भाई तारु सिंह का इतिहास || History Of Bhai Taru Singh

भाई तारु सिंह का इतिहास संपूर्ण भारत के लिए गर्व का विषय हैं। सिख समुदाय ने अरदास में भाई तारु सिंह की शहीदी को जगह दी हैं। साथ ही अपने गुरुओं के सम्मान और सिख समुदाय की मान मर्यादा को सर्वोपरी रखने के लिए उन्हें “भाई” कहकर पुकारा जाता हैं।

“सिर जाए तां जाए, मेरा सिखी सिदक ना जाए” सिख ऐसा धर्म हैं जिसमें उसूल ही सब कुछ हैं। गुरबाणी का यह कथन यही सीख देता है कि प्रत्येक सिख धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अपने केश की रक्षा करनी चाहिए परिस्थिति चाहे जो भी हो।

लाहौर के मुस्लिम गर्वनर जकारिया खान ने उनके केश उतारने का भरसक प्रयास किया लेकिन भाई तारु सिंह किसी भी शर्त पर राजी नहीं हुए, उन्हें अपना सर कटवाना मंजूर था लेकिन केश नहीं क्योंकी यह गुरुगोविंद सिंह द्वारा बताए गए नियमों के विरुद्ध था। भाई तारु सिंह का नाम पुरे भारत में गर्व के साथ लिया जाता हैं। साथ ही 1 जुलाई को Bhai Taru Singh Shaheedi Divas मनाया जाता हैं।

Bhai Taru Singh History In Hindi.
Bhai Taru Singh

भाई तारु सिंह का इतिहास (History Of Bhai Taru Singh)

  • पूरा नाम- तारु सिंह जी।
  • जन्म वर्ष-1720.
  • जन्म स्थान- अमृतसर।
  • गांव – फूले (कसूर तहसील).
  • मृत्यु तिथि- 1 जुलाई 1745.
  • मृत्यु स्थान- लाहौर।
  • मृत्यु के समय आयु- 25 वर्ष।
  • पिता का नाम-  भाई जोध सिंह जी।
  • माता का नाम- बीबी धर्म कौर जी।
  • बहिन का नाम- तार कौर जी।

तारु सिंह के जन्म के समय अमृतसर और लाहौर मुगल सम्राज्य के अधीन थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु के पश्चात इनकी देखरेख इनकी विधवा माता जी द्वारा की गई। तारु सिंह की एक बहिन भी थी जिनका नाम तार कौर था। दोनों भाई बहिन और इनकी माता एक साथ रहते थे। गरीब परिवार में जन्म लेने वाले भाई तारु सिंह पेशे से किसान थे।

पूल्हा नामक गांव जो कि कसूर तहसील (लाहौर) में था इनका छोटा सा खेत जिसमें मुख्यतया मक्की उगाई जाती थीं। तारु सिंह सच्चे और पक्के सिख थे जो सिख धर्म के सभी नियमों का पालन करते थे।

गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि “सिख की पहली पहचान ही उसके केश होते हैं” सिखों को कभी भी केश नहीं कटवाने चाहिए। सिख समुदाय इस नियम का कड़ाई से पालन करता हैं। भाई तारु सिंह सिख समुदाय के नियमों का ईमानदारी के साथ पालन करते थे। प्रतिदिन 21 बार जपुजी साहिब का पाठ पूर्ण करने के पश्चात ही भोजन-प्रसाद ग्रहण करते थे।

मुगलों द्वारा अत्याचार

18वीं सदी के प्रारंभ में मुगलों की क्रूरता और अत्याचार चरम सीमा पर था। मुगल जबरन धर्म परिवर्तन में लगे हुए थे ताकि उनकी ताकत बढ़ सके। इसी क्रम में वो दूसरे समुदाय की लड़कियों को जबरन उठा ले जाते हैं और उनका धर्म परिवर्तन करवाते हैं। साथ ही अन्य समुदाय से जुड़े लोगों पर अत्याचार करते और उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए विवश करते।

इस समय सिख समुदाय के लोग शहरों को छोड़कर जंगलों की तरफ भागने लगे ताकि अपनी बहन बेटियों की आबरू को भी बचाया जा सके और खुद को भी मुगलों से बचाया जा सके। यह देख कर भाई तारु सिंह बहुत दुखी रहते थे। सिख समुदाय के जो लोग शहर छोड़कर जंगलों में रह रहे थे, उनकी पूरी मदद भाई तारु सिंह करते थे। जिनमें उन तक आवश्यक सामग्री पहुंचाना, खाने पीने की व्यवस्था करना, साथ ही वह एक बहुत बड़ा लंगर लगाते थे ताकि भूखे प्यासे को खाना पानी मिल सके।

भाई तारु सिंह ने खुद को लोगों की सेवा करने में लगा दिया था। यह बात मुगलों को कतई पसंद नहीं आई। लेकिन दूसरी तरफ भाई तारु सिंह ने अपना काम जारी रखा।

रहीम बख्श की बेटी को मुक्त करवाई

रहीम बख्श नामक एक मछुआरा था जो मछलियां पकड़ता और अपनी आजीविका चलाता। रहीम बख्श की एक पुत्री थी जिसे मुगल उठा ले गए। बहुत प्रयास करने के बाद भी और शिकायत दर्ज करवाने के बाद भी जब रहीम बख्श की किसी ने नहीं सुनी तो वह हार गए। 1 दिन की बात है रहीम बख्श रात का समय होने की वजह से रहीम बख्श भटक गए और तारु सिंह के लंगर में जा पहुंचे।

रहीम बख्श को विश्राम करने के लिए जगह मिल गई तारु सिंह ने उन्हें भोजन करवाया और उनकी आपबीती सुनी। पूरी घटना के बारे में जानने के बाद भाई तारु सिंह बहुत दुखी हुए।

रहीम बख्श ने बताया कि मैं गांव में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा, मेरी मदद करो। यह बात सुनने के बाद तारु सिंह ने रहीम बख्श को विश्वास दिलाया कि तुम्हारी बात गुरु के दरबार तक पहुंच चुकी है, आप निश्चिंत रहो आपकी बेटी मिल जाएगी।

रहीम बख्श सुबह होते ही वहां से चले गए, दूसरी तरफ भाई तारु सिंह ने यह बात सिंखों के एक गुट को बताई जो मरने या मारने के लिए तैयार रहते थे। पता लगाकर इस गुट ने रहीम बख्श की बेटी को मुगलों से मुक्त करवाया।

कई मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। रहीम की बेटी की खोज पूरी होने के बाद और सुरक्षित उसके पिता के पास पहुंचाने से भाई तारु सिंह बहुत खुश हुए।

भाई तारु सिंह बनाम जकारिया खान

जब रहीम की बेटी की रिहाई और मुगलों के कत्लेआम की खबर लाहौर के गर्वनर जकारिया खान तक पहुंची तो वह बहुत क्रोधित हुआ। तारु सिंह ने ना सिर्फ इनके काम में बाधा डाली बल्कि कई मुगलों को मौत के घाट उतार दिए जाने की वजह से जकारिया खान का पारा गरम कर दिया।


जैसा कि इतिहास गवाह है मुगल प्रारंभ से ही अत्याचार, लूटपाट, चोरी, बलात्कार और धर्म परिवर्तन जैसे कुकृत्य करते रहे हैं।
जकारिया खान ने उसके सैनिकों को आदेश दिया कि तारु सिंह को गिरफ्तार कर लिया जाए और उसका धर्म परिवर्तन किया जाए। मुगल सैनिक भाई तारु सिंह के घर पहुंचे और उन्हें सारी बात बताई। यह बात सुनकर भाई तारु सिंह को तनिक भी दुख नहीं हुआ और ना ही उन्हें गुस्सा आया बल्कि उल्टा उन्होंने मुगल सैनिकों को भोजन करवाया और उनके साथ निकल पड़े।


जब तारु सिंह, जकारिया खान के सामने पहुंचे तो वह बहुत खुश हुआ। जकारिया खान ने भाई तारु सिंह से कहा कि जो काम तुमने किया है उसके लिए तुम्हें कतई माफ नहीं किया जा सकता लेकिन तुम्हारे पास जीवित रहने के लिए एक उपाय है, तुम इस्लाम कबूल कर लो और हमारे साथ आ जाओ। आपकी सभी गलतियों को माफ कर दिया जाएगा।

तारु सिंह ने कहा कि मुझे तुम्हारे रहम और माफी की जरूरत नहीं है, चाहे जो भी हो जाए मैं धर्म परिवर्तन नहीं करूंगा, हमारे धर्म गुरुओं की मान मर्यादा का ख्याल रखूंगा।

यह बात सुनते ही जकारिया खान ने सैनिकों को आदेश दिया कि इसे तहखाने में डाल दो और तब तक अत्याचार करो जब तक यह इस्लाम कबूल नहीं कर ले। भाई तारु सिंह को तहखाने में डाल दिया। तारु सिंह को इस्लाम कबूल करवाने के लिए जकारिया खान ने साम-दाम-दंड-भेद सभी नीतियों का सहारा लिया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

भाई तारु सिंह का सर कलम

बहुत समय बीत जाने के पश्चात भी भाई तारु सिंह अपने फैसले पर अडिग रहे। इस बात से जकारिया खान चिड़ गया उसका गुस्सा बढ़ गया। सिख साहित्य में एक घटना का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार जकारिया खान ने भाई तारु सिंह से कहां की “सिख धर्म में गुरु और गुरु के सिखों से अगर कुछ मांगा जाए तो वह अरदास पूरी होती है।

क्या यह सत्य है तारु सिंह”? इस पर भाई तारु सिंह ने जवाब दिया हां सत्य है कहिए क्या चाहिए? जकारिया खान ने कहा मुझे आपके केश चाहिए। यह बात सुनकर भाई तारु सिंह ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया “मैं तुम्हें केश दूंगा, लेकिन काटकर नहीं खोपड़ी समेत” दूंगा।

इस बात ने जकारिया खान के गुस्से को और बढ़ा दिया जैसे किसी ने जलती हुई आग में घी डाला हो। उन्होंने जल्लाद खुरपी को बुलाया और भाई तारु सिंह के सर को धड़ से अलग करने के लिए आदेश दिया।

बिना परवाह किए हंसते-हसते भाई तारु सिंह ने अपनी गर्दन आगे कर दी। धीरे-धीरे तलवार द्वारा उनके सर को कलम किया जा रहा था लेकिन निरंतर वह जपुजी साहिब का पाठ कर रहे थे। उन्हें कुछ भी दुख नहीं था, वह अपने धर्म का पालन कर रहे थे।

जकारिया खान को जूते मारे

जब भाई तारु सिंह की खोपड़ी उतारी जा रही थी तब वह लगातार बाणी पढ़ रहे थे। खोपड़ी उतारने के पश्चात उन्हें एक खाई में फेंक दिया गया। यह देख कर जकारिया खान बहुत खुश हुए लेकिन तभी भाई तारु सिंह ने जवाब दिया कि ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है “मैं तुम्हें जूते मार कर नरक में भेजूंगा”।

जब भाई तारु सिंह को खाई में फेंकने की बात सिख समुदाय के लोगों को हुई, तो वह तत्काल वहां पर पहुंचे और भाई तारु सिंह को बाहर निकाला और इलाज करवाया। लेकिन उनके सर से बहुत अधिक खून बह चुका था। बाद में उन्होंने इलाज करवाने से साफ इंकार कर दिया और अपने गुरु जी को याद करने लग गए, पूरी तरह ध्यान मग्न हो गए।

दूसरी तरफ जकारिया खान का पेशाब बंद हो गया और ऐसा असहनीय दर्द उठा जो कल्पना से बाहर था। धीरे-धीरे जकारिया खान को एहसास होने लगा कि शायद यह भाई तारु सिंह के साथ अत्याचार की वजह से हुआ है।

जब जकारिया खान को अपनी गलती का एहसास हुआ और असहनीय दर्द बढ़ता ही गया तब वह खालसा पंथ के अनुयायियों के पास एक क्षमा पत्र भेजा और उसकी तकलीफ का उपाय पूछा। तब वहां से जवाब मिला कि इस तकलीफ की वजह भाई तारु सिंह ही है।

भाई तारु सिंह द्वारा पहने गए जूते यदि जकारिया खान अपने सिर पर मारेगा तो उसे पेशाब आएगा और दर्द गायब हो जाएगा लेकिन उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन असहनीय दर्द की वजह से जकारिया खान ने भाई तारु सिंह के जूते अपने सर पर मारे। जूते सर पर मारते ही उसे पेशाब आ गया और दर्द गायब हो गया। यह सिलसिला लगभग 21 दिनों तक चलता रहा 22 वे दिन सुबह के समय 1 जुलाई 1745 ईस्वी को जकारिया खान की मृत्यु हो गई।

भाई तारु सिंह की मृत्यु कैसे हुई?

1 जुलाई 1745 के दिन ही जब भाई तारु सिंह ने जकारिया खान की मौत की खबर सुनी उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। गुरु के ध्यान में मग्न भाई तारु सिंह ने भी इसी दिन देह त्याग दी।

सिख धर्म में भाई तारु सिंह का विशेष स्थान है, सिख अरदास करते समय भाई तारु सिंह को शहीदी का दर्जा देते हैं। 1 जुलाई को Bhai Taru Singh Shaheedi Divas मनाया जाता हैं।

भाई तारु सिंह से जुड़े हुए रोचक तथ्य

1.  “सिर जाए तां जाए, मेरा सिखी सिदक ना जाए” इस बात का भाई तारु सिंह कड़ाई के साथ पालन करते थे।

2. सिख धर्म में भाई तारु सिंह को अरदास के समय याद किया जाता है और शहीदी का दर्जा दिया गया है। साथ ही इनके सम्मान में इन्हें “भाई” कहकर पुकारा जाता है।

3. मुगल बड़ी मात्रा में सिखों को धर्म परिवर्तन करवा कर, इस्लाम कबूल करवाना चाहते थे लेकिन यह भाई तारु सिंह को कतई मंजूर नहीं था।

4. रहीम बख्श नामक व्यक्ती की बेटी को इन्होंने मुगलों से मुक्त करवाया था।

5. भाई तारु सिंह द्वारा लंगर लगाए जाना, सिख समुदाय की सहायता करना, अपने धर्म के प्रति पूर्ण ईमानदार होना लाहौर के गवर्नर जकारिया खान को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

6. जकारिया खान किसी भी कीमत पर भाई तारु सिंह को इस्लाम कबूल करवा कर अपने सपनों को पूरा करना चाहते थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
7. जकारिया खान ने भाई तारु सिंह के पहने हुए जूते खुद के सिर पर मारे तब जाकर उसको पेशाब नहीं आने की समस्या का समाधान हुआ।
8. भाई तारु सिंह पूरी ईमानदारी के साथ सिख धर्म के नियमों का पालन करते थे।

9. भाई तारु सिंह हिंदुओं को अपने भाई के समान मानते थे।

10. 1 जुलाई 1745 के दिन भाई तारु सिंह शहीद हुए थे।


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