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जुलाई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

द्रौपदी मुर्मू की प्रेम कहानी

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की प्रेम कहानी की शुरुआत भुवनेश्वर में ग्रेजुएशन के दौरान हुई. बचपन से ही वह पढ़ाई में होशियार रही. यही वजह थी कि 7 वीं कक्षा के बाद वह पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर आ गई. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की शादी वर्ष 1980 में हुई थी. शादी से पूर्व उनका नाम द्रौपदी टुडू था जो शादी के बाद बदलकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हो गया. द्रौपदी मुर्मू की प्रेम कहानी भुवनेश्वर से शुरु होकर पहाड़पुर गाँव तक पहुंच गई अर्थात जिससे प्रेम किया उन्हीं से विवाह भी किया. इस लेख में आप राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की प्रेम कहानी और वैवाहिक जीवन के बारे में विस्तृत रूप से पढ़ेंगे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की प्रेम कहानी द्रौपदी मुर्मू का जन्म एक छोटे से गांव उपरवाड़ा में हुआ. यहीं पर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त (7वीं क्लास तक) की. उस समय वह इकलौती लड़की थी जो एक छोटे से गांव से निकलकर भुवनेश्वर जैसे बड़े शहर में पढ़ने के लिए पहुंची. राम देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर उड़ीसा में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई. श्याम चरण मुर्मू भी भुवनेश्वर के किसी कॉलेज से पढ़ाई कर र...

विश्व इमोजी दिवस || History Of World Emoji Day

दुनियां में वर्ष 2014 से  विश्व इमोजी दिवस  मनाया जा रहा हैं, जिसकी शुरुआत जेरेमी बर्ग (इमोजीपिडिया के फाउंडर) ने 17 जुलाई को शुरू की. यही से प्रतिवर्ष विश्व इमोजी दिवस मनाने की परम्परा शुरु हुई. वर्तमान में इमोजी डिजिटल संचार का एक बहुत बड़ा माध्यम हैं जो बॉडी लैंग्वेज का काम करते हैं. भावनाओं को त्वरित रूप से व्यक्त करने का सबसे अच्छा और सरल तरीका वर्तमान में यही है. ज्यादातर सोशल मीडिया साइट्स पर इसका उपयोग किया जाता है, दिन-ब-दिन इसकी मांग और प्रयोग बढ़ता जा रहा है. Emojis की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 17 जुलाई 2014 से प्रतिवर्ष  विश्व इमोजी दिवस  मनाया जाता हैं. इमोजी की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए वर्ष 2013 में इसे ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी में शामिल किया गया. इतना ही नहीं 2 वर्ष बाद 2015 में इमोजी को “वर्ल्ड ऑफ द ईयर” चुना गया. विश्व इमोजी दिवस विश्व इमोजी दिवस पर आपको बताते हैं कि इसका इतिहास क्या है और विश्व में सबसे पहले इमोजी का प्रयोग किसने किया. वर्ष 1998 की बात है “शिगेताका करीता” नामक एक जापानी व्यक्ती जापान की ही एक टेलीकॉम कंपनी में काम कर...

बप्पा रावल सामान्य ज्ञान || Bappa Rawal GK

बाप्पा रावल गुहिल वंश के संस्थापक और मेवाड़ के सिसोदिया वंश से सम्बंध रखते हैं. भारत के इतिहास में बाप्पा रावल का बहुत बड़ा योगदान है. बप्पा रावल से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण प्रश्न (Bappa Rawal GK questions) विभिन्न परीक्षाओं में पूछे जाते हैं, इसी को ध्यान में रखकर इस लेख के माध्यम से आपके लिए लिए लेकर आए हैं, बप्पा रावल के महत्वपूर्ण प्रश्न (Bappa Rawal GK questions) जो प्रतियोगी परीक्षाओं में उपयोगी साबित होंगे. बप्पा रावल महत्वपूर्ण प्रश्न (Bappa Rawal GK) बप्पा रावल से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी निम्नलिखित हैं- 1. बप्पा रावल का असली नाम क्या हैं? उत्तर- कालभोज. 2. बप्पा रावल के पिता का नाम क्या हैं? उत्तर- विक्रमादित्य. 3. बाप्पा रावल की माता का नाम क्या हैं? उत्तर – कमलावती. 4. बप्पा रावल के गुरू का नाम क्या था ? उत्तर- हरित ऋषि. 5. बप्पा रावल को “बाप्पा” की उपाधि किसने दी थी? उत्तर – मांडलिक नामक भील सरदार ने. 6. मेवाड़ के आराध्य देव किसे माना जाता हैं? उत्तर- एकलिंग नाथ जी को. 7. बप्पा रावल का बचपन कहां बीता? उत्तर- भींडर (उदयपुर). 8. बप्प...

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है || The Story Behind Guru Purnima

  गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती हैं, इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है. भारत एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में विश्व विख्यात है तथा सहस्त्र वर्षों से भारत में गुरुओं को एक विशेष स्थान दिया जाता आ रहा है. गुरु हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर अग्रसर करता है. सनातन संस्कृति में गुरु का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है गुरु को भगवान के समान माना जाता है क्योंकि गुरु ज्ञानदाता होने के साथ-साथ मोक्ष दाता भी माना जाता है. वेद और पुराणों में भी गुरु को विशेष स्थान प्राप्त है, गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान पूजनीय माना जाता है. इन सभी मुख्य कारणों के अतिरिक्त भी इस लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है . गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु को साक्षी मानकर संपूर्ण भारतवर्ष में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. हमारे देश में मनाए जाने वाले प्रत्येक त्योहार के पीछे कोई ना कोई पौराणिक मान्यता जरूर होती है. गुरु पूर्णिमा मनाए जाने के पीछे भी एक पौराणिक मान्यता है जो महर्षि वेदव्यास से संबंधित है....

खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं?

क्या आप जानते हैं कि खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं? इसके पिछे एक पौराणिक मान्यता है. यह महाभारत के समय की बात है, कौरव और पांडव के बिच में धर्म युद्ध प्रारम्भ होने वाला था. विश्व भर के बड़े बड़े राजा-महाराजा अपनी सेना के साथ अपने- अपने पक्ष की तरफ़ से लड़ाई के लिए युद्ध मैदान में पहुंच रहे थे. इस युद्ध की ख़बर पूरे ब्रह्मांड में आग की तरह फैल गई. यही से शुरु होती हैं हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा की कथा. इस लेख में आप जानेंगे कि आखिर वह क्या कहानी या कथा है जिसके चलते खाटू नरेश, बाबा खाटू श्याम को हारे का सहारा कहने का प्रचलन शुरु हुआ. चलिए जानते हैं क्या हैं वह पौराणिक कथा. खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं? महाभारत युद्ध के बारे में सुनकर एक नौजवान बर्बरीक अपनी माता मौरवी से जिद्द करने लगा कि मुझे भी महाभारत का युद्ध देखना है. पुत्र की जिद्द और मां के प्रेम की वजह से बर्बरीक को महाभारत युद्ध देखने जाने कि अनुमति मिल गई. बर्बरीक जैसे ही घर से निकला मां ने कहा “जाओ बेटा हारे का सहारा बनना”. उन्होंने अपनी माता से कहा कि युद्ध में जो भी हारेगा मैं उनक...