गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है || The Story Behind Guru Purnima

 गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती हैं, इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है. भारत एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में विश्व विख्यात है तथा सहस्त्र वर्षों से भारत में गुरुओं को एक विशेष स्थान दिया जाता आ रहा है. गुरु हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर अग्रसर करता है.

सनातन संस्कृति में गुरु का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है गुरु को भगवान के समान माना जाता है क्योंकि गुरु ज्ञानदाता होने के साथ-साथ मोक्ष दाता भी माना जाता है. वेद और पुराणों में भी गुरु को विशेष स्थान प्राप्त है, गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान पूजनीय माना जाता है. इन सभी मुख्य कारणों के अतिरिक्त भी इस लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है.

गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु को साक्षी मानकर संपूर्ण भारतवर्ष में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. हमारे देश में मनाए जाने वाले प्रत्येक त्योहार के पीछे कोई ना कोई पौराणिक मान्यता जरूर होती है. गुरु पूर्णिमा मनाए जाने के पीछे भी एक पौराणिक मान्यता है जो महर्षि वेदव्यास से संबंधित है. दीर्घकाल से भारत में चली आ रही गुरु शिष्य की परंपरा से हम गुरु की महत्ता का पता लगा सकते हैं.

हमारे देश में गुरु को बहुत ही सम्मान के साथ देखा जाता है और भगवान तुल्य समझा जाता है. गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है

गुरु पूर्णिमा मनाए जाने के पीछे का मुख्य कारण अपने गुरु के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करना है लेकिन इस लेख में हम पौराणिक मान्यताओं के आधार पर भी गुरु पूर्णिमा की महता को जानेंगे. गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है यह जाने से पहले इसके संबंध में संक्षिप्त जानकारी निम्नलिखित हैं-

कब मनाई जाती हैं- आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को.
किसकी याद में मनाई जाती है- महर्षि वेदव्यास जी.
गुरु पूर्णिमा का अन्य नाम- व्यास पूर्णिमा.
मानव जाति के प्रथम गुरु- महर्षि वेदव्यास जी.
अनुयायी- जैन, हिंदू और बौद्ध भिक्षु.
गुरू पुर्णिमा का उद्देश्य- गुरू के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए.
तिथि- आषाढ़ शुक्ल पक्ष पुर्णिमा (जून या जुलाई में).
आवृत्ति- वार्षिक.

आषाढ़ मास की पुर्णिमा को “गुरू पुर्णिमा” के नाम से जाना जाता हैं. वर्षा ऋतु प्रारंभ होते ही गुरू पुर्णिमा का पर्व आता है. ग्रीष्म काल में धरती गर्मी से बहुत अधिक तप जाती हैं लेकिन वर्षा ऋतु में धरती को शांति मिलती हैं जिससे की वह पैदावार के लिए उपयुक्त बन सके. ठीक इसी तरह गुरू कृपा से ज्ञान, शक्ती, भक्ति और शांति की प्राप्ति होती हैं. गुरू पुर्णिमा का दिन महाभारत के रचियता कृष्ण द्वैपायन व्यास अर्थात् महर्षि वेदव्यास जी का जन्मदिन भी है. इन्हें आदिगुरु के नाम से भी जाना जाता हैं.

कबीर दास जी के शिष्य भक्तिकाल के संत घिसादास जी का जन्म भी इसी पुर्णिमा के दिन हुई थी. शास्त्रों में गुरू की महत्ता का वर्णन करते हुए लिखा कि “गुरू” दो शब्दों से मिलकर बना है पहला गु जिसका अर्थ होता हैं अज्ञान या अंधकार जबकि रु का अर्थ होता हैं अज्ञानता को दूर करने वाला. एक लाइन में यदि इस प्रश्न का जवाब दिया जाए कि गुरू किसे कहते हैं? इसका उत्तर हैं जो व्यक्ति हमें अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता हैं, वह गुरू कहलाता हैं.

गुरु शिष्य को लेकर कबीर दास जी का एक बहुत ही प्रसिद्ध दोहा है, जो यह साबित कर देगा कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है-

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय हैं।।

(Guru Purnima kyon manae jaati hai)

अर्थ – गुरु और भगवान दोनों साथ खड़े हो तो किसे प्रणाम करना चाहिए गुरु को या भगवान को? ऐसी स्थिति में गुरु के श्री चरणों में शीश झुकाना उत्तम है, जिनकी कृपा से भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता हैं.

कबीर दास जी का यह दोहा यह साबित करता है कि भगवान से भी बड़े गुरु होते हैं क्योंकि गुरु ही हमें भगवान से अवगत करवाते हैं.

कबीर दास जी के इस दोहे मात्र से यह साबित हो जाता है कि भारत में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है. देवताओं के समान माने जाने वाले गुरु प्राचीन समय से ही अपने शिष्यों को आश्रम या गुरुकुल में बिना किसी शुल्क के शिक्षा देते थे. गुरु को सम्मान देने के लिए शिष्य भी प्राचीन काल से ही गुरु पूर्णिमा मनाते आ रहे हैं ताकि गुरु को सम्मानित किया जा सके. गुरु पुर्णिमा एक ऐसा पर्व है जिस दिन यदि शिष्य गुरु के चरण स्पर्श करते हुए आशीर्वाद लेता है तो उसे सन्मार्ग की प्राप्ति होती है.

गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था और यह आप भली-भांति जानते हैं कि गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी को समर्पित है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन जन्म लेने के कारण महर्षि वेदव्यास जी के जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है. आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था.

वेद और पुराणों में महर्षि वेदव्यास जी को मानव समाज का प्रथम गुरु होने का दर्जा प्राप्त है और यही वजह है कि इनके जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों, ऋषि-मुनियों और भक्तों को गीता का ज्ञान दिया था. महर्षि वेदव्यास जी ने गीता की रचना की और 18 पुराणों की रचना का श्रेय भी उन्हें ही जाता है.

गुरु पूर्णिमा मनाने का तरीका

गुरु पूर्णिमा मनाने का तरीका बहुत ही आसान है. सब लोग अपने अपने तरीके से इसे मना सकते हैं और अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त कर सकते हैं. गुरु से शिक्षा और दीक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी गुरु का सम्मान करने के लिए प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाते हैं. इस दिन सबसे पहले गुरु की पूजा की जाती है और उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया जाता है. गुरु पूर्णिमा के दिन यह कार्यक्रम दिन भर चलता है.

जिनके गुरु इस दुनिया में नहीं है और देवलोक गमन हो चुका है, वह अपने गुरु की चरण पादुका की सेवा करते हैं. गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातः काल ब्रह्मा, विष्णु, महेश और बृहस्पति की पूजा-अर्चना की जाती है, उसके पश्चात महर्षि वेदव्यास जी की पूजा अर्चना की जाती है. लोग सफेद या पीले रंग के वस्त्र धारण करके अपने गुरु का फोटो उत्तर दिशा में रख कर पूजा अर्चना करते हैं, भोग लगाते हैं और पुष्प अर्पित करके श्रद्धा भाव दिखाते हैं.

अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन।
शलाकया चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

(Guru Purnima kyon manae jaati hai)

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