित्तौड़गढ़ के कण-कण में वीरता की गाथाएँ, त्याग और बलिदान के किस्से छिपे हुए हैं. यहाँ पर लाखों सैनिकों ने अपनी मातृभूमि की आन-बान और शान के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों की आहुति दी.
चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर शायद ही ऐसा कोई स्थान या कण होगा जो रक्त से रंजीत ना हो. लाखोटा बारी भी इनमें से एक हैं. यहाँ सवा लाख सर कटे थे, यही वजह हैं कि इस स्थान को लाखोटा बारी के नाम से जाना जाता हैं.
किले के उत्तरी छौर पर स्थित यह द्वार एक गुप्त द्वार हैं, जिसका निर्माण राणा कुम्भा द्वारा करवाया गया था. इसी द्वार की जिम्मेदारी जयमल राठौड़ के पास थी. अकबर द्वारा 1567 ईस्वी के हमले के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग की सुरक्षा का दायित्व मेड़ता के जयमल जी राठौड़ के पास था.
अंदर की तरह जयमल जी तैनात थे वहीं बाहर की तरफ निचे जो गाँव था नगरी (अब यह गाँव मानपुरा के नाम से जाना जाता हैं जबकि उस समय नगरी यहाँ तक फैली हुई थी) जहाँ पर अकबर ने अपना तोपखाना स्थापित कर रखा था और हाथी भी बाँध रखे थे. इतना ही नहीं अबकर का स्वयं का कैंप (तम्बू) यहीं लगा हुआ था.
अक्टूबर माह में अकबर की सेना यहाँ आ चुकी थी लेकिन जनवरी का माह आ जाने के बाद भी अकबर ना तो इस किले पर आक्रमण कर पाया और ना ही उसे ऐसा लग रहा था वह इसे जीत पाएगा तभी अकबर के सिपाही और सलाहकारों ने सुझाव दिया की बादशाह हमारे लिए यह दुर्ग जीतना संभव नहीं हैं हम संधि कर लेते हैं. लेकिन अकबर ने कुछ दिन और इन्तजार करना उचित समझा.
संधि प्रस्ताव हाथ में लिए जब ईसरदास चौहान वापस किले की तरफ लौट रहे थे तब अकबर ने टोडरमल से कहा की यह कौन हैं जिसने मुजरा पेश (सलाम) नहीं किया इसको वापस बुलाओ. जब अकबर का दूत गया और उसने ईसरदास से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा सही समय आने पर मुजरा पेश किया जाएगा.
ईसरदास चौहान और अकबर की मुलाकात लाखोटा बारी दरवाजे पर ही हुई थी. अकबर की ओर से धावा बोल दिया गया.
जब भी बारूद लगाकर अकबर की सेना द्वारा इस द्वार को तोड़ने का प्रयास किया जाता तब वहां पर मौजूद सैनिकों द्वारा रात्रि के समय इसका पुनर्निर्माण कर दिया जाता.
एक बार जयमल जी राठौड़ की देखरेख में यहाँ टूटी हुई दीवार का पुर्ननिर्माण हो रहा था तभी अकबर की सेना द्वारा दागी गई गोली जयमल राठौड़ के दाएँ पैर पर लगी और वो घायल हो गए. जयमल जी राठौड़ के घायल होने के बाद ही इस द्वार को खोला गया ताकि अकबर की सेना से युद्ध किया जा सके. किले के ऊपर से ईसरदास चौहान और साहिब खान (अफगान बंदूकची) दोनों अकबर से मिलने गए.
इस समय किले पर मात्र 8000 सैनिक थे जबकि अकबर के पास लाखों की तादाद में सैनिक थे. युद्ध शुरू हो चूका था. अकबर की सेना में मधुकर नाम का एक हाथी था जिसकी सूंड में खंजर मारकर और दाँत पर पैर देकर ईसरदास चौहान ऊपर चढ़े और महावत पर वार करते हुए अबुल फजल (अकबर का लेखक) से कहा की जाकर अकबर को मेरा मुजरा पेश करना.
सारांश-
लाखोटा बारी (Lakhota Baari) का इतिहास बहुत कम लोग ही जानते हैं. इसका निर्माण राणा कुम्भा के समय हुआ था. अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर सन 1567 हमले के समय ज्यादातर काम काज Lakhota Baari पर हुए थे.
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