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जून, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

द्रौपदी मुर्मू जीवनी और जीवन परिचय

द्रौपदी मुर्मू एक ऐसा नाम जो अभी चर्चा में हैं. द्रौपदी मुर्मू का नाम चर्चा में जब आया तब एनडीए ने इन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया. 18 जुलाई 2022 को हुए राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू उम्मीदवार बनी. जैसा कि आप जानते हैं भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल थी और द्रौपदी मुर्मू दुसरी महिला राष्ट्रपति बनी हैं, यह आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. इसलिए आम जन द्रौपदी मुर्मू की जीवनी को लेकर जिज्ञासु है. द्रौपदी मुर्मू की जीवनी प्रेरणादायक हैं. वर्तमान में आप झारखंड की प्रथम आदिवासी महिला राज्यपाल हैं. जैसे ही इन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया, केंद्र सरकार द्वारा Z+ सिक्योरिटी प्रदान की गई हैं. द्रौपदी मुर्मू जीवनी और इतिहास नाम- द्रौपदी मुर्मू . पद- भारत की 15वीं राष्ट्रपति। पिता का नाम- स्व. बिरांची नारायण टुडू. माता का नाम-  पति का नाम- श्याम चरण मुर्मू. बच्चे- इतिश्री मुर्मू (पुत्री). जन्म तिथि- 20 जून 1958. आयु- 64 वर्ष. जन्म स्थान- मयूरभंज, उड़ीसा (भारत). शिक्षा- स्नातक कला. कॉलेज- राम देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर उड़ीसा. वजन...

पिज़्ज़ा का इतिहास || History Of Pizza

पिज़्ज़ा का इतिहास जानने से पहले हम आपको बता दें कि पिज्जा सबसे पहले गरीबों के लिए बनाया गया क्योंकि यह सस्ता पड़ता और पेट भी भर जाता. पिज़्ज़ा का इतिहास यूनान से शुरू होता हैं जो कि लगभग 2100 वर्ष पुराना है. आधुनिक पिज्जा जो हमें खाने को मिलता है यह इटली की देन है. पिज़्ज़ा का इतिहास जानने से पहले आपको बताते हैं कि फास्ट फूड का नाम लेते ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में पिज्जा का ही नाम आता है. पिज़्ज़ा का सफर यूनान से शुरू हुआ था जो इटली और अमेरिका के रास्ते 18 जून 1996 में भारत पहुंचा. पिज़्ज़ा हट नामक कंपनी ने सर्वप्रथम बेंगलुरु में भारत का पहला आउटलेट खोला. सर्वप्रथम पिज़्ज़ा का आविष्कार इटली में हुआ था जो ब्रेड, तेल, खजूर और हर्ब्स को मिलाकर बनाया गया था. इस लेख में हम जानेंगे कि पिज़्ज़ा का इतिहास क्या हैं? पिज्जा का आविष्कार कैसे और कहां हुआ? पिज़्ज़ा का इतिहास और आविष्कार पिज़्ज़ा की शुरुआत कहां से हुई - यूनान. पिज़्ज़ा का इतिहास कब से शुरू हुआ- 2100 साल पहले. आधुनिक पिज्जा किसकी देन हैं- इटली. मार्गरीटा पिज़्ज़ा किसके नाम पर था- महारानी मार्गरीटा नेपल्स. भारत में पिज़्ज़ा क...

बख्शी जगबंधु का इतिहास || History Of buxi jagabandhu

बख्शी जगबंधु स्वतंत्रता सेनानी थे, इनका इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. इन्हें जगबंधु बख्शी या बख्शी जगबंधु किसी भी नाम से संबोधित कर सकते हैं. बख्शी जगबंधु का असली नाम “जगबंधु विद्याशर महापात्र” हैं. बख्शी एक उपाधि हैं जो जगबंधु के पूर्वजों को उड़ीसा के राजा (खुर्दा) द्धारा प्रदान की गई थी. बख्शी जगबंधु की जन्म तिथि के बारे में जानकारी नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता हैं कि 1773 ईस्वी में इनका जन्म हुआ. अंग्रेजों के खिलाफ़ लोहा लेते हुए 1829 ईस्वी में इनकी मृत्यु हो गई. कोई भी स्वतंत्रता सेनानी अपने आप में महान होता हैं, बख्शी जगबंधु निडर, निर्भीक,साहसी और देश प्रेमी थे. “ पाइक विद्रोह ” के मुखिया होकर इन्होंने अंत तक अंग्रेजों का सामना किया इतना ही नहीं संख्या में बहुत कम होने के बावजूद ये हमेशा अंग्रजों की पकड़ से बाहर रहे. इनकी खासियत यह थी कि यह निस्वार्थ भाव से सेवा में थे. आइए जानते हैं आखिर कौन थे बख्शी जगबंधु. बख्शी जगबंधु का इतिहास और जीवन परिचय पूरा नाम- जगबंधु विद्याशर महापात्र. अन्य नाम- पाइकली खंडायत बख्शी. बख्शी जगबंधु का जन्म (buxi jagabandhu date o...

रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है || Story Behind Rath Yatra 2024

पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्व भर में प्रसिद्ध है लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है ? भारत में दो जगह रथ यात्रा निकाली जाती हैं एक उड़ीसा के जगन्नाथपुरी जिसे पूरी के नाम से भी जाना जाता है और दूसरी गुजरात के अहमदाबाद में लेकिन जगन्नाथपुरी की रथयात्रा ही भारत के साथ-साथ विश्व विख्यात है. इतना ही नहीं जगन्नाथ पुरी भारत में होने वाली चार धाम यात्रा में शामिल है. रथ यात्रा में ना सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं. 10 दिनों तक मनाया जाने वाला यह पर्व भारत में मनाए जाने वाले अन्य त्योहारों से थोड़ा अलग है. हिंदू धर्म को मानने वाले लोग ज्यादातर त्योहारों को अपने घर पर ही मनाते हैं लेकिन यह एकमात्र ऐसा त्योहार हैं जिसे लोग एक साथ समूह में इकट्ठा होकर मनाते हैं. इस लेख में हम आगे जानेंगे कि रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है? या रथ यात्रा निकाले जाने की वजह क्या हैं? क्योंकि इस रथयात्रा के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन रथ यात्रा का इतिहास या इसको मनाई जाने की वजह बहुत ही कम लोग जानते हैं. रथ यात्रा कब निकाली जाती है? रथ यात्...

केशव बलिराम हेडगेवार के विचार || Hedgewar Quotes

केशव बलिराम हेडगेवार के विचार प्रेरक और राष्ट्रहित में प्रेरित करने वाले हैं. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक होने के साथ साथ ये प्रथम सरसंघचालक भी थे. इनका जन्म नागपुर (महाराष्ट्र) में 1 अप्रैल 1889 को हुआ था. सन 1920 ईस्वी में इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया लेकिन कांग्रेस की नीतियों और विचारधारा इन्हें अच्छी नहीं लगी. केशव बलिराम हेडगेवार के विचार में हिंदू समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के आधार पर भारतीय राष्ट्रीयता होनी चाहिए. भारत को आगामी 100 सालों में हिंदु राष्ट्र बनाने के उद्देश्य के साथ इन्होंने 1925 ईस्वी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की थी. केशव बलिराम हेडगेवार के विचारों से लाखों लोग प्रभावित हुए. 21 जून 1940 को केशव बलिराम हेडगेवार का नागपुर में निधन हो गया. इनके निधन को आज लगभग 82 वर्ष बीत चुके है लेकिन इनके विचार या अनमोल वचन आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं. पृथ्वीराज चौहान और रानी संयोगिता की अमर प्रेम कहानी। बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार केशव बलिराम हेडग...

बद्रीनाथ में शंख क्यों नहीं बजाया जाता हैं?

भारत को रहस्यों का देश कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. भारत के सभी मंदिरों में शंख बजाया जाता है लेकिन बद्रीनाथ एक ऐसा मंदिर है जहां पर शंख नहीं बजाया जाता. भगवान विष्णु को शंख अतिप्रिय होने के बावजूद भी ऐसी क्या वजह हो सकती है जिसके चलते बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता हैं. बद्रीनाथ में शंख क्यों नहीं बजाया जाता (पौराणिक मान्यता ) भारत के एक खूबसूरत राज्य उत्तराखण्ड के चमोली गढ़वाल नामक स्थान पर जहाँ से बाबा केदारनाथ की यात्रा का शुभारंभ होता है उसी जगह रुद्रपयाग से आगे मन्दाकिनी पुनि के तट पर हिमालय से सटा हुआ सिल्ला नामक स्थान हैं. इस स्थान पर श्री शनेश्वर महाराज का भव्य मंदिर स्थित है। इस पुरातन स्थान पर महाराज शनेश्वर जी कई वर्षो से लगातार तपस्या करते आ रहे थे. महाराज शनेश्वर जी की तपस्या को भंग करने के लिए वहां पर राक्षस प्रजाति के दानव आते रहते थे. जैसे-जैसे समय बीतता गया कालांतर में उस स्थान पर दैत्यों का बोलबाला हो गया और शनेश्वर जी महाराज को वह स्थान छोड़कर जाना पड़ा. इन राक्षसों का उद्देश्य ना सिर्फ तपस्या में विघ्न डालना था बल्कि यह तपस्वी ओं और पुजारियों को मा...

पृथ्वीराज रासो में शामिल भ्रामक तथ्य

पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित पृथ्वीराज रासो में कई भ्रामक तथ्य शामिल हैं. इसकी नामक ग्रंथ की रचना कवि चंदबरदाई ने थी. यह ग्रंथ पृथ्वीराज चौहान के सम्पूर्ण इतिहास को दर्शाता है,लेकिन एक संशय यह हैं कि क्या यह ग्रंथ अपने मूल रूप में हैं या इसमें तथ्यों से छेड़-छाड़ हुई? देश विदेश के कई इतिहासकार और लोग पृथ्वीराज रासो को सत्य और सटीक मानते हैं. भारत का इतिहास वास्तव में वह नहीं हैं जो आप और हम जानते हैं. इतिहासकरों ने अपने अपने हिसाब से इसका वर्णन किया है. लेकिन इस लेख के माध्यम से हम पृथ्वीराज रासो में शामिल उन मुख्य घटनाओं का ज़िक्र करेंगे जो भ्रामक है. पृथ्वीराज रासो की सच्चाई पृथ्वीराज चौहान का इतिहास पृथ्वीराज रासो के इर्द-गिर्द घूमता है लेकिन इतिहास का गहराई से अध्ययन करने से पता चलता है कि पृथ्वीराज रासो में कई भ्रामक तथ्य मौजूद हैं. इन तथ्यों का अध्ययन करने से हमें पृथ्वीराज रासो की सच्चाई का पता चलेगा. पृथ्वीराज रासो में शामिल भ्रामक तथ्य निम्मलिखित है- (1). पृथ्वीराज रासो काव्य रूप में छपा है जिसमें संवत स्पष्ट रूप से लिखें गए हैं. हम सभी जानते हैं कि 1192 ईस्वी में तराइन क...

अजबदे पंवार का इतिहास || History Of Rani Ajabde Punwar

अजबदे पंवार का इतिहास मेवाड़ी वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के साथ जुड़ा हुआ है. यह महाराणा प्रताप की पहली पत्नी और कुंवर अमर सिंह (महाराणा प्रताप का ज्येष्ठ पुत्र) की मां थी. इनका जन्म सिसोदिया वंश के राव रामरख पंवार था. महाराणा प्रताप की पहली पत्नी अजबदे पंवार और महाराणा प्रताप की कहानी बहुत ही दिलचस्प है. अजबदे पंवार साहसी, बुद्धिमान, कोमल हृदय और चंचल स्वभाव की थी, इन्हीं विशेषताओं ने महाराणा प्रताप का दिल जीत लिया. भारत का इतिहास उठाकर देखा जाए तो कई ऐसे राजा महाराजा हुए हैं जिनकी प्रेम कहानियां इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है. उनमें से एक महाराणा प्रताप की प्रेम कहानी भी है. क्या आप जानते हैं कि अजबदे पंवार का इतिहास क्या हैं? अजबदे पंवार और महाराणा प्रताप कहां मिले? अजबदे पंवार कौन थी? महाराणा के साथ इनकी शादी कैसे हुई और अजबदे की मृत्यु कैसे हुई? अगर नहीं तो इस लेख को अंत तक पढ़े. अजबदे पंवार का इतिहास (History Of Ajabde Punwar) पूरा नाम- रानी अजबदे बाई पंवार (सिसोदिया). अजबदे पंवार जन्म तारीख- 1542 ईस्वी. अजबदे पंवार का जन्म स्थान - बिजौलिया (भीलवाड़ा). अजबदे पंवार की मृत्यु-...

सुमेरी या सुमेरियन सभ्यता का इतिहास || Sumerian Civilization

सुमेरी या सुमेरियन सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता होने के साथ-साथ मेसोपोटामिया का हिस्सा थी. सुमेरिया की सभ्यता का विकास काल ईसा से 3500 वर्ष पूर्व माना जाता हैं. सुमेर सभ्यता का इतिहास बहुत प्राचीन है, 19वीं शताब्दी में सुमेरियन सभ्यता की खोज हुई, 1901 ईस्वी में सूसा नामक स्थान पर काले रंग के पत्थरों से निर्मित शिलालेख प्राप्त हुए हैं. सुमेरी या सुमेरियन सभ्यता का इतिहास बताते इन शिलालेखों पर बेबिलोनियन भाषा में “कानून संहिता” उत्कीर्ण है. सुमेरी या सुमेरियन सभ्यता का जन्म या विकास “दजला और फरात” नामक नदियों की घाटी में हुआ था. विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता सुमेरी या सुमेरियन सभ्यता को प्राचीनकाल में मेसोपोटामिया के नाम से जाना जाता था. इसी दिशा में कदम उठाते हुए सर लियोनार्ड विली ने ईरान में खुदाई का काम शुरू करवाया ताकि तह में जाकर खोजबीन की जा सके. जब खुदाई शुरू हुई तो इसमें प्राचिन राजा महाराजों की समाधियां, खंडहर इमारतें, मिट्टी की तख्तियां और कई रचनात्मक और कलात्मक वस्तुएं मिली है. सुमेरी या सुमेरियन सभ्यता का इतिहास सुमेरी या सुमेरियन सभ्यता काल- 45...