जयाजीराव सिंधिया का इतिहास
महाराजा जयाजीराव सिंधिया ग्वालियर रियासत के राजा थे। 7 फरवरी 1843 से लेकर 20 जून 1886 तक लगभग 43 वर्षों तक शासन किया था। महज़ 9 वर्ष की आयु में इन्हें ग्वालियर रियासत की कमान सौंपी गई। मराठा साम्राज्य के अधीन ग्वालियर रियासत के सिंधिया राजवंश के श्रीमंत जयाजीराव सिंधिया ने ब्रिटिश शासन के तहत ग्वालियर के शासक रहे। इनसे पहले जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय इस रियासत के महाराज थे।
महाराजा जयाजीराव सिंधिया
पूरा नाम | महाराजा जयाजीराव सिंधिया |
बचपन का नाम | भागीरथ शिंदे |
अन्य उपाधियां | अलीजहा बहादर, रफ़ी उस शान, वाला शुकोह |
जन्म दिनांक | 19 जनवरी 1834, ग्वालियर |
मृत्यु तिथि | 20 जून 1886 |
पिता का नाम | जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय |
पत्नियों के नाम | महारानी चिमनाराजे कदम (1843), महारानी लक्ष्मीबाई राजे गुजर (1852), महारानी बाबूयी बाई राजे सावंत (1873), महारानी साख्याबाई. |
संताने | माधो राव और श्रीमंत गणपत राय |
जयाजीराव सिंधिया का जन्म 19 जनवरी 1834 को हनवंत राव के पुत्र भागीरथ शिंदे के रूप में हुआ था। ग्वालियार के राजा जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय का 1843 ईस्वी में निधन हो जाने के बाद उनकी विधवा पत्नी महारानी ताराबाई सिंधिया ने भागीरथ शिंदे को गोद लिया।
भागीरथ शिंदे उर्फ़ जयाजीराव सिंधिया को 22 फरवरी 1843 के दिन ग्वालियर रियासत की गद्दी पर बिठाया गया। जानकोजी राव द्वितीय के मामा को रिजेंट बनाया गया।इनके पुत्र श्रीमंत गणपतराव थे जिनकी मृत्यु 1920 में हुई थी। गणपतराव बहुत ही प्रसिद्ध संगीतकार थे, जिन्होंने अभिनेत्री नरगिस की माता जद्दनबाई को प्रशिक्षित किया था।
अंग्रेजो के खिलाफ अभियान
दादा खासगीवाले ने शिंदे घर के मामा साहिब को रिजेंट के पद से हटा दिया गया। इस निर्णय के बाद सिंधिया परिवार ग्रह युद्ध की तरफ अग्रसर हुआ। ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने रेजिडेंट कर्नल एलेग्जेंडर स्पीयर को पद से हटाने का फैसला किया और साथ ही मांग की कि खासगीवाले को आत्मसमर्पण कर देना चाहिए।
ब्रिटिश सेना Sir Hugh Gough के नेतृत्व में ग्वालियर की ओर बढ़ी। दिसंबर 1843 ईस्वी में चंबल नदी को पार कर लिया। 29 दिसंबर 1843 के दिन महाराजपुर और पनियार की लड़ाई हुई,इस युद्ध में ग्वालियर की सेना की हार हुई।
खासगीवाले को ब्रिटिश सेना ने गिरफ्तार कर लिया और बनारस जेल में भेज दिया गया, जहां पर 1845 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद एक संधि हुई जिसके तहत चंदेरी जिले के साथ 1.8 मिलियन के मूल्य की भूमि ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन की गई। सेना की संख्या को कम किया गया।
जैसा कि आप जानते हैं जयाजीराव के पूर्वजों ने अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया और उन से हारे भी। लेकिन 1857 की क्रांति जब शुरू हुई जिसमें अंग्रेजो के खिलाफ भारतीय विद्रोह शुरू हो गया ऐसे समय में जयाजीराव सिंधिया अंग्रेजों के अच्छे दोस्त थे। हालांकि जयाजीराव सिंधिया के मंत्री दिनकर राव, ग्वालियर के ब्रिटिश प्रतिनिधि मेजर चार्टर्स मैकफर्सन दोनों साथ थे।
1 जून 1858 के दिन विद्रोह की सेना में शामिल तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और राव साहिब के नेतृत्व वाली सेना के खिलाफ खुद जयाजीराव सिंधिया मैदान में उतरे और उन्होंने अपनी सेना का नेतृत्व किया। जयाजीराव सिंधिया की सेना में 7000 पैदल सैनिक 4000 घुड़सवार सैनिक और 12 बंदूके थी। जबकि तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और राव सहिब के पास केवल 1500 गुडसवार सेना, 600 पुरुषों की पैदल सेना और 8 बंदूकें थी।
सुबह 7:00 बजे हमला हुआ इस हमले में विद्रोही गुड सवारों ने बंदूकें छीन ली और अंगरक्षक को छोड़कर ग्वालियर की अधिकांश सेना विद्रोहियों के ऊपर चली गई।
जयाजीराव सिंधिया द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य
1861 ईसवी में जयाजीराव ने “ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे” निर्माण के लिए 7.5 मिलियन रुपए और राजपूताना – मालवा रेलवे के इंदौर – नीमच खंड के लिए 1873 में इतनी ही राशि प्रदान की।
1882 ईस्वी में ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे मिडलैंड खंड के लिए राज्य द्वारा भूमि का आवंटन किया गया।
श्रीमंत जयाजीराव सिंधिया ने मोती महल, जय विलास पैलेस, कंपू कोठी, विक्टोरिया बिल्डिंग, गोरखी द्वार और दफरीन सराय जैसी कई नई इमारतों का निर्माण करवाया था। इसके अलावा जयाजीराव सिंधिया (Jayajirao Scindia) ने कोटेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और अपने राज्य में लगभग 69 शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था।
जयाजीराव सिंधिया ने ग्वालियर किले की चारदीवारी और मेन मंदिर, गुजरी महल और जौहर कुंड के टूटे हुए हिस्से के पुनर्निर्माण के लिए 1.5 मिलियन रुपए दिए। 1861 ईसवी में श्रीमंत जयाजीराव सिंधिया को “नाइट्स ग्रैंड कमांडर” से नवाजा गया। उनकी फोटो लंदन प्रेस में छपी और उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के मित्र के रुप में दर्जा दिया गया।1877 ईस्वी में उन्हें महारानी का काउंसलर बनाया गया।
जयाजीराव सिंधिया की मृत्यु
20 जून 1886 में ग्वालियर के जयविलास महल में महाराजा श्रीमंत जयाजीराव सिंधिया का निधन (Death of jayajirao scindia) हो गया।
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