खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं?

क्या आप जानते हैं कि खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं? इसके पिछे एक पौराणिक मान्यता है. यह महाभारत के समय की बात है, कौरव और पांडव के बिच में धर्म युद्ध प्रारम्भ होने वाला था. विश्व भर के बड़े बड़े राजा-महाराजा अपनी सेना के साथ अपने- अपने पक्ष की तरफ़ से लड़ाई के लिए युद्ध मैदान में पहुंच रहे थे. इस युद्ध की ख़बर पूरे ब्रह्मांड में आग की तरह फैल गई. यही से शुरु होती हैं हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा की कथा.

इस लेख में आप जानेंगे कि आखिर वह क्या कहानी या कथा है जिसके चलते खाटू नरेश, बाबा खाटू श्याम को हारे का सहारा कहने का प्रचलन शुरु हुआ. चलिए जानते हैं क्या हैं वह पौराणिक कथा.

खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं?

महाभारत युद्ध के बारे में सुनकर एक नौजवान बर्बरीक अपनी माता मौरवी से जिद्द करने लगा कि मुझे भी महाभारत का युद्ध देखना है. पुत्र की जिद्द और मां के प्रेम की वजह से बर्बरीक को महाभारत युद्ध देखने जाने कि अनुमति मिल गई. बर्बरीक जैसे ही घर से निकला मां ने कहा “जाओ बेटा हारे का सहारा बनना”. उन्होंने अपनी माता से कहा कि युद्ध में जो भी हारेगा मैं उनकी तरफ़ से युद्ध लडूंगा. नीले धोड़े पर सवार होकर तीन बाणधारी बर्बरीक ने माता को जवाब दिया कि जैसा आपने कहा वैसा ही होगा, मैं हारे का सहारा जरूर बनूंगा.

बर्बरीक के पास दिव्य शक्तियां थी जो उन्हें भगवान शिव से मिली थीं. बर्बरीक के पास 3 बाण थे जो पुरी सृष्टि को ख़त्म कर सकते थे. बर्बरीक का एक बाण ही महाभारत युद्ध का फ़ैसला कर सकता था.

बर्बरीक नीले धोड़े पर सवार होकर अपने ही वेग में तेज़ गति के साथ महाभारत का युद्ध देखने के लिए जा रहे थे. राह में एक ब्राह्मण ने उनको रोका और उनकी तारीफ करते हुए कहने लगा कि आप बहुत वीर और दानी है. ब्राह्मण उनकी परीक्षा ले रहा था, उसने बर्बरीक से कहा कि मुझे दान चाहिए.

बर्बरीक बहुत बड़े दानी थे, उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि बोलो आपको क्या चाहिए?

ब्राह्मण ने कहा कि आप मुझे आपका शीश दान कर दो! यह सुनकर बर्बरीक थोड़े मुस्कुराए और कहा कि आप अपने वास्तविक रूप में आओ, मैं वादा करता हूं कि आपने जो मांगा वो मिल जाएगा. यह सुनकर ब्राह्मण भेष से बाहर आकर भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को दर्शन दिए. बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा हे प्रभु मैं अपना वचन पूरा करूंगा लेकिन महाभारत का युद्ध देखने की मेरी हार्दिक इच्छा थी, यह अब पूरा नहीं हो सकती इसका मुझे बहुत दुःख हैं.

भगवान श्री कृष्ण अच्छी तरह से जानते थे कि इस धर्म युद्ध में कौरवों की हार तय है और यदि बर्बरीक उनकी तरफ़ से लड़ेगा तो निश्चित तौर पर इस धर्म युद्ध में पांडवों की हार होगी. इसलिए उन्होंने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया.

श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुमको यह युद्ध देखने का सौभाग्य जरूर मिलेगा. बर्बरीक ने अपना शीश काटकर भगवान के श्री चरणों में रख दिया. भगवान श्री कृष्ण ने शीश को एक ऊंचे स्थान पर रख दिया ताकि बर्बरीक महाभारत का युद्ध देख सके. बर्बरीक की दानवीरता से खुश होकर श्री कृष्ण ने उन्हें अपना नाम “श्याम” उपहार स्वरूप भेंट किया. साथ ही आशीर्वाद भी दिया की आने वाले युग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे. जब भी कोई हारा और टूटा हुआ भक्त आपके पास आएगा तुम्हारी पुजा से उसके सब काम पूर्ण होंगे.

श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को एक ऊंचे स्थान पर रख दिया. आज विश्व विख्यात खाटू श्याम मंदिर उसी स्थान पर बना हुआ हैं जहां पर उनका कटा हुआ सिर रखा गया था. यही वह पौराणिक कथा हैं जिसके कारण “खाटू श्याम को हारे का सहारा कहते हैं”.

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