आजाद हिंद फौज का इतिहास || History Of Azad Hind Fauj

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आजाद हिंद फौज (Indian National Army – INA) का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में गठित इस सेना ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ निर्णायक संघर्ष किया। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि आजाद हिंद फौज की जरूरत क्यों पड़ी, इसका गठन कैसे हुआ, इसके प्रमुख कार्य क्या थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसका क्या योगदान रहा।



आजाद हिंद फौज की जरूरत क्यों पड़ी?

[1] ब्रिटिश राज का अत्याचार-

ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारतीयों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। 1857 की क्रांति के बाद भारतीयों में स्वतंत्रता की भावना प्रबल हो चुकी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार का शोषण जारी रहा।

[2] द्वितीय विश्व युद्ध और भारत-

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना उसकी सहमति के युद्ध में झोंक दिया। भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के लिए लड़ने के लिए मजबूर किया गया, जिससे असंतोष फैल गया।

[3] कांग्रेस की अहिंसक नीति से असंतोष-

महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि "आजादी भीख में नहीं, बल्कि लड़ाई से मिलेगी।" इसलिए उन्होंने सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया।

[4] विदेशी शक्तियों का समर्थन-

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान और जर्मनी जैसी शक्तियाँ ब्रिटेन के विरोध में थीं। नेताजी ने इस मौके का लाभ उठाकर भारत को स्वतंत्र कराने के लिए आजाद हिंद फौज के गठन की योजना बनाई।

आजाद हिंद फौज का गठन कैसे हुआ?

आजाद हिंद फौज की नींव सबसे पहले रास बिहारी बोस ने 1942 में रखी थी। उन्होंने जापान में रह रहे भारतीयों की मदद से इंडियन इंडिपेंडेंस लीग बनाई। बाद में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया और इसे एक संगठित सैन्य शक्ति में बदल दिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार (Provisional Government of Free India) की स्थापना की। इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली और अन्य देशों से मान्यता मिली।

आजाद हिंद फौज की ताकत

आजाद हिंद फौज में करीब 40,000 सैनिक थे। इसमें भारतीय युद्धबंदियों, प्रवासी भारतीयों और अन्य लोगों को शामिल किया गया। रानी झांसी रेजिमेंट की स्थापना की गई, जिसमें महिलाओं को भी सैनिक बनाया गया।

आजाद हिंद फौज के कार्य

[1]. भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना जगाना

नेताजी का नारा "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा" भारतीयों में देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित करने के लिए दिया गया था।

[2]. ब्रिटिश सेना के खिलाफ सैन्य अभियान

आजाद हिंद फौज ने जापान की मदद से बर्मा (म्यांमार) और पूर्वोत्तर भारत के मोर्चों पर ब्रिटिश सेना से युद्ध किया।

[3]. अंडमान और निकोबार द्वीपों पर कब्जा

आजाद हिंद सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीपों को ब्रिटिश शासन से मुक्त कर दिया और उनका नाम बदलकर शहीद और स्वराज द्वीप रखा।

[4]. रेडियो और प्रचार अभियान

नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो के माध्यम से भारतीयों में आजादी की भावना जगाने का कार्य किया।

स्वतंत्रता संग्राम में आजाद हिंद फौज का योगदान

[1]. अंग्रेजों के खिलाफ जंग

1944 में आजाद हिंद फौज ने भारत में प्रवेश किया और कोहिमा तथा इंफाल की लड़ाई लड़ी।

हालांकि, ब्रिटिश सेना की ताकत अधिक होने के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा।

[2]. भारतीयों की चेतना को जगाना

नेताजी के प्रयासों से भारतीय सेना और ब्रिटिश सरकार में असंतोष बढ़ा।

आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर हुए "रेड फोर्ट ट्रायल" ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को और गति दी।

[3]. ब्रिटिश सरकार की कमजोरी

ब्रिटिश सरकार को एहसास हो गया कि भारतीय सेना भी उनके खिलाफ बगावत कर सकती है।

इस कारण ब्रिटेन ने भारत छोड़ने का फैसला किया और 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली।

आजाद हिंद फौज केवल एक सेना ही नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीयों को यह संदेश दिया कि आजादी केवल संघर्ष से ही संभव है।

हालांकि, आजाद हिंद फौज का सैन्य अभियान पूरी तरह सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया जोश दिया। इस प्रकार, भारत की आजादी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज का योगदान अमूल्य और अविस्मरणीय है।



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