खानवा का युद्ध बाबर और महाराणा सांगा के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध 16 मार्च 1527 के दिन आगरा से 35 किलोमीटर दूर खानवा नामक गांव में लड़ा गया था। महाराणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया खानवा का युद्ध इतिहास के सबसे भीषण और भयानक युद्ध में शामिल हैं। इस युद्ध में एक मुस्लिम सेनापति के विश्वासघात के कारण महाराणा सांगा को पराजय का सामना करना पड़ा।
इस लेख में हम बढ़ेंगे की महाराणा सांगा और बाबर के बीच खानवा का युद्ध क्यों लड़ा गया? खानवा के युद्ध में कौन विजय रहा।
खानवा का युद्ध
कब लड़ा गया- 16 मार्च 1527.
किसके बिच लड़ा गया- महाराणा सांगा और बाबर के बीच.
किसकी जीत हुई- बाबर।
पानीपत के प्रथम युद्ध में जीत से बाबर का हौसला सातवें आसमान पर था अब वह ना सिर्फ दिल्ली बल्कि संपूर्ण भारत में अपने प्रभुत्व और साम्राज्य के विस्तार का सपना देखने लगा। साम्राज्य विस्तार में बाबर के सामने सबसे बड़ा रोड़ा थे मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा।
मुगल साम्राज्य की स्थापना का सपना लिए बाबर अपनी सेना के साथ नई रणनीति बनाने पर जुट गया। बाबर अच्छी तरीके से जानता था कि यदि उसे भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करनी है, तो मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा को पराजित करना ही होगा।
दूसरी तरफ महाराणा सांगा को लगता था कि बाबर सिर्फ लूटपाट के इरादे से भारत में आया है और वह लूटपाट करके वापस चला जाएगा। बाबर के चले जाने के बाद वह इब्राहिम लोदी को पराजित करके दिल्ली को आसानी के साथ हथिया लेगा और संपूर्ण भारत में हिंदू स्वराज्य की पुनः स्थापना हो जाएगी।
16 मार्च 1527 के दिन लड़े गए खानवा के युद्ध में बाबर ने महाराणा सांगा को पराजित कर दिया। इसके साथ ही महाराणा सांगा का हिंदू स्वराज्य का सपना टूट गया।
खानवा युद्ध के कारण
1. महाराणा सांगा इब्राहिम लोदी को पराजित करके दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में लेना चाहते थे ताकि संपूर्ण भारत में पुनः हिंदू स्वराज्य की स्थापना की जा सके।
2. हिंदू स्वराज्य की स्थापना करने के लिए महाराणा सांगा ने अपने राज्य को मेवाड़ से लेकर आगरा तक काफी मजबूत कर दिया था।
3. महाराणा सांगा की सोच के विपरीत बाबर दिल्ली छोड़कर नहीं गया बल्कि भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना के सपने देखने लगा।
4. सिंधु और गंगा घाटी के क्षेत्र में बाबर की स्थिति अधिक मजबूत थी। जिससे महाराणा सांगा को लगने लगा था कि बाबर की स्थिति और अधिक मजबूत हो उससे पहले इसको हिंदुस्तान से खदेड़ना होगा।
5. महाराणा सांगा का साथ देने वाले अफ़गानों में इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी और हसन खा मेवाती मुख्य चेहरे थे। बाबर इन अफगानों को पराजित करके महाराणा सांगा को कमजोर करना चाहता था।
जैसे ही महमूद लोदी और हसन खा मेवाती को पता चला कि बाबर उन पर आक्रमण करने वाला है तो यह दोनों अपनी सेना सहित महाराणा सांगा के पास पहुंचे और उन्हें बाबर के खिलाफ युद्ध में साथ देने और युद्ध करने के लिए उकसाया।
6. पानीपत के प्रथम युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद इब्राहिम लोधी का वर्चस्व लगभग खत्म हो गया था और उसके अधीनस्थ क्षेत्रों को बाबर अपना मानता था और यही वजह रही कि धौलपुर, बयाना, कालपी, आगरा पर जब महाराणा सांगा का अधिकार हो गया तो बाबर बोखला गया।
7. जब बाबर पहली बार भारत आया तब उसने महाराणा सांगा के साथ समझौता किया कि दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध में महाराणा सांगा बाबर की मदद करेगा, लेकिन अंत में महाराणा सांगा ने बाबर का साथ देने से मना कर दिया। इससे भी वह बौखला गया और महाराणा सांगा से युद्ध करने के बारे में सोचने लगा।
8. इब्राहिम लोदी को पराजित करने के बाद बाबर स्वयं को दिल्ली का बादशाह समझता था जबकि महाराणा सांगा उसे दिल्ली का बादशाह नहीं मानते थे। वह उसे सिर्फ एक लुटेरा मानते थे, इस वजह से बाबर राणा सांगा से बैर रखता था।
9. अपने साम्राज्य विस्तार और भारत में पुनः हिंदू स्वराज्य की स्थापना करने के उद्देश्य से महाराणा सांगा ने बाबर के खिलाफ युद्ध करने का निर्णय लिया था।
10. संपूर्ण हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य की स्थापना के लिए बाबर को मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा के साथ युद्ध करना पड़ा।
खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा के सहयोगी
इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 इसी में लड़ा गया था इस युद्ध में मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा का साथ देने वालों में महमूद लोदी, हसन खा मेवाती, बसीन चंदेरी, अजमेर, मारवाड़, ग्वालियर आदि शामिल थे।
बाबर द्वारा उसके सैनिकों को प्रेरणा
महाराणा सांगा के नाम से बाबर की सेना में थोड़ा भय था। जब यह बात बाबर को पता चली तो उसने सेना को प्रेरित करने की योजना बनाई। इस योजना के तहत बाबर ने शराबबंदी की और सभी शराब के पात्रों को तुड़वा दिया। पानीपत के प्रथम युद्ध में जिस पराक्रम और शौर्य का प्रदर्शन बाबर की सेना द्वारा किया उसकी याद दिलाते हुए बाबर ने उन्हें समझाया कि महाराणा सांगा के सामने कैसे युद्ध लड़ना है।
खानवा का युद्ध प्रारंभ, महमूद लोदी का विश्वासघात और बाबर की जीत
16 मार्च 1527 का दिन था मेवाड़ के महाराणा सांगा और बाबर के बीच खानवा नामक स्थान पर एक भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ जिसे Khanwa ka yudh नाम से जाना जाता हैं। जैसे ही यह भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ मेवाड़ के वीर सैनिकों ने तबाही मचाना शुरू कर दिया। यह देख कर इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी जो कि सेना का सेनापति था अपनी सेना सहित बाबर की सेना में जा मिला ।
यह देखकर मेवाड़ी सैनिकों का हौसला टूट गया, लेकिन दमखम के साथ लड़ते रहे और इस स्थिति में पहुंच गए कि कभी भी महाराणा सांगा की जीत हो सकती है। तभी बाबर ने अपने तोपखाने का प्रयोग किया और देखते ही देखते मेवाड़ी सेना पर तोपों से आग बरसाना शुरू कर दिया। जिससे मेवाड़ी सेना तितर-बितर हो गई और इस युद्ध में बाबर की जीत हुई।
मेवाड़ के इतिहास की स्पष्ट व्याख्या करने वाली किताब “वीर विनोद” में स्पष्ट लिखा गया है कि यदि विश्वासघात नहीं होता तो खानवा के युद्ध में निश्चित तौर पर महाराणा सांगा की जीत होती।
इस युद्ध के बाद बाबर ने यह स्वीकार किया कि यदि हम तो तोपखानों का इस्तेमाल नहीं करते तो महाराणा सांगा के सामने कभी नहीं जीत पाते। साथ ही आगे बाबर मेवाड़ के वीर सैनिकों के बारे में लिखता है कि वह मरना और मारना तो जानते हैं, लेकिन उनके पास युद्ध कला नहीं है। हालांकि इस युद्ध में महाराणा सांगा घायल जरूर हुए लेकिन इस युद्ध में उनकी मृत्यु नहीं हुई वह वहां से बच कर निकल गए।
खानवा युद्ध के परिणाम
1. खानवा के युद्ध के पश्चात बाबर का परचम पूरे हिंदुस्तान में लहराया क्योंकि बाबर ने हिंदुस्तान के सबसे प्रतापी सम्राट महाराणा सांगा को इस युद्ध में पराजित कर दिया।
2. इस युद्ध से पहले मेवाड़ के शासकों एवं अफगान के शासकों के मध्य एक समझौता हुआ था जिसके तहत वह एक दूसरे की सहायता करते थे। इस समझौते का नाम था “राष्ट्रीय मोर्चा” जोकि खानवा के युद्ध के परिणाम स्वरूप खत्म हो गया।
3. खानवा के युद्ध के परिणाम स्वरूप भारत में हिंदू स्वराज्य की स्थापना का सपना एक बार पुनः धूमिल हो गया।
4. खानवा के युद्ध के पश्चात बाबर दिल्ली का शासक बन गया और बाबर का ध्यान काबुल की बजाय हिंदुस्तान पर ज्यादा रहने लगा।
5. ऐसा माना जाता है कि खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा की पराजय के पश्चात ही हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य का विस्तार हुआ।
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