महाराणा सांगा का इतिहास || History Of Maharana Sanga
महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) मेवाड़ और चित्तौड़गढ़ के इतिहास के वीर और प्रतापी राजा थे। महाराणा सांगा का इतिहास और महाराणा सांगा की कहानी शुरू होती हैं 12 अप्रैल 1482 से, इस दिन राणा रायमल के तीसरे पुत्र के रूप में महाराणा सांगा जन्म हुआ था। न्यायप्रिय महाराणा सांगा के दो भाई भी थे जिनका नाम पृथ्वीराज और जयमल था। महाराणा सांगा बहुत बुद्धिमान,वीर ,जनप्रिय और उद्धार स्वभाव के व्यक्ति थे। महाराणा सांगा का राज्याभिषेक 04 मई 1508 को हुआ था।
महाराणा संग्राम सिंह का बचपन कठिन परिस्थितियों में गुजरा क्योंकि आए दिन तीनों भाइयों में किसी ना किसी बात को लेकर लड़ाई होती रहती थी. महाराणा सांगा के 7 में से 4 पुत्र सांगा के जीवन काल में ही मर गए जिनमें भोजराज ,करण सिंह ,पर्वत सिंह और कृष्ण सिंह का नाम शामिल हैं।
इस लेख में हम महाराणा सांगा का सम्पूर्ण जीवन परिचय ,महाराणा सांगा का इतिहास और महाराणा सांगा की कहानी जानेंगे। साथ ही यह भी पढ़ेंगे कि महाराणा सांगा की छतरी कहाँ पर हैं और महाराणा सांगा (Maharana Sanga) को एक सैनिक का भग्नावशेष क्यों कहा जाता हैं।
महाराणा सांगा का इतिहास और जीवन परिचय (History Of Maharana Sanga)
महाराणा सांगा का पूरा या अन्य नाम- महाराणा संग्राम सिंह।
महाराणा सांगा का जन्म- 12 अप्रैल 1482.
महाराणा सांगा का जन्म स्थान- चित्तौड़गढ़ (मेवाड़).
महाराणा सांगा की मृत्यु- 30 जनवरी 1528.
महाराणा सांगा मृत्यु स्थान- कालपी।
महाराणा सांगा राज्याभिषेक कब हुआ- 04 मई 1508 को.
महाराणा सांगा की माता का नाम- श्रृंगारदेवी
महाराणा सांगा के पिता का नाम- राणा रायमल।
महाराणा सांगा कहाँ के राजा थे- मेवाड़।
महाराणा सांगा का राज्याभिषेक- 04 मई 1508.
महाराणा सांगा के मुख्य युद्ध- बाड़ीघाटी का युद्ध (1517 धौलपुर), खतौली का युद्ध (1518),बयाना का युद्ध (1527 भरतपुर) और खानवा का युद्ध (1527 भरतपुर).
महाराणा सांगा की पत्नी का नाम- रानी कर्णावती।
महाराणा सांगा की संतानें-महाराणा सांगा के 7 पुत्र और 3 पुत्रियां थी
(1) भोजराज।
(2) करण सिंह।
(3) रतन सिंह ।
(4) विक्रमादित्य।
(5) उदय सिंह ।
(6) पर्वत सिंह ।
(7) कृष्ण सिंह।
महाराणा सांगा की कहानी की शुरुआत होती हैं, अपने भाइयों के साथ लड़ाई से। अपने दोनों बड़े भाइयों पृथ्वीराज और जयमल के साथ संग्राम सिंह का झगड़ा होता रहता था। एक बार तीनों में बड़ा संघर्ष हुआ, बड़े भाई पृथ्वीराज ने संग्राम सिंह की एक आंख फोड़ दी, सांगा ने हमेशा के लिए अपनी एक आंख खो दी।
अपने दोनों बड़े भाई से लड़ाई के बाद संग्राम सिंह ने अपनी पहचान छुपाकर आम सैनिक की हैसियत से अलग रहने लग गए । वह जिनके साथ रहता था उनका नाम करमचंद पंवार था, जो कि श्रीनगर अजमेर के रहने वाले थे। संग्राम सिंह का जीवन गुमनामी में बीत रहा था।
एक दिन की बात है महाराणा सांगा एक वृक्ष के नीचे सो रहे थे। वह गहरी नींद में थे और उनके ऊपर धूप आ चुकी थी, तभी वहां पर एक सांप आया और उनके ऊपर फन से छाया कर दी। तभी अचानक वहां करमचंद पंवार आ गए और सांप को देखकर वह हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने संग्राम सिंह को जगाया और सांप वाली बात बतायी और पूछा कि सच-सच बताओ आप कौन हैं?
तभी संग्राम सिंह ने हल्की मुस्कुराहट के साथ अपना परिचय दिया और बताया कि वह महाराणा रायमल के तीसरे पुत्र है। यह सुनकर करमचंद ने सर झुकाकर संग्राम सिंह (महाराणा सांगा) को प्रणाम किया। पृथ्वीराज और जयमल के देहांत के पश्चात महाराणा रायमल को पता लगा की संग्राम सिंह जिंदा है तो उन्होंने उसको बुलावा भेजा।
4 मई 1508 ईसवी को महाराणा रायमल का देहांत हो गया और उनके पुत्र संग्राम सिंह (महाराणा सांगा) का राज्यभिषेक हुआ।
संग्राम सिंह आगे चलकर महाराणा सांगा के नाम से प्रसिद्ध हुए । महाराणा सांगा ऊंचे कद के थे, इनके हाथ लंबे और रंग गेहुआ था। महाराणा सांगा सूर्यवंशी राजपूत राजवंशी थे।
बाहरी आक्रमणकारियो से लोहा लेने हेतु इन्होंने संपूर्ण राजपूत लोगों और राजाओं को एक बंधन में बांधकर एकजुट किया। महाराणा सांगा बहुत ही उदारवादी और शक्तिशाली हिंदू राजा थे।
महाराणा सांगा की सेना और पड़ौसी राजाओं से सम्बन्ध
04 मई 1508 को महाराणा सांगा का राज्याभिषेक होने के बाद, सबसे पहले अगर महाराणा सांगा की सेना की बात की जाए तो इनकी सेना में एक लाख से ज्यादा वीर योद्धा और 500 से ज्यादा हाथी थे। बड़े राज्यों के 7 राजा और प्रजा ,9 राव और 107 प्रसिद्ध रावत थे। उस समय राजस्थान के आमेर और जोधपुर जैसे बड़े राज्यों के राजा भी महाराणा सांगा का मान-सम्मान करते थे और प्रमुख कार्यों में इनकी सलाह लेते थे। उस समय सामंतवादी प्रथा का प्रचलन था।
प्रसिद्ध राजघराने आबू ,गागरोन ,कालपी ,बूंदी, ग्वालियर, रामपुरा, सीकरी, मालवा ,भोपाल और अजमेर इनके सामंत थे। राणा सांगा की वीरता से दुश्मनों में हमेशा भय बना रहता था। उस समय दिल्ली में सिकंदर लोदी का राज्य था। गुजरात में महमूद शाह और मालवा में नसीरुद्दीन खिलजी का राज्य था। यह तीनों मुस्लिम राजा एक थे और राणा के भय से तीनों ने आपस में संधि कर रखी थी।
उस समय तीनो ने मिलकर राणा सांगा से युद्ध किया। बहुत भयानक युद्ध हुआ ,मुस्लिमों की एकजुटता भी काम नहीं आई और राणा सांगा की जीत हुई।
सन 1517 ईस्वी में बूंदी के समीप स्थित मैदान में एक प्रसिद्ध और भयानक युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को बुरी तरह पराजित किया लेकिन उनका बाँया हाथ पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और दायां पांव कट गया। राणा सांगा के सामंत “रायमल राठौड़” को ईडर की गद्दी पर बिठाने के लिए “मुजफ्फर” को अहमदनगर विशाल नगर और ईडर में तीन बार पराजित किया।
इस तरह हर सुल्तान मुजफ्फर को गुजरात से पूर्ण रुप से खदेड़ दिया गया। महाराणा सांगा ने रायमल राठौर को ईडर की राजगद्दी पर बिठाया। अहमदनगर का जागीरदार निजामूलमुल्क किले में छुप गया। मुसलमानों ने किले को पूर्ण रूप से बंद कर दिया ताकि कोई अंदर प्रवेश ना कर सके और किले को बचाया जा सके।
महाराणा सांगा ने फिर आक्रमण किया सांगा का करीबी डूंगर सिंह वागड़ घायल हो गया और डूंगर सिंह के परिवार के कई सदस्य वीरगति को प्राप्त हो गए। डूंगर सिंह के बड़े बेटे “कान सिंह कन्हैया” एक वीर योद्धा थे।
अहमदनगर किले के दरवाजे के ऊपर लोहे के बड़े बड़े नुकीले भाले लगे हुए होने के कारण किले को भेद पाना बहुत मुश्किल था। भाले बहुत नुकीले थे उनको हाथी भी नहीं तोड़ पा रहे थे। कानसिंह सिंह को एक उपाय सूझा वह खुद दरवाजे के चिपक गया और महावत को आदेश दिया कि अब हाथी के सिर से मेरे ऊपर जोर से वार करो हाथी ने जोर से वार किया कानसिंह ने प्राण त्याग दिए।
लेकिन दरवाजा टूट गया और सेना ने किले में प्रवेश कर लिया अंदर प्रवेश करते ही मुसलमान सेना के सिर धड़ से अलग होने लग गए। निजामूलमुल्क वहाँ से भाग निकला।
सुल्तान महमूद और मांडू का युद्ध
महाराणा सांगा अपनी पूर्ण सेना के साथ गागरोन के राजा की सहायता के लिए गए ,सुल्तान महमूद पर आक्रमण किया बहुत ही कम समय में राणा सांगा ने महमूद को पराजित कर दिया। सांगा के आदेश पर महमूद को राजपूत सेना ने इलाज के लिए अपने साथ ले आए. 3 महीनों तक महमूद को चित्तौड़गढ़ में बंदी बनाकर रखा बाद में उसको वापस मांडू पहुंचा दिया गया।
मांडू पहुंचकर महमूद ने राणा सांगा को उपहार में सोने की कमर पेटी और हीरो-रत्नों से जड़ीत चमचमाता मुकुट भेंट किया।
बाड़ीघाटी का युद्ध (1517 ईस्वी
बाड़ी का युद्ध महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य 1517 ईस्वी में धौलपुर में लड़ा गया। बाड़ी युद्ध प्रतिष्ठा के लिए लड़ा गया युद्ध था। सन 1509 ईसवी में मेवाड़ के महाराणा बनने के पश्चात महाराणा सांगा ने मेवाड़ की सीमाओं का विस्तार करने पर और अपने क्षेत्राधिकार को विस्तारित करने पर ध्यान दिया। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने कई महत्वपूर्ण और पड़ोसी राजपूत राजाओं को एकत्रित किया।
जब इब्राहिम लोदी तक यह खबर पहुंची की महाराणा सांगा उसकी सीमा में घुस आया है तो वह घबरा गया और तुरंत महाराणा सांगा से युद्ध के लिए तैयार हो गया।
इब्राहिम लोदी, महाराणा सांगा को रोकने के लिए सन 1517 ईसवी में अपनी सेना के साथ मेवाड़ राज्य की तरफ कूच किया। महाराणा सांगा को युद्ध का पहले से ही अंदेशा हो गया था इसलिए वह अपनी सेना के साथ युद्ध करने के लिए तैयार थे।
महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य युद्ध सबसे पहले खातोली नामक स्थान पर हुआ जिसमें महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को बुरी तरह पराजित कर दिया। लगातार बदले की आग में जल रहा इब्राहिम लोदी ने अपनी सेना को संगठित करना शुरू कर दिया। इस बार युद्ध में इब्राहिम लोदी स्वयं ना जाकर अपने सेनापति मियां माखन को महाराणा सांगा से लोहा लेने के लिए भेजा।
इब्राहिम लोदी और महाराणा सांगा की सेना के बीच बाड़ी नामक स्थान पर चौकी पहाड़ी क्षेत्र है एक जोरदार लड़ाई लड़ी गई। बाड़ी का युद्ध महाराणा सांगा ने जीत लिया।
इसे बाड़ी धौलपुर का युद्ध के नाम से भी जाना जाता हैं। महाराणा सांगा मेवाड़ की सीमाओं में विस्तार करना चाहते थे, जबकि दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को अंदेशा था कि धीरे-धीरे कहीं उसके साम्राज्य को नष्ट नहीं कर लिया जाए। इब्राहिम लोदी और महाराणा सांगा अपने राज्य के विस्तार और सीमाओं की सुरक्षा के लिए आपस में भिड़ गए।
जैसा कि आपने ऊपर पड़ा बाड़ी का युद्ध महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी की सेनाओं के बीच में लड़ा गया था जिसमें महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी की सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया और ना सिर्फ राजस्थान में बल्कि पूरे भारत में अपना लोहा मनवाया।
बाड़ी के युद्ध के अलावा भी महाराणा सांगा ने कई और युद्ध लड़े जिनमें खातोली का युद्ध, बयाना का युद्ध और खानवा का युद्ध इतिहास में प्रसिद्ध है।
खतौली का युद्ध
खातोली का युद्ध महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ था। खतौली का युद्ध 1517 ईस्वी में खातोली नामक स्थान पर लड़ा गया। खातोली पीपल्दा (कोटा) में स्थित हैं। इब्राहिम लोदी और महाराणा सांगा के बिच लड़ा गया खातोली का युद्ध इतिहास में आज भी स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।खातोली के युद्ध में महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया था।
इस लेख में हम खातोली का युद्ध या घाटोली का युद्ध की विस्तृत चर्चा करेंगे। यह 1517 ईस्वी की बात हैं। दिल्ली में सिकंदर लोदी की मौत के बाद उसका बेटा इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत के शासक बने। इब्राहिम लोदी एक महत्वकांक्षी व्यक्ति था। दूसरी तरफ महाराणा सांगा भी अपने साम्राज्य विस्तार में लगे हुए थे। जब इब्राहिम लोदी तक यह बात पहुंची कि राणा सांगा (Maharana Sanga) साम्राज्य विस्तार कर रहे हैं, तो वो इस बात को लेकर चिंतित हो गए कि कहीं उनके राज्य पर अधिकार ना कर लें।
इब्राहिम लोदी ने मुख्य सेनापतियों को बुलाया और सेना को एकजुट किया। इब्राहिम लोदी मेवाड़ की सेना से लोहा लेने के लिए तैयार था। इस तरह दिल्ली में हुई हलचल की ख़बर मेवाड़ तक पहुंच गई। मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा ने भी अपनी सेना को एकजुट किया और युद्ध के पूर्वाभास के चलते कमर कस ली।
अपनी सेना के साथ इब्राहिम लोदी मेवाड़ की तरह निकल पड़ा। महाराणा सांगा की सेना भी आगे बढ़ गई। छोटी छोटी रियासतों के कई राजाओं ने इस युद्ध में महाराणा सांगा का साथ दिया।
दोनों सेनाओं की राजस्थान के खातोली नामक स्थान पर मुठभेड़ हुई, जो कि वर्तमान में लखेरी नामक स्थान पर था।खातोली का युद्ध लगभग 5 घंटों तक चला। मेवाड़ी सेना का अदम्य साहस और वीरता देखकर इब्राहिम लोदी दांतों तले उंगलियां दबाने लगा। पहली बार उसका सामना किसी शेर से हुआ। नाम के सुल्तान युद्ध मैदान छोड़कर भागने लगे। जैसे तैसे इब्राहिम लोदी खुद की जान बचाकर भागने में कामयाब रहा लेकिन उसका पुत्र अर्थात शाहजादा को मेवाड़ी सेना ने पकड़ लिया।
महाराणा सांगा भी इस युद्ध में घायल हुए। उनका एक हाथ कट गया,एक आंख फूट गई साथ ही शरीर पर अनेक घाव हो गए। इसी वजह से महाराणा सांगा को एक सैनिक का भग्नावशेष कहा जाता हैं।
इब्राहिम लोदी के पुत्र को मेवाड़ लाया गया और छोटा सा दण्ड देकर छोड़ दिया। प्रारंभ से ही मेवाड़ी शासक दरियादिली दिखाते रहे हैं। महाराणा सांगा से हार के पश्चात् इब्राहिम लोदी बदले की आग में तपने लगा और अपनी सेना को पुनः संगठित किया और धौलपुर में भिडंत हुई लेकिन एक बार फिर महाराणा सांगा की सेना विजयी रही।
बयाना का युद्ध
बयाना का युद्ध महाराणा सांगा और बाबर का युद्ध नाम से मशहूर हैं। बयाना का युद्ध महाराणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया पहला युद्ध था।बयाना का युद्ध 21 व 22 फ़रवरी 1527 ईस्वी में लड़ा गया एक ऐतिहासिक युद्ध था। इस युद्ध में महाराणा सांगा ने बाबर को बुरी तरह पराजित कर दिया।
1526 ईस्वी में पानीपत के मैदान में बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य सत्ता को लेकर एक भीषण युद्ध हुआ इस युद्ध में इब्राहिम लोधी की हार होगी और दिल्ली का साम्राज्य बाबर के नाम हो गया। यह पानीपत का प्रथम युद्ध था।
पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा को लगा कि बाबर सिर्फ लूटपाट के इरादे से भारत में आया है और लूटपाट करके पुनः लौट जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।पानीपत के प्रथम युद्ध में जीत से गदगद बाबर ने भारत पर राज करने का इरादा बनाया और अपने जेष्ठ पुत्र हुमायूं को आगरा पर अधिकार करने के लिए सेना सहित भेजा।
इस घटना के पश्चात महाराणा सांगा समझ गए कि बाबर के इरादे भारत पर अधिकार करना है जो उन्हें तथापि मंजूर नहीं था। बाबर को सबक सिखाने के लिए महाराणा सांगा ने सेना सहित बयाना की तरफ रुख किया क्योंकि उस समय बयाना पूर्वी राजस्थान के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता था।
मुगल आक्रांता बाबर ने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए आसपास के राजाओं और जागीरदारों को यह संदेश भिजवाया कि वह बाबर की अधीनता स्वीकार कर ले अन्यथा उन्हें पराजित करके पदच्युत कर दिया जाएगा। इसी मद्देनजर बाबर ने बयाना, मेवात, धौलपुर, ग्वालियर और रापरी के किलेदारों को अधीनता स्वीकार करने के लिए संदेश भेजें।
इब्राहिम लोदी की हार के बाद इन छोटे-छोटे राजाओं को लगा कि अब इन्हें किसी के भी अधीन रहकर काम करने की जरूरत नहीं है, इसलिए सभी स्वतंत्रता पूर्वक अपने राज्य का संचालक कर रहे थे। इस समय बयाना के किलेदार थे “निज़ाम खान” जो कि मूल तैयार अफगानी था, निजाम खान ने बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली इस तरह अब बयाना भी बाबर के साम्राज्य में शामिल हो गया।
दूसरी तरफ हसन खा मेवाती जोकि मेवात के सूबेदार थे। उन्होंने मुगल आक्रांता बाबर की अधीनता स्वीकार करने से स्पष्ट मना कर दिया। इस तरह बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य हुए युद्ध में बाबर की जीत से कुछ राजाओं ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली जबकि कुछ राजाओं ने साफ तौर पर मना कर दिया।
बाबर के विस्तार वाली नीति ने बयाना के युद्ध को जन्म दिया। जैसा कि आपने ऊपर पड़ा बयाना का युद्ध महाराणा सांगा और बाबर के मध्य लड़ा गया था। अब हम चर्चा करेंगे कि बयाना के युद्ध में किसकी जीत हुई।
जब महाराणा सांगा तक यह संदेश पहुंचा की बयाना का किला और जागीरदारी बाबर के साम्राज्य के अधीनस्थ हो चुकी है, तो उन्होंने सेना सहित बयाना की तरफ कूच किया।दुसरी तरफ बाबर भी अपनी सेना सहित आगे बढ़ रहा था। फ़रवरी,1527 के दिन महाराणा सांगा और बाबर को सेना में एक भीषण युद्ध हुआ। किसी ने सोचा नहीं था कि एक नया इतिहास रचेगा। हालांकि मेवाड़ की सेना संख्या में कम थी लेकिन हौंसला दोगुना था।
माना कि बाबर की सेना में दम था लेकिन महाराणा सांगा की सेना के सीने में दम था। अनुमान के विपरित महाराणा सांगा की सेना ने इस युद्ध में बाबर की सेना की धज्जियां उड़ा दी।
इतिहास के पन्नों में बयाना का युद्ध सुनहरे अक्षरों में लिखा गया जो आज भी अमिट हैं। बाबर की सम्राज्य विस्तार निति को जोरदार धक्का लगा।
महाराणा सांगा और बाबर के मध्य हुए युद्ध में महाराणा सांगा की मेवाड़ी सेना ने ऐतिहासिक जीत हासिल की। Maharana Sanga vs Babar yudh ने भारत में महाराणा सांगा की ख्याति में कई गुना इजाफा कर दिया।बयाना का युद्ध एक ऐसा निर्णायक युद्ध साबित हुआ जिससे बयाना पर महाराणा सांगा का अधिकार हो गया।
बयाना के युद्ध में महाराणा सांगा के साथ राजस्थान के कई वीर राजा महाराजाओं ने साथ दिया जिनमें निम्नलिखित शामिल थे-
1 रावल उदयसिंह (डूंगरपुर).
2 राजा नरदेव सिंह.
3 राय दिलीप सिंह.
4 चन्द्रभान सिंह.
5 मेदिनी राय (चंदेरी नरेश).
6 ब्रह्मदेव जी.
7 महमूद खां (गुजरात).
8 मानकचंद जी चौहान.
9 पृथ्वीराज सिंह कछावा (आमेर).
10 राव गंगा जी (मारवाड़).
इस युद्ध में महाराणा सांगा की सेना के 80 सैनिक मारे गए, जबकि बाबर की सेना को जन और धन की बड़ी हानि हुई।
खानवा का युद्ध
खानवा का ऐतिहासिक युद्ध बाबर और महाराणा सांगा के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध 16 मार्च 1527 के दिन आगरा से 35 किलोमीटर दूर खानवा नामक गांव में लड़ा गया था।महाराणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया खानवा का युद्ध इतिहास के सबसे भीषण और भयानक युद्ध में शामिल हैं।
पानीपत के प्रथम युद्ध में जीत से बाबर का हौसला सातवें आसमान पर था अब वह ना सिर्फ दिल्ली बल्कि संपूर्ण भारत में अपने प्रभुत्व और साम्राज्य के विस्तार का सपना देखने लगा। साम्राज्य विस्तार में बाबर के सामने सबसे बड़ा रोड़ा थे मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा।
मुगल साम्राज्य की स्थापना का सपना लिए बाबर अपनी सेना के साथ नई रणनीति बनाने पर जुट गया। बाबर अच्छी तरीके से जानता था कि यदि उसे भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करनी है, तो मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा को पराजित करना ही होगा।
दूसरी तरफ महाराणा सांगा को लगता था कि बाबर सिर्फ लूटपाट के इरादे से भारत में आया है और वह लूटपाट करके वापस चला जाएगा। बाबर के चले जाने के बाद वह इब्राहिम लोदी को पराजित करके दिल्ली को आसानी के साथ हथिया लेगा और संपूर्ण भारत में हिंदू स्वराज्य की पुनः स्थापना हो जाएगी। 16 मार्च 1527 के दिन लड़े गए खानवा के युद्ध में बाबर ने महाराणा सांगा को पराजित कर दिया। इसके साथ ही महाराणा सांगा का हिंदू स्वराज्य का सपना टूट गया।
16 मार्च 1527 का दिन था मेवाड़ के महाराणा सांगा और बाबर के बीच खानवा नामक स्थान पर एक भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ। जैसे ही यह भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ मेवाड़ के वीर सैनिकों ने तबाही मचाना शुरू कर दिया। यह देख कर इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी जो कि सेना का सेनापति था अपनी सेना सहित बाबर की सेना में जा मिला ।
यह देखकर मेवाड़ी सैनिकों का हौसला टूट गया, लेकिन दमखम के साथ लड़ते रहे और इस स्थिति में पहुंच गए कि कभी भी महाराणा सांगा की जीत हो सकती है। तभी बाबर ने अपने तोपखाने का प्रयोग किया और देखते ही देखते मेवाड़ी सेना पर तोपों से आग बरसाना शुरू कर दिया। जिससे मेवाड़ी सेना तितर-बितर हो गई और इस युद्ध में बाबर की जीत हुई।
मेवाड़ के इतिहास की स्पष्ट व्याख्या करने वाली किताब “वीर विनोद” में स्पष्ट लिखा गया है कि यदि विश्वासघात नहीं होता तो खानवा के युद्ध में निश्चित तौर पर महाराणा सांगा की जीत होती।
इस युद्ध के बाद बाबर ने यह स्वीकार किया कि यदि हम तो तोपखानों का इस्तेमाल नहीं करते तो महाराणा सांगा के सामने कभी नहीं जीत पाते। साथ ही आगे बाबर मेवाड़ के वीर सैनिकों के बारे में लिखता है कि वह मरना और मारना तो जानते हैं, लेकिन उनके पास युद्ध कला नहीं है। हालांकि इस युद्ध में महाराणा सांगा घायल जरूर हुए लेकिन इस युद्ध में उनकी मृत्यु नहीं हुई वह वहां से बच कर निकल गए।
महाराणा सांगा की पराजय के 10 मुख्य कारण
महाराणा सांगा की पराजय के कारण अथवा महाराणा सांगा की हार के कारण-
1. बयाना में महाराणा सांगा युद्ध के लिए पहुंचा इस समय मेहंदी ख़्वाजा जो कि क़िले का रक्षक था, उसकी रक्षा के लिए बाबर ने “मोहम्मद सुल्तान मिर्ज़ा” को सेनापति बनाकर भेजा। लेकिन महाराणा सांगा ने इनको बुरी तरह पराजित कर दिया। इस जीत के साथ ही महाराणा सांगा ने बाबर के साथ तत्काल युद्ध करने का निर्णय नहीं लिया। इसकी वजह से बाबर को पूरा समय मिल गया, यह महाराणा सांगा की बड़ी भूल थी। परिणामस्वरूप महाराणा सांगा को पराजय का सामना करना पड़ा।
2. महाराणा सांगा का साथ देने वाले ज्यादातर छोटी छोटी रियासतों के राजा अपने स्वार्थवश महाराणा सांगा का साथ दे रहे थे। उनके अंदर देश प्रेम का भाव बिल्कुल भी नहीं था। साथ ही महाराणा सांगा का साथ देने वाले सरदारों में कई ऐसे लोग थे जिनमें आपसी मतभेद थे या शत्रुता थी।
इनको एक करने में ज्यादा समय लग गया, जिससे इनके अंदर जोश और जुनून खत्म हो गया जो कि बयाना युद्ध के समय था। इसको भी महाराणा सांगा की पराजय का कारण माना जा सकता है।
3. मुगल आक्रमणकारी और आक्रांता बाबर की सेना के पास तोपें और गोला-बारूद थे, जबकि महाराणा सांगा की सेना परंपरागत हथियारों के साथ युद्ध मैदान में उतरी थी। यही महाराणा सांगा की पराजय का मुख्य कारण था।
4. जब युद्ध मैदान में मूर्छित हो जाने की वजह से राणा सांगा को पालकी में युद्ध मैदान से दूर ले जाया गया, तब उनकी सेना का मनोबल टूट गया।
5. महाराणा सांगा की पराजय के कारणों में एक मुख्य कारण यह भी था कि मुगल आक्रांता बाबर की सेना एक व्यवस्थित सेनापति और राजा के नेतृत्व में युद्ध लड़ रही थी। जबकि मेवाड़ की राजपूती सेना में कई छोटी-छोटी रियासतों के राजा शामिल थे इसलिए अलग-अलग सेनाओं का नेतृत्व अलग-अलग व्यक्तियों के हाथ में था और यही वजह रही कि सेना में एकता और तालमेल नहीं देखने को मिला।
6. जब बाबर की सेना महाराणा सांगा की सेना के सामने थी तब दुश्मन सेनापति की सेना पर आक्रमण होता देखकर मेवाड़ी सेना के ही अन्य सेनापति उसका साथ नहीं दे रहे थे।
7. तोपों के प्रहार से जब मेवाड़ी सेना के हाथी मुड़ कर भाग रहे थे, तब उनके द्वारा अपनी ही सेना के सैनिकों को कुचला जा रहा था, जिससे सेना में हड़बड़ी फैल गई।
8. महाराणा सांगा की पराजय के कारणों पर नजर डाली जाए तो सबसे मुख्य कारण उनका युद्ध मैदान से बाहर जाना था। क्योंकि उनके बाहर जाते ही मेवाड़ी सेना में खलबली मच गई और उन्हें लगा कि अब हम नहीं जीत सकते हैं।
9. महाराणा सांगा मूर्छित होकर जब युद्ध मैदान से बाहर चले गए तब मेवाड़ी सेना का मनोबल टूट गया था।
10. महाराणा सांगा की पराजय के कारणों में यह भी एक बहुत बड़ा कारण था कि मेवाड़ी सेना की संख्या बाबर की सेना की संख्या की तुलना में बहुत कम थी।
राणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई?
महाराणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई इस पर आज भी 2 राय है। विश्व प्रसिद्ध और ऐतिहासिक खानवाँ के युद्ध के पश्चात् राणा सांगा जब पुनः अपने राज्य (मेवाड़) लौट रहे थे तब कालपी नामक स्थान पर उनकी मृत्यु हो गई। महाराणा सांगा की मृत्यु की असली वजह पर आज भी संशय है, हम इस लेख के माध्यम से इस संशय को दूर करने के साथ साथ यह भी जानेंगे कि वास्तव में महाराणा सांगा की मृत्यु की वजह क्या रही।
महाराणा सांगा और बाबर के मध्य लड़े गए खानवा के ऐतिहासिक युद्ध में भीतरी घात और असंगठित सेना के साथ साथ आपसी मतभेदों के चलते महाराणा सांगा की हार हुई। और वह घायल अवस्था में पुनः अपने सैनिकों के साथ मेवाड़ की तरफ निकल पड़े।
प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार K.V. कृष्ण राव के अनुसार महाराणा सांगा विदेशी आक्रांता बाबर को देश से बाहर निकालने के लिए महमूद लोदी (इब्राहिम लोदी का भाई) और हसन खां मेवाती (अफ़गानी) का समर्थन लेने में कामयाब रहे। प्रारंभ में महाराणा सांगा ने बयाना का युद्ध में बाबर को पराजित कर दिया। लेकिन उसके बाद असंगठित सेना और आपसी मतभेदों के चलते खानवाँ युद्ध में हार गए।
अपनी सेना को पुनः संगठित और सुव्यवस्थित करके महाराणा सांगा बाबर को ख़त्म करना चाहते थे। लेकिन यदि इसमें महाराणा सांगा सफ़ल हो जाते तो पूरे भारत वर्ष में उनके नाम का डंका बजने लग जाता, तो हुआ ऐसा कि कुछ लोगों (कुछ सरदार भी शामिल) ने राणा सांगा के साथ होने का ढोंग करते हुए उन्हें ज़हर दे दिया।
इसी विश्वासघात के चलते कालपी नामक स्थान पर 30 जनवरी 1528 को महाराणा सांगा की मृत्यु हो गई।
इस युद्ध के समय एक ऐसी घटना सामने आई जिसका उल्लेख करने से इतिहासकार डरते हैं और वह है महाराणा सांगा की जीत। कहा जाता है कि इस समय बाबर के पास एक भी तोप नहीं थी, हो सकता हैं इस युद्ध में उनकी जीत हुई हो।
महाराणा सांगा की मृत्यु को लेकर यह भी कहा जाता कि खानवाँ के युद्ध में महाराणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए थे जिसकी वजह से वापस चित्तौड़ लौटते समय रास्ते में उनकी मृत्यु हो गई। महाराणा सांगा की अन्तिम इच्छानुसार मांडलगढ़ में उनका अन्तिम संस्कार किया गया, जहां पर आज भी महाराणा सांगा की छतरी बनी हुई हैं।
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