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चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास और निर्माण की कहानी

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास (Chittorgarh Fort History In Hindi)– चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास और इसकी मौजूदगी हमारे लिए गर्व गर्व की बात. यह दुर्ग भारत के सबसे प्राचीन किलों में से एक हैं. चित्तौड़गढ़ दुर्ग का नाम मौर्य वंश के शासक चित्रांगद मौर्य के नाम पर चित्तौड़गढ़ रखा. चित्तौडग़ढ़ बलिदान और भक्ति की नगरी के रूप में विश्व विख्यात हैं.

यह सिसोदिया राजवंश की गाथाओं के लिए जाना जाता हैं. चित्तौडग़ढ़ दोनों ओर से नदियों से गिरा हुआ हैं, इनके नाम बेड़च नदी और गंभीरी नदी हैं. भारत की राजधानी नई दिल्ली से चित्तौडग़ढ़ दुर्ग लगभग 600 किलोमीटर दूर है, जबकि राजस्थान की राजधानी जयपुर से 300 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं.

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास हमारा गौरव हैं. इस लेख में हम चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास और इस दुर्ग पर स्थित प्राचीन और ऐतिहासिक स्थलों के बारें में भी जानेंगे.

कहाँ स्थित हैंचित्तौडग़ढ़, राजस्थान (भारत).
निर्माण7 वीं सदी में (पौराणिक मान्यतानुसार महाभारत कालीन).
निर्माण किसने करवायाचित्रांगद मौर्य (पौराणिक मान्यतानुसार महाबली भीम ने).
(Chittorgarh Fort History In Hindi)

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास (Chittorgarh Fort History In Hindi) बहुत प्राचीन और गौरवमयी रहा हैं. यह स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग कितने वर्ष पुराना हैं लेकिन कई जगह यह संकेत मिलते हैं कि यह महाभारत के समय का बसा हुआ हैं. सबसे पहले मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ ही था, लेकिन सन 1568 ईस्वी में मेवाड़ की राजधानी बदलकर उदयपुर को मेवाड़ की राजधानी घोषित कर दिया गया.

ऐसा कहते हैं कि जब बाहुबली भीम अमृतत्व के रहस्य की खोज में निकले तो वो इस स्थान पर पहुँच गए. यहाँ पर उन्होंने एक गुरु भी बनाया था. वो अपने काम में सफल नहीं हुए, इसको आजकल लोग दन्त कथा मानते हैं जिसका उल्लेख इस लेख में हम आगे करेंग.

चित्तौड़गढ़ दुर्ग कि पूर्व दिशा में एक पहाड़ स्थित है, जो भीम के आकर का है और ऐसी मान्यता हैं की बाहुबली भीम ने यहाँ विश्राम किया था. हालाँकि इस पहाड़ को लेकर भी मतभेद है क्योंकि कुछ लोग इसको ‘सोए हुए भगवान  बुद्ध’ (sleeping Buddha) की भी संज्ञा देते हैं. सबसे पहले यहाँ मौर्य वंश का राज था.

 8 वीं  शताब्दी से चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास देखा जाए तो बाप्पा रावल से इसकी शुरुआत होती है. बाप्पा रावल यहाँ के वंशज नहीं थे ,इन्होने यहाँ की राजकुमारी (सोलंकी वंश) से शादी की थी और चित्रकूट के राजा बने. चित्तौडग़ढ़ का महाराणा प्रताप ,गोरा-बादल ,महाराणा कुम्भा ,महाराणा सांगा  जैसे वीर योद्धाओं से सम्बन्ध रहा हैं. भगवान श्री कृष्णा की सबसे बड़ी भक्त मीराबाई का ससुराल भी चित्तौडग़ढ़ ही हैं.

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास पढ़ा जाए तो इसमें कई विरोधाभास देखने को मिलते हैं. जैसे कि कुछ लोगों की मान्यता हैं कि चित्तौडग़ढ़ दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य द्वारा किया गया था जबकि कई लोग इसका निर्माण महाभारत कालीन माना जाता हैं. कुछ इतिहासकार इसका निर्माण महाबली भीम द्वारा किया गया ऐसा बताते हैं. हम इस लेख में दोनों बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।

अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार आज से लगभग 1300 वर्ष पहले सातवीं सदी में मौर्यवंशीय शासक चित्रांगद मौर्य ने चित्तौडग़ढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था. वहीं इससे सम्बंधित एक पौराणिक कथा भी प्रचलित हैं जिसके अनुसार इस किले का निर्माण महाबली भीम द्वारा किया गया था, इस पौराणिक कथा से सम्बंधित ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्य आज भी चित्तौडग़ढ़ दुर्ग पर मौजूद हैं.

भीमलत कुण्ड, भीम कोड़ी, कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर और गौमुख कुंड के पास स्थित बाबा निर्भयनाथ जी का धूणा आदि इसके पौराणिक मान्यता को मजबूती प्रदान करते साक्ष्य मौजूद हैं.

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास बताता हैं कि उस समय मशीनें नहीं थी तो इतनी बड़ी-बड़ी शिलाएँ पहाड़ पर कैसे चढ़ाई गई होगी? यह भी एक विचारणीय बिंदु हैं.

चित्तौडग़ढ़ दुर्ग निर्माण को लेकर एक पौराणिक कथा प्राचीन काल से प्रचलित हैं. इस कथा के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण महाबली भीम द्वारा किया गया. यह भी सत्य हैं कि ऐसे विशाल दुर्ग का निर्माण करना आम इंसानों के बस में नहीं था. इस दुर्ग का निर्माण किसी चमत्कार से कम नहीं हैं.

भारत का इतिहास हजारों वर्ष पुराना हैं इसलिए सत्य कथा भी लोगों को दन्त कथा लगने लगती हैं. कुछ ऐसा ही चित्तोड़ दुर्ग के निर्माण की कहानी भी लोगों को दन्त कथा लगती हैं.

वनवास के दौरान पाण्डव इधर-उधर घूमते हुए एक विशाल पठार पर पहुंचे जो चारों तरफ से घने जंलग से घिरा हुआ था.

भीम ने देखा कि वहाँ एक बाबा निर्भयनाथजी आग लगाकर बैठे हैं और तपस्या में लीन हैं.  भीम, नाथबाबा से बहुत प्रभावित हुआ क्योंकि वह गुरु गोरखनाथ के चमत्कारों से परिचित था. महाबली भीम नाथबाबा के पास गया और “पारस” प्राप्ति की कामना करने लगा. नाथबाबा ने जवाब दिया  इसके लिए आपको परीक्षा देनी होगी। महाबली भीम इसके लिए तैयार था.

नाथबाबा ने कहा “हे महाबली भीम आपको एक रात्रि में इस विशाल पठार पर दुर्ग का निर्माण करना होगा। यदि आप सफल रहे तो तुमको काया को कंचन करने वाला पारस मिल जायेगा।।

भीम ने नाथबाबा को प्रणाम किया और काम पर लग गया, दक्षिण भाग को छोड़कर विशाल दुर्ग तैयार होने ही वाला था कि नाथबाबा को इसका अंदेशा हो गया और उन्होंने अपने साथी से कहा अभी महाबली भीम को पारस नहीं देना हैं तुम उसको रोको।

तभी महाबली भीम को मुर्गे की आवाज सुनाई दी जिससे वह भ्रमित हो गया कि सुबह हो गई हैं और काम अधूरा छोड़ नाथबाबा के पास लौट आया. भीम को देखकर नाथबाबा बोल पड़े अभी तो दुर्ग  का काम अधूरा हैं फिर तुम कैसे आ गए?

भीम ने जवाब दिया “हे गुरुदेव मुर्गे की आवाज सुनकर मुझे लगा सुबह हो गई हैं”, तभी वहाँ पर नाथबाबा के साथी भी आ जाते हैं. नाथबाबा ने भीम से कहा यह आवाज तो मेरे साथी ने दी हैं, यह सुनकर महाबली भीम को बहुत क्रोध आया. भीम ने गुस्से में जोरदार लात दे मारी जहाँ पर एक बहुत बड़ा गड्ढा हो गया जिसे आज “भीम-लत कुण्ड” के नाम से जाना जाता हैं.

धरती माता को लात मारने पर महाबली भीम को अफ़सोस हुआ और वह जमीन पर गिर पड़ा, जहाँ भीम गिरा वहां उसका घुटना लगने से बड़ा कुण्ड बन गया जिसे आज “भीम गोड़ी” के नाम से जाना जाता हैं.

इस ऐतिहासिक कथा से जुड़े स्थान आज भी चित्तोड़ दुर्ग पर विध्यमान हैं. जैसे “भीमलत कुण्ड” , भीम गोड़ी , बाबा निर्भयनाथ जी कि तपोस्थली और कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर आदि. चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास के इस पहलु से भी इंकार नहीं किया जा सकता हैं.

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के ऊपर जाने के लिए कुल 7 दरवाजे बने हुए हैं. पहले दरवाजे का नाम पाडन पोल ,दूसरे दरवाजे का नाम भैरव पोल ,तीसरे दरवाजे का नाम हनुमान पोल ,चौथे दरवाजे का नाम गणेश पोल ,पांचवें दरवाजे का नाम जोरला पोल, छठे दरवाजे का नाम लक्ष्मण पोल और सातवें दरवाजे का नाम राम पोल हैं.

इस किले की पूर्व दिशा में सूरज पोल भी है जो किले का मुख्य द्वार हैं. सूरज पोल ही किले का मुख्य द्वार हैं लेकिन रखरखाव के अभाव में इस पोल से होकर निचे जाने वाला रास्ता अभी जर्जर अवस्था में हैं.

चित्तौडग़ढ़ शहर से किले पर जाते समय उपरोक्त 7 दरवाजों से होकर जाना पड़ता हैं. सातों दरवाजे अपने आप में चित्तौडग़ढ़ दुर्ग का इतिहास समेटे हुए हैं. इन दरवाजों की बनावट और कलाकारी दर्शनीय हैं.

क्षेत्रफल की दृष्टि से चित्तौड़गढ़ दुर्ग एशिया का सबसे बड़ा किला हैं। इसके लिए एक कहावत हैं “गढ़ तो चित्तौडग़ढ़ बाकि सब गढ़ैया“.  इसकी बनावट,बड़ा आकार और सामरिक स्थिति देखकर इसको सभी गढ़ो का सिरमौर कहा जाता हैं. यह किला 691.9 एकड़ (280 हेक्टेयर ) में फैला हुआ हैं. जमीन से इसकी ऊंचाई लगभग 180 मीटर (590.6 फ़ीट)  हैं. इस किले पर पहले 80 कुंड (जलाशय) थे,जिनमें से अब सिर्फ 30 कुंड बचे हैं।

अतः चित्तौडग़ढ़ का किला भारत का सबसे बड़ा किला हैं.

चित्तौडग़ढ़ को त्याग और बलिदान की भूमि माना जाता है. सबसे पहले आपको बताते है जौहर क्या होता है? प्राचीन समय में जब राजा और महाराजा युद्ध के लिए जाते थे और यदि वीरभूमि को प्राप्त हो जाते तो उनकी पत्नियाँ जौहर स्थल पर आग लगाकर उसमे कूद जाती थी और जान दे देती थी, जिससे की उनकी इज्जत के साथ कोई खिलवाड़ नहीं कर सके. मुस्लिम शासक बहुत क्रूर होते थे.

मरी हुई औरतों के साथ भी मुस्लिम आक्रांता दुर्व्यवहार करते, इससे बचने के लिए वीर क्षत्राणियाँ जौहर कर लेती थी. राजा की मौत के बाद उनकी पत्नियों को रखैल बना लेते थे, इसी डर की वजह से औरतें अपनी जान दे देती थी. इसी को जौहर कहा जाता है. चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास उठाकर देखा जाए तो यहाँ कुल मिलाकर 3 जौहर देखने को मिलते हैं, जिनका जिक्र निचे किया गया हैं.

चित्तौडग़ढ़ का पहला साका या जौहर (महारानी पद्मिनी )

 चित्तौडग़ढ़ का पहला साका या जौहर सन 1303 में हुआ था. जब मुस्लिम आक्रांता अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया. खिलजी को चित्तौडग़ढ़ के राजा रतन सिंह ने 2 बार पराजित किया लेकिन दोनों बार जिन्दा छोड़ दिया.

तीसरी बार धोखे से खिलजी ने रतन सिंह को संधि के लिए बुलाया और मौत के घाट उतर दिया, रतन सिंह के वीर गति को प्राप्त होने कि खबर सुनकर महानी पद्मावती ने अपनी साथी 1600 रानियों के साथ जौहर कर लिया. चित्तौडग़ढ़ इतिहास का यह पहला जौहर था.

चित्तौडग़ढ़ का दूसरा साका या जौहर (राजमाता कर्णावती)

चित्तौडग़ढ़ का दूसरा साका या जौहर महारानी कर्णावती के समय हुआ था जो कि मेवाड़ के इतिहास के महान शासक महाराणा सांगा की रानी थी. सन 1535 में गुजरात के शासक बहादुर शाह जफ़र ने चित्तौडग़ढ़ पर आक्रमण किया था.

इस युद्ध में महाराणा सांगा की हार की खबर सुनकर कर्णावती ने जौहर कर अपने प्राण त्याग दिए थे.

चित्तौडग़ढ़ का तीसरा साका या जौहर (रानी फुलकंवर मेड़तणी)

चित्तौडग़ढ़ का तीसरा जौहर सन 1568 में हुआ था. मुग़ल आक्रमणकारी अकबर ने चित्तौडग़ढ़ के राज परिवार की अनुपस्थिति में धावा बोल दिया था, जिसके चलते रानी फूलकंवर ने हजारों औरतों के साथ जौहर किया था.

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास देखा जाए तो इस दुर्ग पर मुख्य रूप से तीन मुस्लिम आक्रांताओं ने हमला किया था जिसमें अल्लाउद्दीन खिलजी, बहादुर शाह जफ़र और अकबर का नाम मुख्य हैं जिनकी संक्षिप्त में हम चर्चा करेंगे-

[1] सन 1303 (अल्लाउद्दीन खिलजी)

चित्तौडग़ढ़ दुर्ग के इर्द-गिर्द ही यह सब घटनाएँ हुई थी. क्योंकि सामरिक दृष्टि से यह दुर्ग बहुत महत्वपूर्ण था. अल्लाउद्दीन खिलजी ने 28 जनवरी 1303 को चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) की घेराबंदी कर ली. लम्बे समय तक बहार नहीं निकल पाने की वजह से राजपूती सेना की राशन सामग्री ख़त्म होने लगी थी.

नहीं चाहकर भी राजपूतों को राजा रतन सिंह के नेतृत्व में मुगलों पर हमला करना पड़ा. रतन सिंह लड़ाई करते हुए खिलजी के बेहद करीब पहुँच गए लेकिन निहत्था देख कर छोड़ दिया था. बाद में खिलजी ने रतन सिंह को पराजित करके 16 अगस्त 1303 को चित्तौडग़ढ़ किले (Chittorgarh Fort) को अपने कब्जे में ले लिया था.

खिलजी ने उसके बेटे खिज्रखां के नाम पर चित्तौड़गढ़ का नाम बदलकर ख़िज्राबाद कर दिया. गंभीरी नदी पर बनी पुलिया का निर्माण इसने ही करवाया था. ऐसा कहा जाता हैं की इस लड़ाई में एक ही दिन में क्रूर मुग़लों ने 30,000 निर्दोष लोगों को भी मौत के घाट उतार दिया था.

[2] सन 1533 (बहादुर शाह)

इस युद्ध में महाराणा सांगा (संग्रााम सिंंह) ने बहादुर शाह जफर को पराजित किया था.

[3] सन 1568 (अकबर)

 18 जून 1576 का दिन था, महाराणा प्रताप और मुग़ल सेना के बिच हल्दीघाटी के मैदान पर घमासान युद्ध हुआ था. महाराणा प्रताप की सेना बहुत छोटी थी। मुग़ल सेना का नेतृत्व मान सिंह कर रहे थे.

इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप की सेना की संख्या लगभग 22000 थी और मुग़ल सेना लगभग 80000 थी. लेकिन फिर भी मेवाड़ी सेना ने मुगलों को हरा दिया था.

इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए पीछे हट गए. महाराणा प्रताप ने छापामार प्रणाली का सहारा लेकर अकबरी सेना पर धावा बोल दिया और यह युद्ध जीत लिया, जी हाँ महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी का युद्ध जीता था लेकिन इतिहासकारों ने हमें गलत जानकारी दी. महाराणा प्रताप की जीत के प्रमाण आज भी मौजूद हैं.

चित्तौडग़ढ़ पर बहुत राजाओं ने राज किया था. जिनमें बप्पा रावल, महाराणा सांगा ,महाराणा प्रताप ,चित्रांगद मौर्य ,राणा रतन सिंह, राजा हमीर सिंह का नाम शामिल हैं.

चित्तौडग़ढ़ के राजा की कहानी

वैसे तो चित्तौड़गढ़ दुर्ग की हर दीवार ,हर पत्थर, प्रत्येक स्थान और कण-कण वीर गाथाओं से भरा पड़ा हैं. यहाँ पर एक भी पत्थर ऐसा नहीं होगा जो खून से रंगा हुआ नहीं हैं.

अलग-अलग  राजा और रानियों ने अपने अपने समय यहाँ पर कई निर्माण करवाए चित्तौडग़ढ़ दुर्ग पर पर्यटन स्थल-

 [1] कालिका माता मंदिर (kalika mata mandir)

यह चित्तौडग़ढ़ का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. इस मंदिर का निर्माण 8 वीं सदी में राजा बप्पा रावल ने करवाया था. इसका निर्माण सूर्य मंदिर के रूप में हुआ था लेकिन 14 वीं शताब्दी में राजा हमीर सिंह ने इस मंदिर में कालिका माता की मूर्ति की स्थापना की थी. इस मंदिर में कलिका माता साक्षात् विराजमान हैं.

यह विजय और शौर्य का प्रतिक माना जाता हैं. कोई भी राजा जब भी युद्ध के लिए जाते या फिर कोई शुभ कार्य प्रारम्भ करते तो सबसे पहले कालिका माता के ही दर्शन करते थे और पूजा करते थे.

ऐसा माना जाता हैं की महाराणा प्रताप को काली माता ने साक्षात दर्शन दिए थे. अभी भी चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर यह हिन्दू धर्म को मानने वालों का मुख्य दर्शनीय स्थल हैं. यहाँ नवरात्री के समय लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं.

[2] विजय स्तम्भ ( vijay stambh)

वास्तुकार राव जैता के नेतृत्व में विजय स्तम्भ को महाराणा कुम्भा ने बनवाया था. यह राजस्थान के ऐतिहासिक शहर चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं. महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर दिया था, जिसके बाद कुम्भा ने विजय के प्रतिक विजय स्तम्भ का निर्माण सन 1437 में करवाया था.

विजय स्तम्भ की ऊंचाई 122 फ़ीट और चौड़ाई 30 फ़ीट हैं. यह निचे से चौड़ा ,बिच में संकरा और ऊपर जाते जाते फिर से थोड़ा चौड़ा हो जाता हैं.

अगर इसका आकार देखा जाए तो यह डमरू के समान हैं. यह स्थापत्यकला और कारीगरी का उत्कृष्ट उदाहरण हैं. इसमें कुल 9 मंजिलें हैं और ऊपर जाने जाने के लिए 157 सीढ़ियां बनी हुए हैं. वर्तमान में विजय स्तंभ के ऊपर जाने की मनाही हैं.

विजय स्तंभ के बारें में 21 रौचक तथ्य

इसको विष्णु ध्वज या विष्णु स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता हैं. इसके अंदर और बाहर हिन्दू  देवी-देवताओं की सुन्दर सुन्दर मूर्तियां पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं.

रामायण और महाभारत के पात्रों की हजारों मूर्तियां अंकित हैं इसके साथ ही भगवान विष्णु के अवतार, हरिहर ,ब्रह्मा ,लक्ष्मीनारायण ,उमा -महेश्वर और अर्धनारीश्वर की मूर्तियां अंकित हैं.

[3] कीर्ति स्तम्भ ( kirti stambh)

कीर्ति स्तम्भ का इतिहास विजय स्तम्भ से भी पुराना हैं. इसका निर्माण जीजाजी कथोड़ ने 12 वीं शताब्दी में करवाया था. यह  22  मीटर ऊँचा, 54 सीढ़ियां और 7 मंजिला हैं. यह किले की पूर्वी छोर पर बना हुआ हैं. इसके अंदर जाने और घूमने की परमिशन नहीं हैं, इसके समीप जैन मंदिर बना हुआ हैं.

कीर्ति स्तंभ से सम्बंधित रौचक तथ्य

[4] मोहर मंगरी (mohar mangry)

मोहर मंगरी को चित्तौड़ी बुर्ज के नाम से भी जाना जाता हैं यह  किले की चार दीवारी से बहार दक्षिण दिशा में स्थित हैं, इसका इतिहास भी बहुत दिलचस्प हैं. जब अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया था तब किले पर आसानी के साथ चढ़ाई करने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया गया था.

प्रत्येक मजदुर को एक-एक सोने की मोहर का लालच दिया गया. एक मजदुर एक बार मिट्टी लेकर जिस रास्ते से जाता उसको वापस उस रास्ते से नहीं आने दिया जाता और सोने की मोहर भी छीन ली जाती थी.

[5] मृग वन (mrig van)

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दक्षिणी छोर पर एक बहुत बड़े भाग पर मृग वन बना हुआ हैं. हिरणों के संरक्षण के लिए इसको बनाया गया था. हिरणों के खाने और पिने की पूरी व्यवस्था हैं. साथ ही इसके अंदर भ्रमण की अनुमति भी है.

अब यहाँ पर ज्यादा हिरन नहीं, हिरणों से ज्यादा यहाँ पर बंदर देखने को मिलते हैं.

[6] भीम कुंड (bhim kund)

महाभारत के पात्र राजकुमार भीम ने इस कुंड को बनाया था इसलिए इसका नाम आज भी भीम कुंड हैं। भीम कुंड में वर्ष पर्यन्त पानी रहता हैं ,इसमें बनी सुरंग में आने वाला पानी आज भी रहस्य का विषय हैं। चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं।

[7] पदमिनी महल ( padmini mahal)

सबसे अधिक प्रसिद्ध और दर्शनीय महल हैं. महाराजा रतन सिंह ने इसका निर्माण महारानी पद्मिनी के लिए करवाया था. यह पानी के बीचों बिच बना हुआ हैं. इसको जनाना महल के नाम से भी जाना जाता हैं. इसके समीप तालाब के किनारे पर बने हुए महल को “मर्दाना महल” के नाम से जाना जाता हैं.

पद्मिनी महल चित्तौडग़ढ़

[8] मीरा मंदिर (meera mandir)

मीरा मंदिर का निर्माण महाराण कुम्भा के समय हुआ था. भगवान कृष्ण की परम भक्त मीरा ने राज महल त्याग कर कृष्णा की भक्ति की थी. इस मंदिर के प्रांगण में 4 मंडप बने हुए हैं. यह मंदिर कुम्भाश्याम मंदिर के पास चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं.

[9] जोहर स्थल (johar sthal)

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण स्थान जौहर स्थल हैं. चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) पर महारानी पद्मिनी ,महारानी कर्णावती और महारानी फूलकुंवर ने स्वयं को आग के हवाले किया था उसी पावन क्षेत्र को जौहर स्थल कहा जाता हैं.

यह स्थान विजय स्तम्भ और समिधेश्वर महादेव मंदिर के मध्य भाग में स्थित हैं. इस स्थान पर खुदाई में मिली राख इसकी सत्यता को प्रमाणित करती हैं.

[10] सूरज पोल (suraj pole)

इसको चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) का मुख्य द्वार भी कहा जाता हैं. यह किले की पूर्वी दिशा में मौजूद हैं. यहाँ खड़े होकर देखने पर किले के पीछे का बहुत ही मनोरम और प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलता हैं.

इसके दरवाजे पर नुकीले और मोटे -मोटे  कील लगे हुए हैं जिसकी वजह से  हाथियों के प्रहार से भी इन दरवाजों को तोड़ना मुश्किल होता था.

[11] नीलकण्ठेश्वर महादेव-(neekantheshwar mahadev)

नीलकंठ महादेव का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित हैं. यह सूरजपोल से दक्षिण दिशा में लगभग 100 मीटर की दुरी पर स्थित हैं. यह बहुत प्राचीन हैं। यहाँ पर शिवलिंग का आकार बहुत बड़ा हैं.

श्रावण मास में यहाँ पर बहुत भीड़ देखने को मिलती है साथ ही हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने जरूर आते हैं.

[12] फतह प्रकाश महल (संग्रहालय)-( fateh prakash mahal)

 इसका निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने करवाया था। इसके अंदर भगवान श्री गणेश की मूर्ति लगी हुई हैं। इसका निर्माण पूणतः आधुनिक रूप से किया गया हैं.

इसको संग्रहालय भी कहा जाता है हालाँकि यहाँ पर रखे सभी प्राचीन अस्त्र और शस्त्र को उदयपुर ले गए है फिर भी प्राचीन समय की मनोरम तस्वीरें और मूर्तियां यहाँ देखने को मिलती हैं। इसके चारों कोनों पर बुर्ज बने हुए हैं।

[13] समिद्धेश्वर महादेव चित्तौडग़ढ़ ( samiddheshwar mahadev)

विजय स्तम्भ और जौहर स्थल के समीप स्थित हैं ,यह बहुत प्राचीन मंदिर हैं. इसकी खासियत यह  कि शिवलिंग तीन मुख वाला हैं जो की ब्रह्मा ,विष्णु और महेश के प्रतीक हैं.

पुरे विश्व में ऐसे सिर्फ 2 मंदिर हैं. इसका निर्माण भोपाल के परमार वंश के राजा भोज ने 11वीं  शताब्दी में बनाया था. इस मंदिर के बाहर परिसर में कई मूर्तियां टूटी हुई  है जिनको खिलजी के पुत्र खिज्रखान ने तोड़ी थी.

14 गौमुख कुंड (gaumukh kund)

जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता यह कुंड गाय के मुँह के समान बना हुआ हैं. यहाँ से लगातार पानी बहता रहता हैं. यह बहता हुआ झरना शिवलिंग पर गिरता है. इस कुंड में लोग नहाने हैं और तैरने का पूरा आनंद लेते है.

साथ ही इस कुंड में बहुत सारी मछलिया भी मौजूद है. चित्तौडग़ढ़ दुर्ग का इतिहास को बयां करता यह कुंड बहुत प्राचीन हैं.

(1) दुर्ग के प्रथम द्वार का नाम क्या हैं?

उत्तर- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रथम द्वार का नाम पाडन पोल हैं.

(2) चित्तौड़गढ़ दुर्ग का मुख्य द्वार कौनसा हैं?

उत्तर- चित्तौड़गढ़ दुर्ग का मुख्य द्वार सूरज पोल हैं.

(3) चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थल कौनसे हैं?

उत्तर- कालिका माता मंदिर, विजय स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ, मीरा मंदिर, गौमुख कुण्ड, समाधीश्वर मंदिर, फतेहप्रकाश महल, रानी पद्मिनी महल, रतन सिंह महल, राणा कुम्भा महल आदि.

(4) चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया?

उत्तर- ऐतिहासिक मान्यतानुसार चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने किया था जबकि पौराणिक मान्यतानुसार इसका निर्माण महाबली भीम ने किया था.

(5) चित्तौड़गढ़ दुर्ग के साके?

उत्तर- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के 3 साके हुए हैं.

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दोस्तों उम्मीद करते हैं “चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास” (Chittorgarh Fort History In Hindi) पर आधारित यह लेख आपको पसंद आया होगा, धन्यवाद.

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List Of 12 Jyotirlinga- भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं. भगवान शिव को मानने वाले 12 ज्योतिर्लिंगो के दर्शन करना अपना सौभाग्य समझते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता हैं कि इन स्थानों पर भगवान शिव ज्योति स्वररूप में विराजमान हैं इसी वजह से इनको ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता हैं. 12 ज्योतिर्लिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं. इस लेख में हम जानेंगे कि 12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? 12 ज्योतिर्लिंग कहाँ-कहाँ स्थित हैं? 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान. यहाँ पर निचे List Of 12 Jyotirlinga दी गई हैं जिससे आप इनके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर पाएंगे. 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि ( List Of 12 Jyotirlinga ) 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि (List Of 12 Jyotirlinga) निम्नलिखित हैं- क्र. सं. ज्योतिर्लिंग का नाम ज्योतिर्लिंग का स्थान 1. सोमनाथ (Somnath) सौराष्ट्र (गुजरात). 2. मल्लिकार्जुन श्रीशैल पर्वत जिला कृष्णा (आँध्रप्रदेश). 3. महाकालेश्वर उज्जैन (मध्य प्रदेश). 4. ओंकारेश्वर खंडवा (मध्य प्रदेश). 5. केदारनाथ रूद्र प्रयाग (उत्तराखंड). 6. भीमाशंकर पुणे (महाराष्ट्र). 7...

नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) का इतिहास व कहानी

Nilkanth varni अथवा स्वामीनारायण (nilkanth varni history in hindi) का जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ था। नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण का अवतार भी माना जाता हैं. इनके जन्म के पश्चात्  ज्योतिषियों ने देखा कि इनके हाथ और पैर पर “ब्रज उर्धव रेखा” और “कमल के फ़ूल” का निशान बना हुआ हैं। इसी समय भविष्यवाणी हुई कि ये बच्चा सामान्य नहीं है , आने वाले समय में करोड़ों लोगों के जीवन परिवर्तन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा इनके कई भक्त होंगे और उनके जीवन की दिशा और दशा तय करने में नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का बड़ा योगदान रहेगा। हालाँकि भारत में महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी महाराज और पृथ्वीराज चौहान जैसे योद्धा पैदा हुए ,मगर नीलकंठ वर्णी का इतिहास सबसे अलग हैं। मात्र 11 वर्ष कि आयु में घर त्याग कर ये भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े। यहीं से “नीलकंठ वर्णी की कहानी ” या फिर “ नीलकंठ वर्णी की कथा ” या फिर “ नीलकंठ वर्णी का जीवन चरित्र” का शुभारम्भ हुआ। नीलकंठ वर्णी कौन थे, स्वामीनारायण का इतिहास परिचय बिंदु परिचय नीलकंठ वर्णी का असली न...

मीराबाई (Meerabai) का जीवन परिचय और कहानी

भक्तिमती मीराबाई ( Meerabai ) भगवान कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती हैं । वह बचपन से ही बहुत नटखट और चंचल स्वभाव की थी। उनके पिता की तरह वह बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लग गई। राज परिवार में जन्म लेने वाली Meerabai का विवाह मेवाड़ राजवंश में हुआ। विवाह के कुछ समय पश्चात ही इनके पति का देहांत हो गया । पति की मृत्यु के साथ मीराबाई को सती प्रथा के अनुसार अपने पति के साथ आग में जलकर स्वयं को नष्ट करने की सलाह दी गई, लेकिन मीराबाई सती प्रथा (पति की मृत्यु होने पर स्वयं को पति के दाह संस्कार के समय आग के हवाले कर देना) के विरुद्ध थी। वह पूर्णतया कृष्ण भक्ति में लीन हो गई और साधु संतों के साथ रहने लगी। ससुराल वाले उसे विष  देकर मारना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया अंततः Meerabai भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गई। मीराबाई का इतिहास (History of Meerabai) पूरा नाम meerabai full name – मीराबाई राठौड़। मीराबाई जन्म तिथि meerabai date of birth – 1498 ईस्वी। मीराबाई का जन्म स्थान meerabai birth place -कुड़की (जोधपुर ). मीराबाई के पिता का नाम meerabai fathers name – रतन स...