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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संविधान दिवस कब और क्यों मनाया जाता हैं?

भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ जबकि सन 2015 में मोदी सरकार द्धारा पहली बार 26 नवंबर 2015 को “संविधान दिवस” मनाया गया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के 125 वीं जयंती पर सम्पूर्ण भारत में पहली बार “संविधान दिवस” मनाने की शुरुआत की गई।इस तरह पहली बार भारत में संविधान दिवस 26 नवंबर 2015 में मनाया गया था। महाराणा सांगा की कहानी जरूर पढ़ें। “संविधान दिवस” क्यों मनाया जाता हैं? डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा भारतीय संविधान का अनुवादन किया गया था ना कि लेखन। भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया था। कई वर्षों तक भीमराव अम्बेडकर के अनुयायियों द्वारा इस दिन को संविधान दिवस के रुप में मनाया जाता रहा हैं जबकि सरकार द्धारा इस दिन को “राष्ट्रीय कानून दिवस” के रुप में मनाया जाता रहा हैं। यह कानून भारत में 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था। भारत का संविधान दिवस 26 नवंबर को इसलिए मनाया जाता क्योंकी इसी दिन सन 1949 में इसको पारित किया गया था। यह भी पढ़ें- महाराणा रतन सिंह द्वितीय का इतिहास।

महाराणा रतन सिंह द्वितीय का इतिहास || History Of Maharana Ratan Singh II

महाराणा रतन सिंह द्वितीय, महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) के पुत्र थे। महाराणा सांगा के 7 पुत्र थे जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु महाराणा सांगा के जीवित रहते ही हो गई। 30 January 1528 ईस्वी को महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा रतन सिंह द्वितीय मेवाड़ के महाराणा बने क्योंकि जीवित बचे तीन भाइयों विक्रमादित्य, उदय सिंह और रतन सिंह में यह सबसे बड़े थे। महाराणा रतन सिंह द्वितीय के मेवाड़ का राजा बनने के बाद इनके दोनों छोटे भाई विक्रमादित्य और उदय सिंह को रणथंबोर का राजा नियुक्त किया गया। महाराणा रतन सिंह द्वितीय का इतिहास और जीवन परिचय (History Of Maharana Ratan Singh II) महाराणा रतन सिंह द्वितीय के मेवाड़ का शासक बनने के पश्चात उनके दोनों छोटे भाइयों विक्रमादित्य और उदय सिंह को रणथंबोर की बागडोर मिलने के पीछे मुख्य वजह यह थी कि महारानी हाड़ी ( कर्मवातीबाई) ने महाराणा सांगा से पहले ही यह जागीर अपने दोनों पुत्रों के लिए मांग ली थी, क्योंकि महारानी को शक था कि महाराणा सांगा की मृत्यु के पश्चात हो सकता है रतन सिंह इन्हें राज्य से दूर कर दे। महाराणा सांगा से रणथंबोर राज्य की मांग स्वीकृत करवा कर रान...

महाराणा सांगा की छतरी कहां है?

महाराणा सांगा की छतरी कहां स्थित हैं, यह जानने से पहले आपको बता दें कि जब खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा घायल हो गए, तब अपनी सेना के साथ वह मेवाड़ की तरफ़ लौट पड़े। खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा के शरीर पर 80 घाव लगे, जिसके चलते उन्होंने अपने साथियों से कहा कि यदि मेरी मृत्यु हो जाती हैं तो मेरा अंतिम संस्कार मेवाड़ की धरा पर ही किया जाना चाहिए। प्राचीन समय में अजमेर से मेवाड़ जाने के लिए मांडलगढ़ से रास्ता होकर निकलता था। 30 जनवरी 1528 के दिन महाराणा सांगा ने कालपी नामक स्थान पर अंतिम सास ली। जब महाराणा सांगा के शरीर को मेवाड़ में लाया जा रहा था, तब मांडलगढ़ नामक स्थान आया जो मेवाड़ का हिस्सा था। मांडलगढ़ में ही महाराणा सांगा की पार्थिव देह का अंतिम संस्कार किया गया। मांडलगढ़ में महाराणा सांगा की छतरी बनी हुई हैं, इसको देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता हैं कि शायद इसी स्थान पर उनका अंतिम संस्कार हुआ होगा। महाराणा सांगा की छतरी मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित हैं जिसका निर्माण भरतपुर के अशोक परमार द्वारा करवाया गया था। महाराणा सांगा की छतरी के निर्माण में आठ खम्भों का इस्तेमाल किया...

खानवा का युद्ध || History Of Khanwa War

खानवा का युद्ध बाबर और महाराणा सांगा के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध 16 मार्च 1527 के दिन आगरा से 35 किलोमीटर दूर खानवा नामक गांव में लड़ा गया था। महाराणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया खानवा का युद्ध इतिहास के सबसे भीषण और भयानक युद्ध में शामिल हैं। इस युद्ध में एक मुस्लिम सेनापति के विश्वासघात के कारण महाराणा सांगा को पराजय का सामना करना पड़ा। इस लेख में हम बढ़ेंगे की महाराणा सांगा और बाबर के बीच खानवा का युद्ध क्यों लड़ा गया? खानवा के युद्ध में कौन विजय रहा। खानवा का युद्ध कब लड़ा गया- 16 मार्च 1527. किसके बिच लड़ा गया- महाराणा सांगा और बाबर के बीच. किसकी जीत हुई- बाबर। पानीपत के प्रथम युद्ध में जीत से बाबर का हौसला सातवें आसमान पर था अब वह ना सिर्फ दिल्ली बल्कि संपूर्ण भारत में अपने प्रभुत्व और साम्राज्य के विस्तार का सपना देखने लगा। साम्राज्य विस्तार में बाबर के सामने सबसे बड़ा रोड़ा थे मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा। मुगल साम्राज्य की स्थापना का सपना लिए बाबर अपनी सेना के साथ नई रणनीति बनाने पर जुट गया। बाबर अच्छी तरीके से जानता था कि यदि उसे भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करनी ह...

महाराणा सांगा का इतिहास || History Of Maharana Sanga

महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) मेवाड़ और  चित्तौड़गढ़ के इतिहास  के वीर और प्रतापी राजा थे। महाराणा सांगा का इतिहास और महाराणा सांगा की कहानी शुरू होती हैं 12 अप्रैल 1482 से, इस दिन राणा रायमल के तीसरे पुत्र के रूप में महाराणा सांगा जन्म हुआ था। न्यायप्रिय महाराणा सांगा के दो भाई भी थे जिनका नाम पृथ्वीराज और जयमल था। महाराणा सांगा बहुत बुद्धिमान,वीर ,जनप्रिय और उद्धार स्वभाव के व्यक्ति थे। महाराणा सांगा का राज्याभिषेक 04 मई 1508 को हुआ था। महाराणा संग्राम सिंह का बचपन कठिन परिस्थितियों में गुजरा क्योंकि आए दिन तीनों भाइयों में किसी ना किसी बात को लेकर लड़ाई होती रहती थी. महाराणा सांगा के 7 में से  4 पुत्र सांगा के जीवन काल में ही मर गए जिनमें  भोजराज ,करण सिंह ,पर्वत सिंह और कृष्ण सिंह का नाम शामिल हैं। इस लेख में हम महाराणा सांगा का सम्पूर्ण जीवन परिचय ,महाराणा सांगा का इतिहास और महाराणा सांगा की कहानी जानेंगे। साथ ही यह भी पढ़ेंगे कि महाराणा सांगा की छतरी कहाँ पर हैं और महाराणा सांगा (Maharana Sanga) को एक सैनिक का भग्नावशेष क्यों कहा जाता हैं। महाराणा सांगा का इतिहास और जीवन परिचय (Hi...

महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई?

आज भी कई लोगों के मन में यह सवाल है कि आखिर महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई? क्या महाराणा प्रताप की मृत्यु सामान्य रूप से हुई या किसी लंबी बीमारी के चलते महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई, इस सब सवालों का जवाब आपको इस लेख में मिलेगा। साथ ही आप यह भी जान पायेंगे कि जब महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार अकबर ने सुना तो उसकी क्या प्रतिक्रिया रही। जब महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार अकबर ने सुना तो वह स्तब्ध रह गया। हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बिच एक भीषण युद्ध हुआ था जिसमें महाराणा प्रताप ने मुग़ल सेना को धूल चटा दी थी। हाल ही में महाराणा प्रताप की जीत के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं। महाराणा प्रताप की पहली पत्नी महारानी अजबदे पंवार का इतिहास और प्रेम कहानी। महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई? महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 में हुई थी। महाराणा प्रताप की मृत्यु किस बीमारी की वजह से हुई या महाराणा प्रताप कि मृत्यु की क्या वजह रही तो लेखक भूरसिंह जी शेखावत द्वारा लिखित “महाराणा यश प्रकाश” नामक किताब को पढ़ना चाहिए जिसमें साफ़ लिखा हुआ है कि वीर शि...

पृथ्वीराज चौहान के काका कन्ह का इतिहास || History Of Kaka kanha

पृथ्वीराज चौहान के काका का नाम कन्ह था। काका कन्ह को गुस्सा बहुत आता था साथ ही काका कन्ह ने एक प्रतिज्ञा ले रखी थी कि यदि कोई उनके सामने मूछों पर ताव देगा तो वो उसका सर धड़ से अलग कर देंगे। पृथ्वीराज चौहान के जीवन और वीरता पर आधारित फिल्म आ रही हैं जिसमें अक्षय कुमार ने पृथ्वीराज चौहान का क़िरदार निभाया है। इस फ़िल्म में काका कन्ह का ज़िक्र भी हुआ है तो कई लोग यह जानना चाहते कि आख़िर काका कन्ह कौन थे? इस लेख में हम काका कन्ह का इतिहास, कहानी और उनसे जुड़े रोचक तथ्यों का अध्ययन करेंगे। काका कन्ह का इतिहास और कहानी (History Of Kaka kanha) काका कन्ह का पृथ्वीराज चौहान से काका भतीजा का रिश्ता था। काका कन्ह के चरित्र का वर्णन करने के लिए “पृथ्वीराज रासो” में इनके बारे में कुछ पंक्तियां लिखी गई हैं जो निम्नलिखित हैं- कालंजर इक लख्ख, सार सिंधुरह गुडावें।मार मार मुख चवै, सिंघ सिंघा मुख धावैं।। दौरी "कन्ह" नर नाह, पटी छुट्टी अंखिन पर।हथ्थ लाई किरवार, रूण्डमाला निन्नीय हर।। विहू बाह लख्ख लौहे परिय, छानी करीब्बर दाह किए।उच्छारि पारि धरि उप्परें, कलह कीयौ कि उघान किय।। इसका अर्थ हुआ- पृ...

महाराणा प्रताप के जीवन से सीख

भारत के अजेय योद्धा और मेवाड़ की शान वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन से आज के समय में बहुत कुछ सीखा जा सकता हैं। साथ ही अपने जीवन को आसान और व्यवस्थित तरीके से जिया जा सकता हैं। महाराणा प्रताप का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा उन्होंने मेवाड़ की आन बान और शान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इस लेख में हम पढ़ेंगे की महाराणा प्रताप के जीवन से सीख जो हमारा जीवन बदल सकती हैं। महाराणा प्रताप के जीवन से सीख महाराणा प्रताप के जीवन से निम्नलिखित सीख मिलती हैं जो हमें जीवन जीने का नया तरीका सिखाती है- [1] समय बहुत बलवान होता है महाराणा प्रताप जैसे राजा को भी घास की रोटी खाने के लिए मजबूर कर देता है। [2] विषम परिस्थितियों में, कठिनाइयों में और जब समय पक्ष का नहीं हो तब भी जो व्यक्ति हार नहीं मानता है वह व्यक्ति निश्चित तौर पर हार कर भी जीत जाता है। [3] महाराणा प्रताप के जीवन से सबसे बड़ी सीख यह मिलती है कि मनुष्य को हमेशा अपने आत्मसम्मान और गौरव को बचाकर रखना चाहिए। आत्म सम्मान और गौरव धन से ज्यादा कीमती होते हैं। महाराणा प्रताप का घोडा। [4] मनुष्य को अपने चुने हुए रास्ते पर निरंतर और अडिग...

अमृता देवी बिश्नोई सामान्य ज्ञान || Amrita Devi Bishnoi GK

अमृता देवी बिश्नोई राजस्थान के खेजड़ली नामक गाँव की रहने वाली थी. सन 1730 ईस्वी में जोधपुर के महाराजा अभय सिंह जी ने अपने नए महल के निर्माण हेतु आवश्यक लकड़ियाँ काटने का आदेश दिया। अमृता देवी बिश्नोई ने इसका विरोध किया और वृक्षों के बचाने के लिए अपने प्राणों तक को न्यौछावर कर दिया था। इतना ही नहीं इस आंदोलन में अमृता देवी बिश्नोई ने अपनी 3 पुत्रियों का बलिदान भी किया। वृक्षों को बचाने के लिए हुए आंदोलन को “चिपको आंदोलन” के से जाना जाता हैं। इस लेख में हम अमृता देवी बिश्नोई से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान प्रश्न और उत्तर जानेंगे। कई बार परीक्षाओं में Amrita Devi Bishnoi GK से सम्बंधित सवाल पूछे जाते हैं। अमृता देवी बिश्नोई सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी (Amrita Devi Bishnoi GK)- 1 चिपको आंदोलन की शुरुआत कहाँ से हुए थी? उत्तर- खेजड़ली (राजस्थान). 2. चिपको आंदोलन की शुरुआत कब हुई थी? उत्तर- 1730 ईस्वी में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई. 3. खेजड़ली गाँव किस ज़िले में स्थित हैं? उत्तर- जोधपुर (राजस्थान). 4. अमृता देवी बिश्नोई कहाँ की रहने वाली थी ? उत्तर- खेजड़ली गाँव। 5. अमृता देवी बिश्नोई क्यों प...

भारत को इंडिया क्यों कहा जाता हैं?

भारत को इंडिया क्यों कहा जाता हैं इसके पीछे दो तर्क है, जिनकी चर्चा हम इस लेख में करेंगे। भारतीय संविधान के अनुसार आज भी भारत का नाम भारतवर्ष है। जब भी भारतवर्ष की बात होती है तो इसमें बहने वाली सिंधु नदी का नाम ज़रूर लिया जाता हैं, क्योंकि भारत को इंडिया का है जाने का इतिहास इसी नदी से जुड़ा हुआ है। भारत को इंडिया क्यों कहा जाता हैं इसके पीछे का कारण भारतीय संविधान के प्रथम पृष्ठ पर यह स्पष्ट लिखा गया है की भारत को “इंडिया” और “भारत” दोनों नाम से संबोधित किया जाना चाहिए। “सिंधु घाटी सभ्यता” की वजह से भारत का नाम इंडिया पड़ा। भारतीय संस्कृति और इतिहास की परिचायक सिंधु नदी भारत, पाकिस्तान और चीन में बहती है जिसे संस्कृत में “सिंधु” जबकि अंग्रेजी में इंडस कहा जाता है। क्योंकि सिंधु नदी को अंग्रेजी में इंडस कहा जाता है, इसी आधार पर “भारत का नाम इंडिया” पड़ा। भारत को इंडिया नाम किसने दिया? इस लेख में अब तक आप पढ़ चुके हैं कि “भारत को इंडिया क्यों कहा जाता है” लेकिन अब आप जानेंगे कि भारत को इंडिया नाम किसने दिया। जब 18व...

जो जीता वही चन्द्रगुप्त मौर्य, ना कि सिकंदर

जो जीता वही चंद्रगुप्त मौर्य हैं ना कि सिकंदर जबकि हमारे कुंठित मानसिकता के इतिहासकारों ने इतिहास लिखने में ही घोटाला कर दिया। जो जीता वही चन्द्रगुप्त मौर्य जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर सिकंदर कैसे हो गया? जबकि सिकंदर की सेना चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से ही डर गई, डर इतना था कि सिकंदर ने उसके सेनापति सेल्यूकस की बेटी है हेलीना की शादी चंद्रगुप्त से करवा कर अधीनता स्वीकार कर ली। चंद्रगुप्त मौर्य विश्व का सबसे प्रतापी सम्राट था, जिसके नाम का डंका न सिर्फ भारत बल्कि संपूर्ण विश्व में बजता था. नंद वंश के राजा धनानंद एक ऐसे राजा थे जिन्हें विश्व का कोई भी राजा पराजित करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था लेकिन आचार्य चाणक्य की नीतियों की मदद से मौर्य वंश के प्रथम शासक चंद्रगुप्त मौर्य ने धनानंद को पराजित कर दिया, इसलिए कहते हैं जो जीता वही चन्द्रगुप्त मौर्य। धनानंद पर मिली जीत से सिकंदर आश्चर्यचकित था कि चंद्रगुप्त मौर्य ने एक अविश्वसनीय कार्य किया इसके परिणाम स्वरूप सिकंदर के मन में चन्द्रगुप्त मौर्य को लेकर डर बैठ गया। एक ऐसा डर जो कभी नहीं निकला। सिकंदर के बारे में बात की जाए तो उसने अपने...

रानी नायकी देवी कौन थी || History Of Rani Nayika Devi

रानी नायकी देवी इतिहास के पन्नों से गायब एक ऐसी वीरांगना थी जिसने पृथ्वीराज चौहान को धोखे से पराजित करने वाले मोहम्मद गौरी को नपुसंक बना दिया। रानी नायकी देवी का इतिहास भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाना चाहिए था लेकिन दोहरी मानसिकता से ग्रसित इतिहासकारों ने रानी नायकी देवी का नामोनिशान इतिहास की किताबों से मिटा दिया। जब आप रानी नायकी देवी का इतिहास और कहानी पढ़ेंगे तो आपको गर्व होगा कि हमारे समाज में ऐसी महान वीरांगना ने जन्म लिया था। रानी नायकी देवी ने तलवार के एक बार से मोहम्मद गौरी की गुदा फाड़ दी। इस लेख में आप पढ़ेंगे कि रानी नायकी देवी कौन थी या रानी नायकी देवी का इतिहास या रानी नायकी देवी की कहानी और मोहम्मद गौरी को पराजित करने की पूरी कहानी। रानी नायकी देवी का इतिहास (History Of Rani Nayika Devi) परिचय का आधार परिचय पूरा नाम रानी नायकी देवी सोलंकी ( Rani Nayika Devi solanki). नायकी देवी कहां की रानी गुजरात (भारत). राजधानी अंहिलवाड़ा. वंश चालुक्य वंश. पिता का नाम महाराजा शिवचित्ता परमांडी (कंदब के महामंडलेश्वर). पति का नाम अजयपाल सिंह. पुत्र का नाम मूलर...

माया सभ्यता की विशेषताएं

माया सभ्यता की विषेशताओं के बारें में इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में शामिल है। अब तक आपने माया सभ्यता के बारे में पढ़ा जिससे आप माया सभ्यता की विशेषताओं के बारे में अंदाजा लगा सकते हैं। लेकिन फिर भी माया सभ्यता की मुख्य विशेषताओं को जानेंगे, जो निम्नलिखित- माया सभ्यता की विशेषताएं 1 माया सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में शामिल हैं,जिसका उद्भव 900 ईसा पूर्व हुआ था और अंत 16वीं शताब्दी में हुआ था। 2 माया सभ्यता की एक मुख्य विशेषता (Maya sabhyata ki visheshtaen) यह भी है कि यह भारतीय संस्कृति के समकक्ष प्रतीत होती हैं, मैक्सिको में हुई खुदाई में इसका प्रमाण भी मिला है। 3 माया सभ्यता का विकास अमेरिका और मैक्सिको में हुआ था। 4 प्राचीन अमेरिका और मैक्सिको में इस सभ्यता का विस्तार था। माया सभ्यता के मुख्य केंद्र मैक्सिको, अल सेलवाडोर, होंडुरास, ग्वाटेमाला, यूकाटन थे। 5 माया सभ्यता मुख्यतया कृषि पर आधारित थी, साथ ही इस सभ्यता में शहरीकरण का भी विकास हुआ। 6 माया सभ्यता के लोग बहुत ही चतुर, बुद्धिमान और कई कलाओं में पारंगत थे। लेखन, ज्योतिष शास्त्र, वास्...

माया सभ्यता का इतिहास || History Of Maya Civilization

“ माया सभ्यता ” विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में शामिल एक ऐसी सभ्यता हैं जिसके बारे में वैज्ञानिक वर्षों से जांच पड़ताल कर रहें हैं लेकीन अभी तक यह पता नहीं लगा पाए कि आखिर कैसे इतनी बड़ी माया सभ्यता का अंत हो गया। माया सभ्यता का इतिहास अतिप्राचीन है। लगभग 1500 ईसा पूर्व की यह सभ्यता 16वीं शताब्दी में पूर्ण रूप से विलुप्त हो गई। इस लेख में हम माया सभ्यता का इतिहास माया की भविष्यवाणी और माया सभ्यता की विशेषताओं का अध्ययन करेंगे। माया सभ्यता का इतिहास (History Of Maya Civilization) माया सभ्यता कहां की हैं- अमरीका और मैक्सिको. माया सभ्यता का उद्भव- 1500 ईसा पूर्व । माया सभ्यता का अंत- 16 वीं शताब्दी में. माया सभ्यता का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसके खत्म होने की वजह का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक कई वर्षों से लगे हुए हैं लेकीन अभी तक सफलता नहीं मिली है। प्राचीन अमेरिका और मैक्सिको में इस सभ्यता का विस्तार था। माया सभ्यता के मुख्य केंद्र मैक्सिको, अल सेलवाडोर, होंडुरास, ग्वाटेमाला, यूकाटन थे। मैक्सिको की सबसे बड़ी सभ्यताओं में माया सभ्यता शामिल थी। 1500 ईसा पूर्व से प्रारंभ होकर...

दुर्धरा का इतिहास || History Of Durdhara

दुर्धरा का इतिहास और जीवन परिचय जाने से पहले आपको बता दें कि दुर्धरा धनानन्द की पुत्री और मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी थी। शाही परिवार में जन्म लेने वाली दुर्धरा का बचपन बहुत ही रईसी में निकला। दुर्धरा चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे प्रतापी राजा की पत्नी होने के साथ साथ बिन्दुसार की माता भी थी। इस लेख में हम दुर्धरा का इतिहास और कहानी को विस्तृत रूप से जानेंगे। दुर्धरा का इतिहास और जीवनी (History Of Durdhara) पूरा नाम- दुर्धरा. पिता का नाम - धनानंद जी. माता का नाम - अमितानिता. जन्म स्थान - पाटलिपुत्र. पति का नाम- चन्द्रगुप्त मौर्य. भाई का नाम - पब्बता नंद. पुत्र - राजा बिन्दुसार मौर्य. मृत्यु वर्ष - 320 ईसा पूर्व. मृत्यु स्थान - पाटलिपुत्र. मृत्यु की वजह - विष का सेवन. दुर्धरा के पिता धनानंद जी नंद वंश के शासक थे। दुर्धरा बहुत ही सुन्दर, सुशील और नटखट स्वभाव की कन्या थी। माता पिता को प्रिय दुर्धरा जब बड़ी हुई तो उनका विवाह चन्द्रगुप्त के साथ हुआ। Durdhara ने बिन्दुसार जैसे राजा को जन्म दिया जो चन्द्रगुप्त के बाद मौर्य वंश के द्वितीय शासक बने। दुर्धरा जितनी अच...

चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा की मृत्यु कैसे हुई?

क्या आप जानते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा की मृत्यु कैसे हुई? चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम शासक थे जिन्होंने दुर्धरा से शादी की। चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा की मृत्यु के पीछे एक रहस्य छुपा हुआ है। एक ऐसी घटना जिसने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में अहम भूमिका निभाने वाले आचार्य चाणक्य को अपने पद से हटा दिया और चाणक्य की मौत का कारण बना। चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा की मृत्यु के पीछे की कहानी जैसा कि आप सब जानते हैं आचार्य चाणक्य ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए, धनानंद को पराजित करने और उसके साम्राज्य को समाप्त करने का संकल्प लिया था। अपनी निर्णय क्षमता, चतुर राजनीति और अच्छे षड्यंत्रकर्ता के रूप में आचार्य चाणक्य विश्वविख्यात हैं। उन्होंने ऐसे षड्यंत्र रचे जिससे धनानंद मृत्यु को प्राप्त हुए और चंद्रगुप्त मौर्य मगध साम्राज्य के राजा बने। कभी-कभी अच्छा करने के लिए किए जाने वाले कामों से ऐसी क्षति या नुकसान हो जाता है जिनकी पूर्ति करना मुश्किल होता है। ऐसा ही एक अच्छा काम आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के लिए किया, लेकिन इसका...