अनगढ़ बावजी अमरा भगत जी इतिहास कथा जीवन परिचय || Angadh Bavji
अनगढ़ बावजी अमरा भगत जी का इतिहास- चित्तौड़गढ़ भक्ति और शक्ति का मुख्य केंद्र रहा हैं. इस धरती पर मीराबाई और अमराभगत जी जैसे संतों का जन्म हुआ हैं. वहीं दूसरी तरफ बाप्पा रावल, राणा कुम्भा और महारानी पद्मावती जैसी नारी शक्ति की भूमि रहा हैं. अनगढ़ बावजी-अमरा भगत जी का स्थान राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के नरबदिया गाँव में स्थित हैं. यह स्थान चित्तौड़गढ़ मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं.
नरबदिया गाँव भदेसर तहसील के अंतर्गत आता हैं. यहाँ पर पहुंचना बहुत ही सुगम हैं. क्या आप जानते हैं की अमरा भगत का जन्म कब हुआ था? उनके माता-पिता कौन थे? और अमरा भगत जी का इतिहास और चमत्कार क्या है? अगर नहीं तो इस लेख को पूरा पढ़ें.
अनगढ़ बावजी अमरा भगत जी इतिहास कथा जीवन परिचय (Angadh Bavji Amra Bhagat Ji)
अमरा भगत जी का संक्षिप्त जीवन परिचय (Amra Bhagat Ji Biography)-
परिचय बिंदु | परिचय |
पूरा नाम- | अमरा जी भगत. |
जाती/समाज- | धनगर (गाडरी). |
जन्म दिनाँक- | 9 अगस्त 1898, मंगलवार (विक्रम संवत 1942). |
जन्म तिथि- | कृष्ण जन्माष्ठमी (श्रावण माह) |
माता का नाम- | दाखीबाई. |
पिता का नाम- | राम लाल जी. |
जन्म स्थान- | गाँव नरबदिया (चित्तौड़गढ़, राजस्थान). |
समाधी- | सन 1951 (वि.सं. 2006) श्रावण सुदी 9, बुधवार. |
उपाधि- | लोकदेवता और संत. |
समाधी- | जीवित समाधी (नरबदिया). |
अमरा भगत जी के जन्म की कहानी (Angadh Bavji Amra Bhagat Ji Story)-

अमरा भगत जी के माता-पिता के कोई संतान नहीं हुई तो वह संतान प्राप्ति के लिए बाँसी नामक गाँव में धुन्दलमल स्वामी जी की धूणी पर गए. किदवंतियों के अनुसार यही से अमरा जी भगत के माता पिता रामा जी और दाखीबाई को आशीर्वाद मिला. जैसे-जैसे समय बीतता गया. नरबदिया गाँव के निवासी रामा जी और दाखीबाई के घर में पुत्र रत्न स्वरुप अमरा जी भगत का जन्म हुआ.
संत अमरा भगत जी का जन्म भगवान श्री कृष्ण के 5125 वें जन्म दिन अर्थात श्रावण मास की कृष्ण जन्माष्ठमी दिनाँक 9 अगस्त 1898 (विक्रम संवत 1942) के दिन हुआ था. जन्म के 9 दिन तक अमरा भगत जी ने अपनी माता का दूध नहीं पिया. उनके माता-पिता के लिए यह चिंता का विषय था लेकिन जैसे ही 9 वें दिन उनका सूरज पूजन हुआ, उन्होंने पहली बार अपनी माता का दूध पिया.
यही से लोगों को लगने लगा की यह कोई आम बालक नहीं हैं यह कोई दिव्य बालक हैं. यहीं से इस यशस्वी बालक के बारे में अस्स-पास के क्षेत्रों में चर्चा होने लगी.
जब भारत में आज से कई वर्ष पहले प्लेग नामक बीमारी ने रौद्र रूप धारण कर लिया था तब अमरा भगत जी ने अनगढ़ बावजी के यहाँ पर बैठकर तपस्या की और आम लोगों का जीवन बचाया. इस घटना के बाद लोगों का विश्वास अमरा भगत जी में काफी बढ़ गया. ऐसा कहा जाता हैं की उस समय प्लेग और लाल बुखार से उस क्षेत्र में किसी की जान नहीं गई थी.
अनगढ़ बावजी का नाम कैसे पड़ा?
अमरा भगत जी के स्थान को अनगढ़ बावजी (Angadh Bavji) के नाम से भी जाना जाता हैं. अनगढ़ का अर्थ होता हैं बिना गढ़ा हुआ अर्थात जिसको बनाया नहीं गया हो. अनगढ़ बावजी की मूर्ति को कोई भी आकार नहीं दिया गया (बिना नक्काशी वाली), जैसी थी वैसी ही आज भी विध्यमान हैं. बिना गढ़ी हुई होने के कारण इन्हें “अनगढ़ बावजी” के नाम से जाना जाता हैं.

अमरा भगत जी के चमत्कार की पहली कहानी
किदवंतियों के अनुसार एक बार नरबदिया गाँव का एक समूह चार धाम की यात्रा करने के लिए निकला, अमरा भगत जी भी उनमें से एक थे. इस समय के दौरान रक्षाबंधन (राखी) का त्यौहार आया. जब अमरा भगत जी घर पर नहीं थे तो उनके माता-पिता ने त्यौहार के अवसर पर घर में कोई भी पकवान नहीं बनाया.
यह सब अमरा भगत जी भाँप गए. उन्हें उनके माता-पिता की मनोदशा समझ आ गई. सभी मित्र भोजन बनाने की तैयारी कर रहे थे. अमरा भगत जी ने उनसे कहा कि आप खाना बनाओ तब तक मैं नहाकर आता हूँ. इतना कहते ही वहाँ पर एक सरोवर में उन्होंने डुबकी लगाई और नरबदिया में जा निकले.
अमरा भगत जी उनके गाँव में स्थित “चारभुजा मंदिर” में बैठकर माला का जाप करने लगे जब उनकी माता चारभुजा नाथ जी को त्यौहार के अवसर पर भोग लगाने पहुंची तो वहाँ अपने पुत्र को देखकर आश्चर्य चकित रह गई. पहले भगवान को भोग लगाने के लिए एक ही बर्तन का प्रयोग होता था.
जब उनकी माता ने देखा की अमरा जी भगत भगवान की तपस्या में लीन हैं तो वह भोग का प्याला वहाँ रखकर वापस चली गई. अपने बेटे को सकुशल देखकर उन्होंने घर जाकर पकवान बनाए. उनकी माता के वहाँ से जाते ही अमरा भगत जी ने वह प्याला उठाया और पुनः द्वारकाधीश पहुँच गए जहाँ पर उनके साथी उनका इन्तजार कर रहे थे.
जब उनके साथियों ने चारभुजा नाथ के भोग लगाने का प्याला देखा तो उनके होश उड़ गए. और उस दिन उन्होंने अमरा भगत जी का चमत्कार देखा. यह चमत्कार देख कर उनके साथी और आस-पास के लोग उन्हें भगवान का रूप मानने लगते हैं. राजस्थान में संत अमरा भगत जी को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता हैं.
अमरा भगत जी के चमत्कार की दूसरी कहानी
अमरा भगत जी के चमत्कारों से सम्बंधित दूसरी कहानी उनके समाधी के समय की हैं. सन 1951 (वि.सं. 2006) श्रावण सुदी 9, बुधवार के दिन अमरा भगत जी ने समाधी ली थी. अमरा भगत जी ने खुद अपने हाथों से समाधी स्थल तैयार किया और आस-पास के लोगों और उनके अनुयायों के इस बारे में अवगत करवाया.
समाधी की जानकारी प्रसाशन को भी दी गई. जब सिपाही वहाँ पहुंचे तब तक संत अमरा भगत जी समाधी ले चुके थे तभी सिपाहियों ने उस समाधी पर रखे पत्थर को हटाया और अंदर देखा तो उनके होश उड़ गए. उन्होंने देखा की समाधी के अंदर शेर बैठा हैं. यह दृश्य देखकर सिपाही पुनः लौट गए.
लोगों की मदद से जिस स्थान को सिपाहियों ने हटाया उसको पुनः समाधी का रूप दिया गया. यह एक बहुत बड़ी चमत्कारिक घटना थी.
अमरा भगत जी चमत्कार की तीसरी कहानी
जब अमरा भगत जी छोटे थे तब उनके माता-पिता कृषि कार्य करने के लिए बच्चे को भी साथ में लेकर जाते थे. जब माता-पिता खेत में काम करते तब वो बालक को एक झूले में जिसे मेवाड़ की बोलचाल की भाषा में पालना कहा जाता हैं में सुलाकर काम करते थे. एक बार की बात हैं काम करते-करते उनकी माता दाखीबाई उनको दूध पिलाने और यह देखने के लिए आई की कहीं बच्चा रो तो नहीं रहा हैं.
जब वह झूले (पालना) के पास पहुंची तो उन्होंने देखा की एक साँप अपने फन (मुँह से बनाया विशेष आकार) की छाया कर बैठा हैं. यह देखकर उनकी माता चीख पड़ी लेकिन बच्चा आराम से हँसता खेल रहा था.
यह उनके माता-पिता की आँखों देखि बहुत बड़ी घटना थी.
अमरा भगत जी का साँवरिया सेठ से सम्बन्ध
संत और लोकदेवता अमरा भगत जी का मंडपिया स्थित साँवरिया सेठ मंदिर से भी सम्बन्ध हैं. अमरा भगत जी सांवरिया मंदिर परिसर में स्थित ‘आमलिया बावजी” नामक स्थान पर भी तपस्या करते थे. यह सांवरिया जी मंदिर के पीछे की तरफ स्थित हैं. ऐसी मान्यता हैं की साँवरिया के दर्शन करने वाले प्रत्येक श्रदालु को आमलिया बावजी के भी दर्शन करने चाहिए और धोक लगाना चाहिए.
क्या अनगढ़ बावजी और अमरा भगत जी एक ही हैं?
नहीं, अनगढ़ बावजी वह स्थान हैं जहाँ पर बैठकर अमरा भगत जी तपस्या करते थे.
अनगढ़ बावजी धनगर (गाडरी) समाज के आराध्य
अनगढ़ बावजी अखिल भारतीय धनगर,गाडरी,पाल,बघेल,गड़रिया और होल्कर समाज के आराध्य देव के रूप में सम्पूर्ण भारत में विख्यात हैं. समय के साथ-साथ इस स्थान की महिमा और गरिमा बढ़ती जा रही हैं. अमरा भगत जी के जन्मदिवस और जन्माष्ठमी के अवसर पर पुरे भारत और आस-पास के क्षेत्रों से हजारों की तादाद में श्रदालु आते हैं.
धनगर समाज द्वारा प्रतिवर्ष विशाल वाहन रैली का आयोजन भी किया जाता हैं. अनगढ़ बावजी (Angadh Bavji) के स्थान की देख रेख के लिए “अमरा भगत सेवा संस्थान कमेटी” भी बनी हुई हैं जो इस स्थान की देखरेख का काम करती हैं और प्रतिवर्ष जन्माष्ठमी और अमरा भगत जी के जन्मोत्सव पर विशाल मेले का आयोजन करवाती हैं.
यहाँ पर हर महीने की अमावस्या के दिन दानपात्र खोला जाता हैं जिसमें लाखों रुपये चढ़ावे के निकलते हैं.
अमरा भगत जी का सामाजिक योगदान
अनगढ़ बावजी के अनन्य भक्त अमरा भगत जी ने समाज में फैली कुरीतियों, समाज सुधार, शिक्षा और भगवान के प्रति आस्था पर विशेष बल दिया था.
अमरा भगत जी का पेनोरमा
राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले में भदेसर तहसील के गाँव दौलतपुरा (ग्राम पंचायत बागुंड) में धनगर समाज के आराध्य लोकदेवता और संत अमरा जी भगत (अनगढ़ बावजी) का पेनोरमा का निर्माण करवा रही हैं. यहाँ सामाजिक सरोकार के कार्यों के बारे में जानकारी मिलेगी और अमरा भगत जी पेनोरमा के निर्माण में लगभग 4 करोड़ रुपये का खर्चा आएगा.
यहाँ बनने वाले पेनोरमा में मुख्य भवन, सभागार, हॉल, पुस्तकालय, प्रतिमा, छतरी, शिलालेख, स्कल्पचर्स, ऑडियो-वीडियो सिस्टम जैसे विभिन्न कार्य होंगे जिसका निर्माण कार्य पर्यटन विकास कोष की सहायता से किया जाएगा. यहाँ से आपको भगवान अनगढ़ बावजी और संत अमरा जी भगत के बारें में सम्पूर्ण जानकारी मिल सकेगी.
सारांश
Angadh Bavji एक तपोस्थली हैं जहाँ पर संत अमरा भगत जी तप करते थे. अमरा भगत जी के चमत्कार देखकर लोग उन्हें लोकदेवता के रूप में मानने लगे. उन्होंने देश में आए प्लेग और लाल बुखार के समय लोगों की जान बचाई थी. अनगढ़ बावजी के पास में ही अमरा भगत जी की समाधी स्थित हैं.
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